देश प्रेम और अंध-राष्ट्रवाद में बारीक अंतर है लेकिन बॉलीवुड (Bollywood) में इस समय राष्ट्रवाद से जुड़े विषयों पर बन रही फिल्मों का चलन बढ़ गया है. यह कहना है बॉलीवुड एक्टर जॉन अब्राहम (John Abraham) का. जॉन अब्राहम (John Abraham) रोमांचक फिल्म रॉ (RAW) में एक जासूस का किरदार निभा रहे हैं. वह कहते हैं कि मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक माहौल में लोग जो देखना चाहते हैं उस पर बनने वाली फिल्में पूरी तरह से जायज हैं.
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जॉन (John Abraham) ने बताया कि देश-भक्ति ऐसी चीज है, जिसका अनुभव आपको अपने दिल में महसूस होना चाहिए और कहानी को संवेदनशील, विश्वसनीय, समझदार और जिम्मेदार तरीके से बयां करना चाहिए. अंध-राष्ट्रवाद की बात तब आती है जब आप अपना आस्तीन चढ़ा लेते हैं. उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि कुछ फिल्में ऐसी हो सकती हैं, जो अवसरवादी बनने की चेष्टा में शीर्ष पर आ सकती हैं, लेकिन अगर ऐसी फिल्मों की बाढ़ आ जाए जो देश में उस वक्त जरूरतों को बयां करे तो मेरा मानना है कि यह पूरी तरह से जायज है.
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उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक (Uri: The Surgical Strike), राजी (Raazi) मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी (Manikarnika: The Queen of Jhansi) और केसरी (Kesari) ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़े हैं. जॉन अभिनीत 'रॉ' (RAW) इस शुक्रवार को रिलीज हो रही है, जो एक आम आदमी की कहानी है जो जासूस बन जाता है. उनकी अगली फिल्म बाटला हाउस (Batla House) दिल्ली में 13 सितंबर 2008 सीरियल बलास्ट में कथित रूप से संलिप्त इंडियन मुजाहिदीन के संदिग्ध आतंकियों और दिल्ली पुलिस के विशेष सेल टीम के सात सदस्यों के बीच मुठभेड़ की कहानी पर आधारित है. रॉबी ग्रेवाल की 'रॉ' की कहानी 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जिसमें पहली बार भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ हवाई शक्ति का प्रयोग किया था. हाल ही में भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी सरजमीं में आतंकी प्रशिक्षण शिविर पर हवाई कार्रवाई की थी, 'रॉ' वर्तमान समय के साथ कुछ हद तक मेल खाती है.
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जिस पर जॉन (John Abraham) ने कहा कि मेरी इच्छा है कि यह फिल्म इस वक्त प्रासंगिक न हो क्योंकि कश्मीर के पुलवामा (Pulwama) में हमारे 40 से ज्यादा जवान शहीद हुए हैं. हमने इस फिल्म को एक साल पहले ही बना लिया था और हमें अंदाजा ही नहीं था कि इस तरीके से चीजें हमारे सामने आएंगी. उन्होंने कहा, देश का मूड ऐसा है कि लोग भारत के संबंध में कुछ देखना चाहते हैं लेकिन यह बहुत जरूरी है कि हम देश के विभिन्न पहलुओं की तलाश करते हैं, बशर्ते संवेदनशील तरीके से ऐसा करें. (इनपुट- IANS)
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