Independence Day Deshbhakti Geet: स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) एक ऐसा दिन है, जिसपर हर भारतीय को गर्व महसूस होता है. इस बार पूरा देश 73वां स्वतंत्रता दिवस (73rd Independence Day) मना रहा है. इसी दिन 1947 में भारत को अंग्रेजी शासन से आजादी मिली थी और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा (Indian Flag) लहराया था. स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) की कई कहानियां हमें बॉलीवुड फिल्मों के जरिए भी देखने को मिली हैं. इसके अलावा बॉलीवुड में ऐसे कई गाने फिल्माए गए हैं, जिन्हें सुनकर ना केवल गर्व महसूस होता है, बल्कि कई बार लोगों के रोंगटे भी खड़े हो जाते हैं. इसके अलावा बॉलीवुड के कई ऐसे भी गाने हैं, जिसके जरिए लोगों को आजादी की गाथा भी सुनने को मिलती है.
दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है (क़िस्मत, 1943)
संगीतकार: अनिल विश्वास
गीतकार: कवि प्रदीप
गायन: अमीरबाई कर्नाटकी एवं साथी
यह पहला ऐसा क्रान्तिकारी गीत है, जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींदें हराम कर दी थीं. आजादी के ठीक पांच बरस पहले रिलीज हुए इस गीत ने कई जन-समुदाय को अपनी गिरफ्त में ले लिया था. फिल्म ‘किस्मत' के इस गीत ने आजादी के आह्वान का एक धारदार संदेश पेश किया है. गाने के बोल के साथ ही अमीरबाई कर्नाटकी की आवाज़ गाने को सबसे अलग बना दिया है.
वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हों (शहीद, 1948)
संगीतकार: मास्टर गुलाम हैदर
गीतकार: राजा मेंहदी अली खां
गायन: मो. रफ़ी खान मस्तान एवं साथ
फिल्म ‘शहीद' के लिए रचे गये इस ऐतिहासिक गीत को मास्टर गुलाम हैदर ने संगीतबद्ध किया था. मो. रफ़ी और साथियों की आवाज में इस गीत ने उस दौर में भी लोकप्रियता का परचम लहराया था और अपनी तरह से फ़िल्म की कामयाबी का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू साबित हुआ. इस गीत की धुन, उसकी संवेदनशील गायिकी और पूरे गीत में कोरस के समवेत स्वर के साथ मो. रफी और खान मस्तान की संवेदना चरम पर है.
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दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल (जागृति, 1954)
संगीतकार: हेमन्त कुमार
गीतकार: कवि प्रदीप
गायन: आशा भोंसले एवं साथी
इस गीत के माध्यम से महात्मा गांधी के प्रयासों को बेहतरीन ढंग से समझाया गया है. इस गाने में कवि पं. प्रदीप ने अपनी भावनाएं उड़ेल दी हैं, जिससे यह गीत अतुलनीय बन गया है.
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कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों (हकीकत, 1964)
संगीतकार: मदन मोहन
गीतकार: कैफी आजमी
गायन: मो. रफी एवं साथी
इस गाने को जब फिल्माया गया, जब पूरा भारत-चीन के युद्ध से उपजे त्रासदी और हतोत्साह से दुःखी था. इस गीत को भारतीयों में अपनी सेना के प्रति आदर और प्रेम जगाने के रूप में भी देखा जाता है. मो. रफी की दर्दभरी आवाज के जरिए यह गीत असाधारण ऊंचाइयां हासिल करता है. आज भी लोगों की जुबान पर मौजूद इस गीत का प्रतीकात्मक सन्देश यह भी है कि इसे रचने वाले तीन महान लोग- मदन मोहन, कैफी आजमी और मो. रफी, कहीं अपनी शुद्ध रचनात्मकता में हिन्दू-मुस्लिम एकता की अद्भुत इबारत रच रहे थे.
मेरा रंग दे बसन्ती चोला (शहीद, 1965)
संगीतकार: प्रेम धवन
गीतकार: प्रेम धवन
गायन: मुकेश, महेन्द्र कपूर एवं राजेन्द्र मेहता
यह गीत पूरी तरह राष्ट्रीयता के सन्देश से पगी हुई ऐतिहासिक फ़िल्म ‘शहीद' का हिस्सा है. भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के क्रान्तिकारी बलिदान को आधार बनाकर रचे गये इस बेहद भावुक और हृदय विदारक गीत में मुकेश, महेन्द्र और राजेन्द्र मेहता ने पार्श्वगायन किया था. आज भी यह गीत सुनकर रूलाई आती है और देशभक्ति के अनूठे जज़्बे से भीतर तक भिगो डालती है. यह कहा जा सकता है कि यह गीत राष्ट्रभक्ति के गीतों में एक महान गीत का दर्ज़ा रखता है.
जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़ियां करती हैं बसेरा (सिकन्दर-ए-आजम, 1965)
संगीतकार: हंसराज बहल
गीतकार: राजेन्द्र कृष्ण
गायन: मो. रफी एवं कोरस
यह गीत भारत के गौरवशाली अतीत, सांस्कृतिक सम्पन्नता और भारतीयता के आह्वान का गीत है, जिसे अत्यन्त सार्थक अर्थों में गीतकार राजेन्द्र कृष्ण ने कलमबद्ध किया था. मो. रफी की सदाबहार आवाज़ में सम्पन्न हुए इस गीत पर पृथ्वीराज कपूर की सिनेमाई अभिव्यक्ति भी शानदार लगती है. हमेशा से सदाबहार रहा यह गीत, आज भी हर एक के स्मरण में बिल्कुल नये जैसा है.
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