- पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने इमरान खान को आठ मामलों में जमानत दी है, जिससे उनकी रिहाई की संभावना बढ़ी है.
- फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और इमरान खान के बीच सुलह की चर्चाएं चल रही हैं, लेकिन सेना ने इसे खारिज किया है.
- शहबाज शरीफ की राजनीतिक स्थिति कमजोर होती जा रही है और उनकी सेना के प्रति प्रशंसा विवादित हो गई है.
पाकिस्तान की सियासत एक बार फिर गर्म है. पूर्व प्रधानमंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के संस्थापक इमरान खान को सुप्रीम कोर्ट से आठ मामलों में जमानत मिल गई है. इस फैसले के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि इमरान खान जल्द ही जेल से बाहर आ सकते हैं. इधर, पाकिस्तान में यह अटकलें भी तेज हो गई हैं कि क्या पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और इमरान खान के बीच किसी किस्म का समझौता हो रहा है?
मुनीर की तारीफों के पुल बांध रहे शहबाज शरीफ
दूसरी ओर प्रधानमंत्री मियां शहबाज शरीफ की स्थिति लगातार कमजोर होती दिख रही है. महज चार साल में उनकी कुर्सी दो बार डगमगा चुकी है. 14 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शहबाज शरीफ ने फील्ड मार्शल आसिम मुनीर की तारीफों के पुल बांधे थे. लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि क्या उन्होंने पाकिस्तान का इतिहास भूलकर सेना की ताकत को नजरअंदाज कर दिया?
पाकिस्तान में सेना का रुतबा हर क्षेत्र में छाया हुआ है. सियासत, अदालत, और सत्ता के गलियारों में उसकी पकड़ अटूट है. वह चाहे तो खुद सत्ता संभाले, किसी को तख्त पर बिठाए, या जेल की सलाखों के पीछे धकेल दे. इन दिनों पाकिस्तानी फौज अपने पुराने रंग में नजर आ रही है, और इसका इशारा 17 अगस्त 2025 को द जंग अखबार में छपे एक लेख से मिला.
सुहैल वराइच का दावा और फौज का खंडन
वरिष्ठ पत्रकार सुहैल वराइच ने अपने लेख "मुसाफिर बनाम कैदी नंबर 804" में ब्रुसेल्स में हुई एक बैठक का जिक्र किया. इस बैठक में उन्होंने फील्ड मार्शल आसिम मुनीर से दो घंटे तक बातचीत की. वराइच ने दावा किया कि मुनीर ने कहा कि फौज इमरान खान के साथ सुलह को तैयार है, बशर्ते इमरान 9 मई 2023 की हिंसा के लिए माफी मांगें. इस खबर ने सियासी हलकों में खलबली मचा दी. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की कुर्सी खतरे में पड़ गई, और उन्होंने फौज के सामने गिड़गिड़ाकर तात्कालिक राहत पाई.
'फौज ने तीन दिन तक खंडन क्यों नहीं किया?'
लेकिन फौज ने इस खबर को "मनगढ़ंत" बताकर खारिज कर दिया. डीजीआईएसपीआर ने एक कार्यक्रम में कहा कि वराइच की खबर का हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है. पत्रकार अम्मार मसूद ने सवाल उठाया कि अगर यह खबर झूठी थी, तो फौज ने तीन दिन तक खंडन क्यों नहीं किया? मसूद का दावा है कि उनके सूत्र उस ब्रुसेल्स बैठक में मौजूद थे, जहां आसिम मुनीर, गृह मंत्री मोहसिन नकवी, सुहैल वराइच, और एक अन्य व्यक्ति मौजूद था.
इमरान खान और पीटीआई का संघर्ष
पाकिस्तान में एक ओर इमरान खान और फौज के बीच गुप्त बातचीत की चर्चा है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के समर्थक सड़कों पर डटे हुए हैं. 9 मई 2023 को इमरान की गिरफ्तारी के बाद देश में हिंसा भड़की थी, जिसमें पीटीआई कार्यकर्ताओं ने फौज से जुड़े ठिकानों को निशाना बनाया. तब से इमरान और फौज के बीच तल्खी चरम पर है. पीटीआई नेता जमाल सिद्दीकी का कहना है कि इमरान पर लगे झूठे मुकदमों को खत्म कर उन्हें रिहा करना होगा, वरना पाकिस्तान का विकास असंभव है.
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई हिंसा से जुड़े आठ मामलों में इमरान को जमानत दी है, लेकिन अल कादिर ट्रस्ट भ्रष्टाचार केस उनकी रिहाई में बड़ा रोड़ा बना हुआ है. इस केस में इमरान और उनकी पत्नी बुशरा बीबी पर 25.49 करोड़ डॉलर के भ्रष्टाचार का आरोप है. रावलपिंडी की भ्रष्टाचार-निरोधक अदालत ने इमरान को 14 साल और बुशरा को 7 साल की सजा सुनाई है.
आसिम मुनीर और शहबाज शरीफ: सियासी खींचतान
पाकिस्तान में सत्ता और सेना के बीच सतह पर सबकुछ शांत दिखता है, लेकिन अंदरखाने तनाव पनप रहा है. आसिम मुनीर और शहबाज शरीफ के बीच मतभेद साफ नजर आते हैं. मुनीर जहां अमेरिका के साथ गठजोड़ मजबूत कर रहे हैं, वहीं शहबाज ईरान जैसे अमेरिका विरोधी देशों के साथ नजदीकी दिखा रहे हैं. शहबाज अपने हर भाषण में मुनीर की तारीफ करते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुनीर की बढ़ती सक्रियता से उनकी बेचैनी साफ झलकती है.
पाकिस्तान में महंगाई और बेरोजगारी ने शहबाज सरकार के खिलाफ जनता का गुस्सा बढ़ा दिया है. फौज इस गुस्से को शहबाज की नाकामी के तौर पर पेश कर रही है. विश्लेषकों का मानना है कि मुनीर इस जनाक्रोश को शांत करने के लिए इमरान को सत्ता सौंपकर पर्दे के पीछे से सरकार चलाने की रणनीति पर विचार कर रहे हैं. लेकिन अल कादिर ट्रस्ट केस इस योजना में सबसे बड़ा अड़ंगा है.
इमरान की रिहाई: सिर्फ 15 मिनट की दूरी?
पत्रकार समीना पाशा के हवाले से वकील सलमान सफदर का कहना है कि अल कादिर ट्रस्ट केस में इमरान की सजा को एक सुनवाई और 15 मिनट में निलंबित किया जा सकता है. अगर फौज चाहे, तो यह मामला आसानी से हल हो सकता है. लेकिन इमरान की रिहाई शहबाज के लिए सबसे बड़ा खतरा है. शहबाज को डर है कि अगर फौज इमरान को आगे लाती है, तो उनकी सत्ता छिन सकती है.
फौज का दांव और जनता का आक्रोश
पाकिस्तान की जनता का गुस्सा भले ही शहबाज के खिलाफ दिख रहा हो, लेकिन यह वही जनता है जो मौका मिलने पर फौज के खिलाफ भी आवाज बुलंद कर सकती है. मुनीर इस बगावत को टालने के लिए शहबाज को बलि का बकरा बनाने पर विचार कर रहे हैं. अगर ऐसा हुआ, तो इमरान की सत्ता में वापसी हो सकती है, लेकिन असल नियंत्रण फौज के हाथों में ही रहेगा.
पाकिस्तान की सियासत में इमरान, मुनीर और शहबाज के बीच यह त्रिकोणीय जंग किसी भी वक्त नया मोड़ ले सकती है. 78 साल के इतिहास में पाकिस्तान को अभी तक एक भी ऐसा प्रधानमंत्री नहीं मिला, जो पांच साल तक सत्ता में टिक सके. क्या इमरान खान यह इतिहास रच पाएंगे, या फौज का अगला दांव शहबाज को सत्ता से बेदखल कर देगा? यह सवाल अभी अनुत्तरित है.