पाकिस्तान ने ‘पानी रोको’ एक्शन पर बनाए ये 4 प्लान, जानें कैसे भारत सब पर फेर देगा पानी

Pahalgam Terrorist Attack: कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर एक्शन लेते हुए भारत ने सिंधु जल संधि को "स्थगित" कर दिया है. ऐसे में कुछ कानूनी कार्रवाई का इच्छुक पाकिस्तान, कुछ राहत पाने के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय अदालत में ले जाने की योजना बना रहा है.

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भारत के पीएम नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ

कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले (Pahalgam Terrorist Attack) पर एक्शन लेते हुए भारत ने सिंधु जल संधि को "स्थगित" कर दिया है. ऐसे में कुछ कानूनी कार्रवाई का इच्छुक पाकिस्तान, कुछ राहत पाने के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय अदालत में ले जाने की योजना बना रहा है.

1960 में दोनों पड़ोसी देशों के बीच हुआ यह समझौता, 1965, 1971 और 1999 में लड़े गए तीन युद्धों के बाद भी जिंदा रहा था, इसे स्थगित नहीं किया गया था. लेकिन इस बार जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान से जुड़े आतंकवादियों ने जब दर्जनों नागरिक पर्यटकों को मार डाला, तब नई दिल्ली ने जल संधि को तब तक रोक दिया जब तक कि "पाकिस्तान विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से" सीमा पार आतंकवाद के लिए अपना समर्थन खत्म नहीं करता."

इस कदम से बौखलाए पाकिस्तान ने कहा कि "पाकिस्तान के हिस्से वाले पानी के प्रवाह को रोकने या मोड़ने का कोई भी प्रयास युद्ध की कार्रवाई (एक्ट ऑफ वॉर) माना जाएगा".

पाकिस्तान की '4-सूत्रीय योजना'

पाकिस्तान पहले से ही जल संकट से जूझ है, पहले से ही गंभीर रूप से सूखा हुआ है. अब वह अपने लाखों नागरिकों को राहत दिलाने के लिए समाधान खोज रहा है और उसके लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने को तैयार है. पाकिस्तान के कानून और न्याय राज्य मंत्री अकील मलिक ने सोमवार देर रात समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि इस्लामाबाद कम से कम तीन अलग-अलग कानूनी विकल्पों की योजना पर काम कर रहा है, जिसमें इस मुद्दे को संधि के सूत्रधार विश्व बैंक में उठाना भी शामिल है.

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मंत्री ने कहा, इस्लामाबाद स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration) या हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में कार्रवाई करने पर विचार कर रहा है, जहां वह आरोप लगा सकता है कि भारत ने संधियों के कानून पर 1969 वियना कन्वेंशन का उल्लंघन किया है. मलिक ने कहा, "कानूनी रणनीति पर विचार-विमर्श लगभग पूरा हो चुका है." उन्होंने यह भी कहा कि किन मामलों को आगे बढ़ाना है इसका निर्णय "जल्द" किया जाएगा और इसमें संभवतः एक से अधिक रास्ते अपनाना शामिल होगा.

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मलिक ने आगे कहा कि इस्लामाबाद जिस चौथे राजनयिक विकल्प पर विचार कर रहा है, वह इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाना है. उन्होंने कहा, "सभी विकल्प मेज पर हैं और हम संपर्क करने के लिए सभी उचित और सक्षम मंचों पर विचार कर रहे हैं."

लेकिन पाकिस्तान के ये प्लान संभवतः सफल नहीं होगा. आगे बताते हैं क्यों:

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय यानी ICJ का क्षेत्राधिकार पूरी तरह से देशों की सहमति पर आधारित है, न कि उसके फैसले को मानना किसी का सार्वभौमिक दायित्व है. देश चाहें तो इसकी पूरी तरह स्वीकार कर सकते हैं, पूरी तरह इन्कार कर सकते हैं या आंशिक रूप से मान सकता हैं. भारत अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित आदेश का पालन करता है. 27 सितंबर, 2019 को उसने ICJ के अधिकार क्षेत्र को "अनिवार्य" के रूप में मान्यता देते हुए एक घोषणा प्रस्तुत की थी. हालांकि भारत ने 13 अपवाद भी बताए थे जिसमें ICJ का भारत पर अधिकार क्षेत्र नहीं होगा. इसमें से एक था कि ICJ के पास किसी भी ऐसे देश की सरकार के साथ भारत का विवाद नहीं जाएगा, जो राष्ट्रमंडल राष्ट्रों का सदस्य है या रहा है. इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान, जो एक राष्ट्रमंडल राष्ट्र है, भारत को ICJ में नहीं ले जा सकता है.

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इसी तरह एक अपवाद यह है कि ICJ के पास शत्रुता, सशस्त्र संघर्ष, आत्मरक्षा में किए गए व्यक्तिगत या सामूहिक कार्यों से जुड़े विवादों में कोई क्षेत्राधिकार नहीं होगा जिसमें भारत शामिल है, रहा है या भविष्य में शामिल हो सकता है.

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स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के लिए (Permanent Court of Arbitration) भी भारत की इसी तरह की सहमती की जरूरत होती है. यानी पाकिस्तान का यह प्लान भी काम नहीं आएगा.

अब बात मामले को विश्व बैंक में ले जाने की. दोनों देशों के बीच मध्यस्थ की सीमित भूमिका निभाने के अलावा विश्व बैंक के पास सिंधु जल संधि पर कोई अधिकार क्षेत्र भी नहीं है. विश्व बैंक संधि का संरक्षक नहीं है, और केवल असहमति के समय बातचीत को प्रोत्साहित कर सकता है.

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