हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री में कई ऐसे एक्टर हुए, जिन्हें सिनेमा ने खुद चुना. सिनेमा मे उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया. फैंस ने भी इन अभिनेताओं की अदाकारी पर खूब प्यार लुटाया. हिन्दी सिनेमा के एक ऐसे ही सितारे हैं, जिन्होंने अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के दिलों पर राज किया,और दर्शकों ने ही नहीं बल्कि पूरी फिल्म इंडस्ट्री ने भी उन्हें अपना 'राजकुमार' माना. मुंबई के माहिम थाने में सब इंस्पेक्टर की नौकरी करने वाले कुलभूषण पंडित को एक दिन पेट्रोलिंग के दौरान एक सिपाही ने कहा कि हुजूर आप रंग-ढंग और कद-काठी में किसी हीरो से कम नहीं लगते. अगर आप फिल्मों में हीरो बन जाएं तो लाखों दिलों पर राज कर सकते हैं.
कुलभूषण पंडित को सिपाही की यह बात जंच गई और फिर वह अपनी पुलिस की नौकरी छोड़ कर हीरो बनने की जुगत में रहने लगे. कहते हैं किसी चीज को सच्चे दिल से चाहो तो खुदा भी उसे आपसे मिलाने में लग जाता है. ऐसे ही कुछ कुलभूषण पंडित के साथ हुआ. मुंबई के जिस थाने में वह कार्यरत थे. वहां अक्सर फिल्म उद्योग से जुड़े लोगों का आना-जाना लगा रहता था. एक बार पुलिस स्टेशन में फिल्म निर्माता बलदेव दुबे कुछ जरूरी काम से आए. वह भी कुलभूषण पंडित के बातचीत करने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए.
बलदेव दूबे ने कुलभूषण को अपनी फिल्म 'शाही बाजार' में रोल ऑफर कर दिया. कुलभूषण पंडित की तो जैसे मन की मुराद पूरी हो गई. इसलिए तुरंत उन्होंने अपनी सब इंस्पेक्टर की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और निर्माता का ऑफर स्वीकार कर लिया. लेकिन सिनेमा इंडस्ट्री में उनकी राहें आसान नहीं थी. शुरू में उन्हें काफी स्ट्रगल करना पड़ा . राज कुमार ने फिल्म शाही बाजार से डेब्यू किया था, लेकिन यह फिल्म बनने में काफी टाइम लगा और राजकुमार को अपना जीवनयापन करना मुश्किल हो गया. तब वर्ष 1952 मे आई फ़िल्म 'रंगीली' में उन्होंने छोटी सी भूमिका स्वीकार कर ली.
यह फिल्म सिनेमा घरों में कब लगी और कब चली गई. पता ही नहीं चला. बाद में 'शाही बाजार' भी फ्लॉप हो गई. अब राजकुमार को लोग कहने लगे कि तुम्हारा चेहरा हीरो के लिए सही नही है. तुम खलनायक बन सकते हो. वर्ष 1952 से 1957 तक राजकुमार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए लगातार संघर्ष करते रहे. 'अनमोल', 'सहारा', 'अवसर', 'घमंड', 'नीलमणि' और 'कृष्ण सुदामा' जैसी उनकी कई फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप साबित हुईं.
साल 1957 में प्रदर्शित महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया में राज कुमार गांव के एक किसान की छोटी सी भूमिका में दिखाई दिए. फ़िल्म की हीरोइन नरगिस थीं लेकिन इस फिल्म में राज कुमार को काफी पसंद किया गया. फिल्म के बाद वह रातो रात स्टार बन गए.
बता दें कि फिल्म इंडस्ट्री में ‘जानी' के नाम से मशहूर अभिनेता राज कुमार का जन्म 8 अक्टूबर 1926 को पाकिस्तान में हुआ था. राज कुमार ने अपने करियर में लगभग 70 फिल्मों में काम किया है. इनमें ‘पाकीजा', ‘सौदागर', ‘तिरंगा' जैसी कई सुपरहिट फिल्में हैं. लोग राज कुमार की एक्टिंग के कायल थे. राज कुमार फिल्मों में ही नहीं रियल लाइफ में भी अपने अंदाज के लिए जाने जाते थे. वह काफी मुंह फट किस्म के इंसान थे. कहा जाता है कि एक बार डायरेक्टर प्रकाश मेहरा अपनी फिल्म ‘जंजीर' के लिए राज कुमार के पास पहुंचे. इस फिल्म को राज कुमार ने करने से साफ इनकार कर दिया था. इसकी वजह यह थी कि उन्हें प्रकाश मेहरा की शक्ल नहीं पसंद थी. बाद में इस फिल्म से अमिताभ बच्चन रातो रात स्टार बन गए थे.
वहीं उस दौर के मशहूर डायरेक्टर रामानंद सागर अपनी फिल्म ‘आंखें' में उन्हे कास्ट करना चाहते थे. स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद राज कुमार ने अपने कुत्ते को बुलाया और उसको कहा कि क्या तुम ये फिल्म करना चाहते हो. कुत्ते ने सिर हिलाया तब राज कुमार ने कहा था, ‘देखा ये रोल तो मेरा कुत्ता भी नहीं करना चाहेगा.'
एक अन्य वाकया है जब राजकुमार और गोविंदा एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. राजकुमार ने गोविंदा से कहा. यार तुम्हारी शर्ट बहुत शानदार है. गोविंदा खुश हो गए. उन्होंने कहा, सर आपको यह शर्ट पसंद आ रही है तो आप रख लीजिए. राजकुमार ने गोविंदा से शर्ट ले ली. दो दिन बाद गोविंद ने देखा कि राजकुमार ने उस शर्ट का एक रुमाल बनवाकर अपनी जेब में रखा हुआ है. वहीं एक पार्टी में संगीतकार बप्पी लाहिड़ी अक्खड़ राजकुमार से मिले. बप्पी ढेर सारे सोने से लदे थे. बप्पी को राजकुमार ने ऊपर से नीचे देखा और फिर कहा वाह, शानदार. एक से एक गहने पहने हो, सिर्फ मंगलसूत्र की कमी रह गई है.
कहा जाता है कि उस दौर में राज कुमार की लोकप्रियता कुछ ऐसी थी कि उनसे साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत डर गए थे और उन्होंने फिल्म तिरंगा में उनके साथ काम करने से इनकार कर दिया था. राज कुमार को 'दिल एक मंदिर' और 'वक़्त' के लिए फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला था. वहीं उन्हें 1996 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार पुरस्कार से नवाजा गया था.
राज कुमार अपनी निजी जिंदगी को लोगों से छुपाकर रखना पसंद करते थे. 90 के दशक में उनहोंने फिल्मों में काम करना कम कर दिया. उन्हें लंग कैंसर था. यह बात सिर्फ उनके बेटे पुरु को पता थी. उन्होंने अपने परिवार से वादा लिया था कि उनके अंतिम संस्कार के बाद ही उनकी मौत की खबर बाहर जानी चाहिए. राज कुमार ने 3 जुलाई 1996 को महज 69 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.
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