एक रूसी खुफिया अधिकारी (Russian Intelligence Officer) ने दावा किया है कि 'तेजी से बढ़ रहे कैंसर' की वजह से राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (President Vladimir Putin) के पास जीने के लिए तीन साल का समय बचा है. रसियन फेडरल सिक्योरिटी सर्विस (FSB) के एक अधिकारी ने बताया है कि 69 वर्षीय पुतिन की आंखों की रोशनी भी खत्म हो रही है. यह जानकारी उन अटकलों के बीच आया है जब पुतिन का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ रहा है.
हालांकि, रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव (Russian Foreign Minister Sergei Lavrov) ने राष्ट्रपति पुतिन के बीमार होने की अटकलों का खंडन करते हुए कहा है कि किसी बीमारी की ओर इशारा करने वाले कोई संकेत नहीं है. इंडिपेंडेंट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एफएसबी अधिकारी ने ब्रिटेन में रहने वाले पूर्व रूसी जासूस बोरिस कार्पिचकोव को एक संदेश में पुतिन के स्वास्थ्य के बारे में नई जानकारी दी है.
उन्होंने कहा, "हमें बताया गया है कि वह सिरदर्द से पीड़ित हैं और जब वह टीवी पर दिखाई देते हैं तो उन्हें कागज पर लिखे गए बड़े अक्षरों की जरूरत होती है, ताकि वह पढ़ सकें कि वह क्या कहने जा रहे हैं. वे शब्द इतने बड़े हैं कि सभी पेज पर केवल कुछ वाक्य ही होते हैं. News.com.au द्वारा जारी संदेश के एक हिस्से के अनुसार, "उनकी आंखें गंभीर रूप से बिगड़ रही है."
मेट्रो और एक्सप्रेस ने आगे बताया कि पुतिन के अंग "अब भी अनियंत्रित रूप से कांप रहे हैं." मई महीने की शुरुआत में, एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें कहा गया था कि पुतिन ने अपने पेट के लिए एक सर्जरी करवाई थी. रूस की विदेशी खुफिया सेवा से जुड़े टेलीग्राम चैनल जनरल एसवीआर को ये जानकारी दी है.
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हालांकि, विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने रूसी राष्ट्रपति के स्वास्थ्य के बारे में अटकलों का खंडन किया है. रूस के शीर्ष राजनयिक ने फ्रांस के प्रसारक TF1 के एक सवाल का जवाब देते हुए कहा, "मुझे नहीं लगता कि समझदार लोग पुतिन में किसी तरह की बीमारी या बीमारी के लक्षण देख सकते हैं." उन्होंने कहा कि अक्टूबर में वो 70 वर्ष के हो जाएंगे और अभी हर दिन सार्वजनिक रूप से दिखाई देते हैं. विदेश मंत्री ने कहा, "आप उन्हें स्क्रीन पर देख सकते हैं, उनके भाषण पढ़ और सुन सकते हैं."
रूस में दो दशक से भी अधिक समय से सत्ता में बने व्लादिमीर पुतिन ने इसी साल 24 फरवरी को यूक्रेन में सेना भेजी, जिसने दुनिया भर को हैरान कर दिया. रूस के हमले में हजारों लोगों की मौत हो गई. वहीं लाखों लोगों ने दूसरे देशों में शरण ली, इससे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में सबसे बड़ा शरणार्थी संकट पैदा हुआ. जिसके बाद पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ कई प्रतिबंध लगाए.
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