
‘पार्वती क्या तुम मुझे भूल जाओगी...' प्रेमी की पीड़ा, न मिलने की तड़प और एक-दूजे को पाने की आकांक्षा संग एक खूबसूरत और आंखों में नमी लाने वाली कहानी से सजी 1935 में फिल्म ‘देवदास' आई थी. फिल्म के अभिनेता कुंदन लाल सहगल थे. जी हां, 11 अप्रैल 1904 में जन्मे केएल सहगल एक ऐसे देवदास बन गए, जो भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमिट हैं. आइए कुंदन लाल सहगल के जीवन के पन्नों को पलटते हैं... कुंदन लाल सहगल का जन्म 11 अप्रैल 1904 को जम्मू में हुआ था.
उनके पिता अमरचंद सहगल जम्मू और कश्मीर के राजा की अदालत में तहसीलदार थे और मां केसरबाई सहगल गृहिणी थीं. वह धार्मिक महिला थीं और अक्सर सहगल को लेकर मंदिर जाया करती थीं, जहां वह भजन-कीर्तन में शामिल होते थे. बचपन में सहगल को रामलीला में प्रस्तुति देने का भी मौका मिलता था. वह रामलीला में माता सीता के किरदार को निभाते थे.
स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होंने रेलवे टाइमकीपर के रूप में काम किया. बाद में उन्होंने एक कंपनी से सेल्समैन के रूप में भी जुड़े. काम के दौरान उन्हें भारत के कई स्थलों पर घूमने का मौका मिला, बस फिर क्या था, उनकी किस्मत ने दोस्ती करवाई मेहरचंद जैन से जो लाहौर के अनारकली बाजार में रहने वाले थे. सिंगर के तौर पर करियर की शुरुआत करने वाले सहगल को दोस्त मेहरचंद ने अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए अभिनय की सलाह दी.
केएल सहगल ने अपने करियर में 180 से ज्यादा गीतों को अपनी आवाज दी. उनके गीत लोग आज भी सुनना पसंद करते हैं. उन्होंने हिंदी, बंगाली के साथ उर्दू समेत अन्य कई भाषाओं में गीत गाए. हालांकि, ‘जब दिल ही टूट गया हम जीकर क्या करेंगे…' जैसे गाने को आवाज देने वाले कुंदन के बारे में एक किस्सा मशहूर है कि वह गानों को आवाज तभी देते थे जब उनका गला शराब से तर होता था.
1946 में आई फिल्म 'शाहजहां' के लिए उन्हें 'जब दिल ही टूट गया' गाना था, तब उन्होंने बिना शराब को छूए अपनी आवाज दी. यह गाना खूब हिट हुआ और आज भी लोग इस गाने को गुनगुनाते हैं. केएल सहगल ने इस गाने को लेकर कहा था कि मेरे अंतिम सफर में 'जब दिल ही टूट गया' गाना बजना चाहिए और ऐसा ही हुआ भी था.
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