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अंग्रेजों के जमाने में पुलिस अफसर थे सलमान खान के दादा, अब्दुल राशिद खान को बहादुरी के लिए मिली थी ये उपाधि

पिता सलीम खान की दिलचस्पी फिल्मों में थी. राइटर के तौर पर इंडस्ट्री में करियर सेट होने के बाद सलीम पूरे परिवार के साथ इंदौर से मुंबई शिफ्ट हो गए. सलीम के तीनों बेटों सलमान, अरबाज और सोहेल ने भी फिल्मी दुनिया में ही अपना करियर बनाया.  

अंग्रेजों के जमाने में पुलिस अफसर थे सलमान खान के दादा, अब्दुल राशिद खान को बहादुरी के लिए मिली थी ये उपाधि
अंग्रेजी शासन में इस बड़े पद पर थे सलमान खान के दादा,
नई दिल्ली:

बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान कई बार बड़े पर्दे पर पुलिस मैन के किरदार में नजर आ चुके हैं. वॉन्टेड, गर्व, राधे और दबंग सीरीज की फिल्मों में भाईजान अपने पुलिसिया अंदाज से फैंस का दिल जीतते आए हैं. रील लाइफ के साथ-साथ रियल लाइफ में भी सलमान का पुलिस डिपार्टमेंट से खास कनेक्शन रहा है. सलमान के दादा पुलिस विभाग में बड़े अधिकारी थे. हालांकि, पिता सलीम खान की दिलचस्पी फिल्मों में थी. राइटर के तौर पर इंडस्ट्री में करियर सेट होने के बाद सलीम पूरे परिवार के साथ इंदौर से मुंबई शिफ्ट हो गए. सलीम के तीनों बेटों सलमान, अरबाज और सोहेल ने भी फिल्मी दुनिया में ही अपना करियर बनाया.  

इंदौर के डीआईजी थे दादा

सलमान खान के दादा अब्दुल राशिद खान ब्रिटिश राज के दौरान डीआईजी थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, ब्रिटिश शासन में भारतीयों को मिलने वाली यह सबसे बड़ी रैंक (डीआईजी) थी. अब्दुल राशिद खान को पहले इंदौर में सहायक पुलिस अधीक्षक (एएसपी) के तौर पर नियुक्त किया गया था और प्रमोशन के बाद वह डीआईजी बने. इस दौरान सलमान के दादा को मध्यप्रदेश के खरगोन जिले से 50 किलोमीटर दूर मंडलेश्वर का एक आवासीय बंगला भी दिया गया था. अब्दुल राशिद खान 1942 से 1948 तक उसी बंगले में रहे थे. सलमान और उनके पिता सलीम खान का जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर शहर में हुआ था. एक्टर के तौर पर फिल्मी दुनिया में असफल शुरूआत के बाद सलीम खान ने फिल्म राइटिंग में अपना करियर जमाया और सफलता मिलने के बाद पूरे परिवार के साथ मुंबई शिफ्ट हो गए. बता दें कि अब्दुल राशिद खान को बहादुरी के लिए दिलेर जंग की उपाधी से नवाजा गया था.


क्रांतिकारियों का रोका था रास्ता

सलमान खान के दादा का नाम भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हुई एक घटना में आता है. दरअसल, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार ने कई क्रांतिकारियों को पकड़ कर जेल में डाल दिया था. जेल में बंद 68 क्रांतिकारियों ने 2 अक्टूबर को गांधी जी का जन्मदिन मनाने के लिए प्रशासन से अनुमति मांगी थी जिसके लिए ब्रिटिश सरकार ने इंकार कर दिया था. गुस्साए क्रांतिकारियों ने जेल का दरवाजा तोड़ दिया था जिसके बाद राशिद खान ने उन क्रांतिकारियों का रास्ता रोकने की कोशिश की थी. बता दें कि आजादी के बाद सन 1956 में डीआईजी के पद को हटा दिया गया था. 


 

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