सुलक्षणा पंडित हमारे बीच नहीं रहीं. 71 साल की उम्र में आज उनका निधन हो गया. वह 70 की मशहूर सिंगर और एक्ट्रेस थीं. पिछले साल उनके जन्मदिन पर उनके भाई ललित पंडित ने उनके बारे में बात की थी. उन्होंने कहा था, "दिलीप कुमार साहब ने मेरी बहन को इंडस्ट्री की नामचीन हस्तियों से मिलवाया था." सुलक्षणा एक प्रशिक्षित गायिका थीं. "वह अकेली ऐसी लड़की थीं, जिसे हमारे पिता पंडित प्रताप नारायण ने गायन का उचित प्रशिक्षण दिया था. वह कलकत्ता में एक बाल गायिका थीं. वह लगभग 9 या 10 साल की रही होंगी, जब कलकत्ता में एक समारोह में उन्होंने दिलीप कुमार साहब के सामने गाया था. वह इतना अच्छा गाते हुए सुनकर बहुत खुश हुए और दिलीप साहब ने ही हमारे पिता को सुलक्षणा दीदी को बेहतर भविष्य के लिए मुंबई लाने की सलाह दी. सुलक्षणा दीदी और सबसे बड़े भाई मंधीरभाई को मुंबई ले जाना मेरे पिता का साहसिक निर्णय था."
बाम्बे में दिलीप कुमार के घर में रहीं
यह उस समय की बात है जब पंडित परिवार कठिन दौर से गुज़र रहा था. उन्होंने कहा, "मुंबई में रहने के लिए न तो कोई जगह थी और न ही पैसे. पिताजी सुलक्षणा दीदी और मंधीरभाई दोनों को दिलीप साहब के घर ले गए और उन्हें कठिन समय के बारे में बताया. दिलीप साहब बहुत दयालु थे, जैसा कि वे जाने जाते थे, और उन्होंने हमारे परिवार को अपने एक घर में रखा." ललित बताते हैं कि दिलीप कुमार ने सुलक्षणा को हिंदी फिल्म जगत में पैर जमाने में भी मदद की. उन्होंने बताया, "उन्होंने उसे प्रभावशाली लोगों से मिलवाया और अपनी शूटिंग पर ले जाते थे और अक्सर बड़े निर्माताओं और निर्देशकों के लिए शूटिंग के दौरान उससे गाने गवाते थे. इस बीच, पिताजी ने छात्रों को शास्त्रीय गायन की शिक्षा देकर थोड़ी-बहुत कमाई शुरू कर दी."
इसके बाद सुलक्षणा का संघर्ष शुरू हुआ. सुलक्षणा दीदी को शो मिलने लगे थे, लेकिन पार्श्व गायन के क्षेत्र में आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं था, जो वह बहुत चाहती थीं. वह संगीत निर्देशकों से मिलती रहीं, लेकिन ज़्यादातर मुख्य पार्श्व गायकी के लिए कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने लताजी के साथ लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के एक गाने (फिल्म 'तकदीर' का 'सात समुंदर पार से गुड़ियों के बाज़ार से') की कुछ पंक्तियां गाईं. आखिरकार, संगीतकारों ने सुलक्षणा पर ध्यान देना शुरू किया. संघर्ष जारी था, लेकिन धीरे-धीरे लोग उन्हें देखने लगे और पसंद करने लगे. मैं यहां यह ज़रूर कहना चाहूंगा कि सुलक्षणा दीदी एक बहुत ही खूबसूरत लड़की थीं. उनका व्यक्तित्व अद्भुत था और हालांकि उन्होंने शुरुआती पढ़ाई से ज़्यादा शिक्षा नहीं ली थी, फिर भी वह बुद्धिमान थीं."
किशोर कुमार और रफी के साथ गाया गाना
ललित याद करते हैं, "मुझे ठीक से याद नहीं कि 60 के दशक के मध्य में सुलक्षणा का किशोर दा से परिचय कैसे हुआ. किशोर दा उस समय बहुत मददगार साबित हुए. उन्होंने उन्हें अपने शो और दौरों का हिस्सा बनाया. आर्थिक स्थिति बेहतर होने लगी और पिताजी ने परिवार के बाकी सदस्यों को मुंबई ले जाने का फैसला किया. शो के ज़रिए सुलक्षणा ने एक छोटा सा फ्लैट खरीद लिया और परिवार मुंबई में फिर से बस गया. यहीं मेरा जन्म हुआ. अपने सभी भाई-बहनों में मैं अकेला मुंबई में पैदा हुआ हूं."ललित के जन्म के बाद, सुलक्षणा को नई प्रसिद्धि मिली. उन्होंने कहा, "वह एक कलाकार और एक इंसान के रूप में निखरने लगीं और शीर्ष पुरुष कलाकारों के साथ दौरे करने लगीं." “रफ़ी साहब की मुलाक़ात उनसे एक रिकॉर्डिंग के दौरान हुई थी और वे उन्हें अपने शो के लिए बहरीन और दूसरी जगहों पर भी ले गए. वे हम सबकी ज़िंदगी बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही थीं और बहुत समर्पित और मेहनती थीं.
किशोर कुमार की सलाह पर बनीं एक्ट्रेस
किशोर दा ने ही उन्हें सुझाव दिया और समझाया कि जब तक मंगेशकर बहनें राज कर रही हैं, तब तक पार्श्व गायिका के रूप में अपनी पहचान बनाना मुश्किल होगा. यह उस समय की सभी महिला गायिकाओं के लिए एक स्पष्ट तथ्य था जो पार्श्व गायिका बनने की कोशिश कर रही थीं. किशोर दा इस तथ्य से वाकिफ़ थे और उन्होंने ही मेरी बहन को अपनी फ़िल्म दूर का राही में अपने संगीत निर्देशन में पार्श्व गायन का पहला मौका दिया. गाना था 'बेक़रार दिल तू गाए जा'. यह एक खूबसूरत रचना थी और किशोर दा ने ख़ुद सिर्फ़ एक अंतरा गाया और सुलक्षणा दीदी से दो अंतर गवाए. यह गाना बहुत सफल रहा और एक नई आवाज़ के रूप में पहचान बनाने में उनकी भूमिका काफ़ी अहम रही.”
सुलक्षणा को अभिनेत्री के रूप में अपनी किस्मत आज़माने का सुझाव किशोर कुमार ने दिया था. “किशोर दा ने ही सुलक्षणा दीदी को सुझाव दिया था कि उन्हें अभिनेत्री बनने की कोशिश करनी चाहिए और अपनी फ़िल्मों में अपने गाने ख़ुद गाने चाहिए. सुलक्षणा दीदी ने इस चुनौती को स्वीकार किया और किशोर दा के विचार पर अमल करते हुए अभिनेत्री बनने की तैयारी शुरू कर दी. उन्हें सबसे पहले निर्देशक रघुनाथ झालानी ने 1974 में रिलीज़ हुई फ़िल्म उलझन के लिए साइन किया. यह एक महिला-प्रधान फ़िल्म थी और संजीव कुमार के साथ यह फ़िल्म सुपरहिट रही और सुलक्षणा दीदी ने इस फ़िल्म के लिए अपना गाना भी गाया. इसने उनके जीवन और करियर को बदल दिया और उन्हें फ़िल्मों के कई प्रस्ताव मिलने लगे.”
भाई बहनों को बनाया कामयाब
अचानक, पंडित परिवार संपन्न हो गया. ललित पंडित ने कहा, "सुलक्षणा दीदी ने मेरे भाई के लिए जुहू में एक घर खरीदा और अपने और परिवार के बाकी सदस्यों के लिए भी एक बड़ा घर खरीदा, जिससे हमारी ज़िंदगी बदल गई. उन्होंने अपने सभी छोटे भाई-बहनों पर भी ध्यान देना शुरू किया और उन्हें उस समय के सबसे अच्छे स्कूलों में दाखिला दिलाया. उन्होंने मुझे एक बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया, जो मेरे जीवन में एक वरदान साबित हुआ! मैं परिवार का अकेला व्यक्ति हूं जो पढ़ाई में आगे बढ़ पाया." उन्होंने आगे कहा, "मैं स्कूल में अखबार पढ़ता था और पंचगनी में रहते हुए दीदी की नई फिल्मों की रिलीज पर नज़र रखता था. उन्हें एक भाग्यशाली एक्ट्रेस का तमगा मिला क्योंकि उनकी सभी फिल्में जुबली मनाती थीं. उनके कॉन्ट्रैक्ट में उन पर फिल्माए जाने वाले सभी गाने गाने का अधिकार होता था. उस समय, निर्माता खुशी-खुशी इस विचार पर सहमत हो जाते थे, लेकिन कोई भी देख सकता था कि संगीतकार, उनसे गवाने के लिए तो तैयार थे, लेकिन दबाव महसूस कर रहे थे." फिर भी, अब वह सिर्फ़ अपनी ही नहीं, बल्कि अन्य फ़िल्मों के लिए भी अलग-अलग संगीतकारों के लिए कई गाने गा रही थीं. उन्होंने बप्पी दा
राजेश, ऋषि, संजीव, अमिताभ, विनोद, जीतेंद्र, और शशि के साथ दी हिट फिल्में
ललित पंडित ने आगे कहा, "उन्होंने राजेश खन्ना, ऋषि कपूर, संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, जीतेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा, फ़िरोज़ खान, शशि कपूर जैसे अभिनेताओं के साथ फ़िल्में कीं और अपने समय के शीर्ष निर्देशकों के साथ भी काम किया. वह कहती हैं कि जब हमारे परिवार की किस्मत बदली और वह किशोर दा के साथ युगल गीत गातीं.
ललित सुलक्षणा के प्रति सदैव ऋणी रहेंगे. उन्होंने कहा, "वह वह शुरुआती ताकत थीं जिन्होंने परिवार को मुश्किल हालात से उबारा और हम सभी को ज़िंदगी में आगे बढ़ने का मौका दिया." अगर वह न होतीं, तो हमारी छोटी बहन विजयता न होती और न ही जतिन-ललित. हम जतिन और ललित के लिए, उनकी शुरुआती सलाह ही थी जिसने हमें फिल्म इंडस्ट्री में सफल संगीतकार के रूप में आगे बढ़ाया. सुलक्षणा दीदी का ही विचार था कि हम मजरूह सुल्तानपुरी साहब के पास जाएं और उनके साथ मिलकर अपनी म्यूजिक जर्नी शुरू करें. वह मेरी शुरुआती गुरु भी थीं और उन्होंने मुझे गाने और एक सफल संगीतकार बनने के लिए मार्गदर्शन किया.
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