जब फिल्में शूट होती हैं तो इसके पीछे अच्छी खासी टीम लगती है. लाखों लोग पर्दे के पीछे काम करते हैं तब जाकर पर्दे पर एक सीन आता है जिसे देखकर आप तालियां बजाते हैं और वाह करते रह जाते हैं. एक सीन को पूरी हकीकत से उतारने की शिद्दत डायरेक्टर की सबसे बड़ी कामयाबी होती है. क्योंकि कई बार एक डायरेक्टर अपने एक्टर से कुछ ऐसा करवा जाता है जिसकी खुद एक्टर तक को उम्मीद नहीं होती. ऐसा ही एक सीन 1982 में आई फिल्म गांधी में था. इस सीन में महात्मा गांधी की अंतिम यात्रा को जिस तरह पर्दे पर उतारा गया उस तरह शायद दोबारा कभी देखने को नहीं मिला. यूं तो कोई ऐसा दर्दनाक सीन क्यों ही देखना चाहेगा लेकिन एक आर्ट पीस के तौर पर देखा जाए तो इसके पीछे एक दो नहीं बल्कि 3 लाख से ज्यादा लोगों की मेहनत थी.
एक सीन में थे तीन लाख से ज्यादा लोग
गांधी जी की अंतिम यात्रा वाले सीन में करीब तीन लाख से ज्यादा लोग शामिल थे. इन तीन लाख में दो लाख तो वॉलंटियर थे. वॉलंटियर यानी जो अपनी मर्जी से इस सीन का हिस्सा बनने के लिए आए थे. वहीं 94,560 लोगों को एक कॉन्ट्रैक्ट के तहत थोड़े पैसे देकर फिल्म का हिस्सा बनाया गया था. ये सीन 31 जनवरी 1981 को फिल्माया गया था. ये महात्मा गांधी की 33वीं पुण्यतिथि का मौका था. हर किसी की आंखें उन्हें याद कर नम थीं. ऐसे में कोई इस सीन का हिस्सा बनने से पीछे कैसे हट सकता था. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस फिल्म 11 क्रू ने मिलकर शूट किया था. फिल्म की फाइनल रिलीज में ये सीन 2 मिनट और 5 सेकेंड का था. जरा खुद ही सोचिए कि इसे लेकर लोगों की भावनाएं कैसी रही होंगी कि एक छोटे से सीन के लिए 3 लाख लोग जुट गए थे.
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