- ब्रिटेन के रॉयल नेवी का F-35B फाइटर जेट केरल के तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट पर हाइड्रोलिक फेल्योर के कारण एक महीने से अधिक समय से खड़ा है.
- 1976 में सोवियत पायलट विक्टर बेलेंको ने मिग-25 जेट लेकर जापान में इमरजेंसी लैंडिंग की, जिससे अमेरिका को विमान की तकनीक जांचने का मौका मिला,
- 2001 में अमेरिकी EP-3 इंटेलिजेंस विमान दक्षिण चीन सागर में चीनी फाइटर से टकराकर चीन में इमरजेंसी लैंड हुआ, चालक दल को हिरासत में लिया गया.
ब्रिटेन के रॉयल नेवी के F-35B लाइटनिंग II स्टील्थ फाइटर जेट को केरल के तिरुवनंतपुरम इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर खड़े-खड़े एक महीने से अधिक का वक्त गुजर चुका है. 14 जून को हाइड्रोलिक फेल्योर के बाद इमरजेंसी लैंडिंग करने वाले दुनिया के सबसे एडवांस फाइटर जेट में से एक, F-35B को ठीक करने की अबतक की तमाम कोशिशें फेल साबित हुई हैं. 6 जुलाई को, यानी इमरजेंसी लैंडिंग के तीन सप्ताह बाद, इंजीनियरिंग समस्याओं और हाइड्रोलिक खराबी को ठीक करने के लिए फाइटर जेट को एक हैंगर में खींचकर ले जाया गया था. यानी उसे खुले से हटाकर एक छत के नीचे रखा गया था.
यहां तो शुक्र है कि भारत और ब्रिटेन हर लिहाज से पार्टनर देश हैं और भारत से इस ब्रिटिश फाइटर जेट को कोई खतरा नहीं है, उलटे भारत उसे ठीक करने के लिए हर संभव मदद दे रहा है. लेकिन क्या आपको पता है कि इतिहास में दो ऐसे मौके भी आए हैं जब किसी देश का फाइटर जेट उसके दुश्मन देश में पहुंच गया था और आगे वाले ने उसका पुर्जा-पुर्जा खोल दिया था. चलिए आपको वक्त में पीछे ले चलते हैं और इन तीनों घटनाओं के बारे में बताते हैं.
साल 1976: जब सोवियत रूस का जेट लेकर पायलट अमेरिका के दोस्त के यहां उतर गया
1976 में, सोवियत पायलट विक्टर बेलेंको अपने मिग-25 फॉक्सबैट को लेकर जापान के एक एयरपोर्ट पर लैंड कर गया. तब वक्त शीत युद्ध का था और उस समय कई सोवियत सैन्य अधिकारी पाला बदल रहे थे. इस पायलट को भी अमेरिका में शरण चाहिए थी और इसलिए वो इस फाइटर जेट को लेकर अमेरिका के पार्टनर देश जापान पहुंचा था. यह एक महत्वपूर्ण घटना थी, क्योंकि उस समय मिग-25 को सबसे एडवांस सोवियत विमानों में से एक माना जाता था.
वाशिंगटन ने बेलेंको को शरण देने के अनुरोध को तुरंत मंजूरी दे दी. अमेरिका को बढ़िया मौका मिला था और वह मिग-25 फाइटर जेट का विश्लेषण करना चाहता था. उसमें कौनसी टेक्नोलॉजी इस्तेमाल होती है, अमेरका यह जानना चाहता था. तब अमेरिका और जापान ने मिलकर एक योजना बनाई. जापानी विदेश मंत्रालय ने सोवियत रूस को यह बताया कि मिग-25 का लैंडिंग गियर क्षतिग्रस्त हो गया है. उन्होंने बताया कि फाइटर जेट का अगल-अगल हिस्सों में करके वापस रूस भेजने के लिए इसे एक दूसरे एयर बेस ले जाना होगा.
साल 2001: जब अमेरिका के EP-3 सिग्नल इंटेलिजेंस विमान को चीन ने पकड़ा
1 अप्रैल 2001 को, अमेरिकी नौसेना का EP-3 सिग्नल इंटेलिजेंस विमान हवा में चीनी नौसेना के J-8II इंटरसेप्टर फाइटर जेट से टकरा गया. EP-3 क्रू एक सिग्नल इंटेलिजेंस मिशन में पांच घंटे तक था, जिसमें दक्षिण चीन सागर के ऊपर से उड़ानें शामिल थीं. तभी उन्हें दो चीनी नौसेना J-8 फाइटर जेट ने रोक लिया. अमेरिका की विमान इनमें से एक J-8 फाइटर प्लेन से टकरा गया. टक्कर के कारण चीनी नौसेना के पायलट की मृत्यु हो गई. EP-3 को काफी क्षति हुई. शुरू में तो EP-3 के चालक दल ने विमान से नियंत्रण खो दिया. लेकिन कई मिनटों के बाद, इमरजेंसी कंट्रोल के माध्यम से विमान को स्थिर किया गया. हालांकि चीन के द्वीप हैनान पर लिंगशुई हवाई क्षेत्र में बिना परमिशन इमरजेंसी लैंडिंग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.
हैनान पर उतरने के बाद, EP-3 के चालक दल के सभी 24 सदस्यों को चीनी सरकार ने हिरासत में ले लिया. हिरासत के दौरान चालक दल के कई सदस्यों से बार-बार पूछताछ की गई. चीनी सरकार ने EP-3 विमान को भी अपने कंट्रोल में ले लिया. चीनियों ने विमान पर मौजूद सभी खुफिया जानकारी ले ली और उपकरण उतार लिए. चालक दल और विमान को वापस अमेरिका को सौंपने पर बातचीत करने के राजनयिक प्रयासों में 11 दिन लग गए. चीनी सरकार बिना किसी शर्त चालक दल को रिहा करने को राजी थी, लेकिन उसने कहा कि विमान को केवल तभी वापस करेगी जब इसका पुर्जा-पुर्जा खोलकर अलग कर दिया जाएगा. 12 अप्रैल 2001 को चालक दल चीन से रवाना हुआ. EP-3 विमान को हैनान में ही तोड़ा गया और उसके टुकड़ों को किसी और विमान पर रख कर जॉर्जिया के एक हवाई अड्डे पर लौटा दिया गया. जुलाई 2001 में EP-3 विमान के हिस्से जॉर्जिया पहुंचने के बाद, विमान को फिर से जोड़ा गया और मरम्मत की गई. इसके बाद विमान को सेवा में वापस लाया गया.