हिंदी कविता की प्रसिद्ध कविताओं में से एक इस कविता के रचयिता कुमार विश्वास (Kumar Vishwas) आज 48 साल के हो गए हैं. कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है! मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है!! मैं तुझसे दूर कैसा हूं, तू मुझसे दूर कैसी है! ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है!! यह कविता किसने नहीं सुनी? 10 फरवरी 1970 को जन्मे कुमार विश्वास सिर्फ अपनी कविताओं के लिए नहीं बल्कि कुछ समय से राजनीति में उथल-पुथल के लिए भी चर्चा में रहे. साल 1994 में राजस्थान के एक कॉलेज में व्याख्याता (लेक्चरर) के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले कुमार विश्वास हिंदी कविता मंच के सबसे व्यस्ततम कवियों में से एक हैं. उन्होंने कई कवि सम्मेलनों की शोभा बढ़ाई है और पत्रिकाओं के लिए वह भी लिखते हैं.
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कुमार विश्वास (Kumar Vishwas) मंचीय कवि होने के साथ-साथ विश्वास हिंदी सिनेमा के गीतकार भी हैं और आदित्य दत्त की फिल्म 'चाय गरम' में उन्होंने अभिनय भी किया है. कुमार विश्वास का जन्म 10 फरवरी, 1970 को उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जनपद के पिलखुआ में हुआ था. इनके पिता का नाम डॉ. चंद्रपाल शर्मा हैं, जो आरएसएस डिग्री कॉलेज में प्राध्यापक थे और मां का नाम रमा शर्मा है. वह अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं.
विश्वास की प्रारंभिक शिक्षा पिलखुआ के लाला गंगा सहाय विद्यालय में हुई. उन्होंने राजपुताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज से 12वीं पास की है. इनके पिता चाहते थे कि कुमार इंजीनियर बनें, लेकिन इनका इंजीनियरिंग की पढ़ाई में मन नहीं लगता था. वह कुछ अलग करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी और हिंदी साहित्य में 'स्वर्ण पदक ' के साथ स्नातक की डिग्री हासिल की. एमए करने के बाद उन्होंने 'कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना' विषय पर पीएचडी प्राप्त की. उनके इस शोधकार्य को वर्ष 2001 में पुरस्कृत भी किया गया.
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शुरुआती दिनों में जब कुमार विश्वास कवि सम्मेलनों से देर से लौटते थे, तो पैसे बचाने के लिए ट्रक में लिफ्ट लिया करते थे. अगस्त, 2011 में कुमार 'जनलोकपाल आंदोलन' के लिए गठित टीम अन्ना के लिए सक्रिय सदस्य रहे हैं. कुमार 26 जनवरी, 2012 को गठित टीम 'आम आदमी पार्टी' के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य हैं. कुमार विश्वास ने वर्ष 2014 में अमेठी से राहुल गांधी और स्मृति ईरानी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें बाजी नहीं मार पाए.
फिलहाल उनके लिखी हुई कविताएं आज भी लोग अक्सर गुनगुनाते हैं-
1. कोई दीवाना कहता है -
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!
भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!
2. उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती -
उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती
हमको ही ख़ासकर नहीं मिलती
शायरी को नज़र नहीं मिलती
मुझको तू ही अगर नहीं मिलती
रूह में, दिल में, जिस्म में दुनिया
ढूंढता हूँ मगर नहीं मिलती
लोग कहते हैं रूह बिकती है
मैं जहाँ हूँ उधर नहीं मिलती
3. खुद को आसान कर रही हो ना -
खुद को आसान कर रही हो ना
हम पे एहसान कर रही हो ना
ज़िन्दगी हसरतों की मय्यत है
फिर भी अरमान कर रही हो ना
नींद, सपने, सुकून, उम्मीदें
कितना नुक्सान कर रही हो ना
हम ने समझा है प्यार, पर तुम तो
जान-पहचान कर रही हो ना
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