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फिल्म से कहीं आगे ले जाती है डॉक्यूमेंट्री ‘सितारों के सितारे’ जो आमिर की फिल्म सितारे जमीन पर के इर्द गिर्द बनी है, रिव्यू

आमिर खान की फिल्म ‘सितारे जमीन पर’ बॉक्स ऑफिस पर सफल रही, लेकिन इसकी असली कामयाबी सिनेमा हॉल से कहीं आगे तक जाती है. इस फिल्म ने डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों को लेकर समाज में एक नई समझ और संवेदना पैदा की.

फिल्म से कहीं आगे ले जाती है डॉक्यूमेंट्री ‘सितारों के सितारे’ जो आमिर की फिल्म सितारे जमीन पर के इर्द गिर्द बनी है, रिव्यू
फिल्म से कहीं आगे ले जाती है डॉक्यूमेंट्री ‘सितारों के सितारे’
नई दिल्ली:

आमिर खान की फिल्म ‘सितारे जमीन पर' बॉक्स ऑफिस पर सफल रही, लेकिन इसकी असली कामयाबी सिनेमा हॉल से कहीं आगे तक जाती है. इस फिल्म ने डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों को लेकर समाज में एक नई समझ और संवेदना पैदा की. मनोरंजन के साथ-साथ यह फिल्म एक जरूरी सामाजिक संवाद भी बनती है. इसी संवाद को और गहराई से सामने लाती है, फिल्म के इर्द-गिर्द बनी डॉक्यूमेंट्री ‘सितारों के सितारे'.

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फिल्म में नजर आए इन खास बच्चों की तारीफ तो सभी ने की, लेकिन इनके चयन की प्रक्रिया, शूटिंग के दौरान इनका स्वभाव, सेट पर इनका अनुभव और आमिर खान जैसी बड़ी शख्सियत के साथ काम करने का इन बच्चों और उनके माता-पिता के लिए क्या अर्थ था—इन तमाम पहलुओं से दर्शक अनजान रहे. ‘सितारों के सितारे' इन अनकहे पहलुओं को सामने लाती है. इससे भी आगे जाकर यह डॉक्यूमेंट्री उन संघर्षों, आशंकाओं और चुनौतियों की कहानी कहती है, जिनसे इन बच्चों के माता-पिता रोज गुजरे हैं और आज भी गुजर रहे हैं.

आमिर खान पहले भी समाज को झकझोरने वाली फिल्में बना चुके हैं, लेकिन यह डॉक्यूमेंट्री उन बच्चों और उनके परिवारों के दर्द, डर, उम्मीद और साहस को बेहद मानवीय तरीके से सामने रखती है. एक बार फिर आमिर खान यह साबित करते हैं कि वे सिर्फ अभिनेता नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार फिल्मकार भी हैं.

डॉक्यूमेंट्री की शुरुआत फिल्म से जुड़े कलाकारों और उनके परिवारों की उस बेचैनी से होती है, जिसमें यह सवाल छिपा है कि फिल्म रिलीज के बाद दर्शक इसे अपनाएंगे या नहीं, और समाज पर इसका क्या असर पड़ेगा. इसके बाद कहानी माता-पिता की जिंदगी में उतरती है—शादी से लेकर बच्चों के जन्म, उनके बड़े होने और हर पड़ाव पर बदलती मानसिक स्थितियों तक. समाज की बातें, मेडिकल चुनौतियाँ, पढ़ाई-लिखाई की चिंताएँ और सबसे बड़ा सवाल—माता-पिता के बाद इन बच्चों का क्या होगा—इन सभी पहलुओं को बेहद संवेदनशीलता से छुआ गया है.

पूरी डॉक्यूमेंट्री में कई पल ऐसे हैं, जहां आप मुस्कुराएंगे, और कई जगह आपकी आंखें नम हो जाएंगी. लेकिन इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि ‘सितारे जमीन पर' ने इन बच्चों को सिर्फ दर्शकों से नहीं मिलवाया, बल्कि एक-दूसरे से भी जोड़ा. इस फिल्म के जरिये इन्हें ऐसे दोस्त मिले, जो इन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से समझते हैं. यही नहीं, इनके माता-पिता को भी एक-दूसरे में अपना अक्स दिखाई दिया—एक ऐसा सहारा, जहां दर्द और भावनाएं बिना कहे समझी जा सकती हैं. अलग-थलग जिंदगी जी रहे ये परिवार एक बड़े परिवार में बदलते नजर आते हैं.

डॉक्यूमेंट्री अपनी बात असरदार ढंग से कहती है पर ये और भी असरदार हो जाएगी अगर इसे पूरी तरह हिंदी में डब किया जाए, तो यह छोटे शहरों और गांवों तक और ज्यादा असरदार ढंग से पहुंच सकती है, जहां ऐसे बच्चों के माता-पिता आज भी कई तरह की सामाजिक चुनौतियों से जूझते हैं.

हालांकि, डॉक्यूमेंट्री में फिल्म के निर्देशक प्रसन्ना और अभिनेत्री जेनेलिया डिसूजा के इंटरव्यू की कमी महसूस होती है. शूटिंग और प्रीमियर के दौरान शाहरुख खान जैसे कलाकार भी मौजूद थे, उनका नजरिया शामिल होता तो अनुभव और समृद्ध हो सकता था.

इसके बावजूद, निर्देशक शानिब की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने शूटिंग से लेकर एडिटिंग तक बच्चों और उनके परिवारों की दुनिया को बिना किसी बनावटी चमक-दमक के जस का तस रखा. चाहें तो इसे ज्यादा ग्लैमरस बनाया जा सकता था, लेकिन बिना किसी व्यावसायिक दबाव के सच्ची कहानी कहने का रास्ता चुना गया.

‘सितारे जमीन पर' ने दर्शकों की इन खास सितारों से पहचान कराई, और ‘सितारों के सितारे' उन्हें उनके दिल से जोड़ देती है. यह डॉक्यूमेंट्री इसलिए देखी जानी चाहिए कि यह अच्छी तरह बनी है—और उससे भी ज्यादा इसलिए, ताकि हम अनजाने में अपने शब्दों या सोच से कभी इन बच्चों या उनके परिवारों को ठेस न पहुंचाएं.

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