पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रांत एक बार फिर खबरों में है. यहां अलगाववादी विद्रोहियों ने लगभग 450 लोगों को ले जा रही ट्रेन, जाफर एक्सप्रेस को हाइजैक कर लिया. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने हमले की जिम्मेदारी ली. पाकिस्तान की आर्मी का दावा है कि 30 घंटे के इस हाइजैक में 21 लोगों की हत्या हुई वहीं ट्रेन पर मौजूद 28 जवानों को भी मार दिया गया. रेस्क्यू ऑपरेशन चलाने वाली आर्मी ने 33 विद्रोहियों को मार गिराने का भी दावा किया है. सवाल है कि बलूचिस्तान के लोगों ने अपनी सरकार के खिलाफ हथियार क्यों उठा रखे हैं? आखिर वहां के हालात ऐसे क्यों हैं कि हर गुजरते साल वहां से कोई-न-कोई हिंसक विद्रोह की खबर आती ही रहती है. हिंसा, बगावत और न जी जा सकने वाली जिंदगियों की कहानी शुरू से शुरू करते हैं.
बलूचिस्तान की कहानी
पाकिस्तान के बनने के बाद से ही जातीय बलूचियों और पाकिस्तानी सरकार के बीच ऐतिहासिक रूप से संघर्ष चलता रहा है. अगस्त 1947 में भारत से अलग होने के छह महीने बाद, 1948 में इस प्रांत पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था और तब से यह कई अलगाववादी आंदोलनों का गवाह रहा है. आगे साल बीतने के साथ यह भाषा, जातीयता, इतिहास, भौगोलिक भेद, सांप्रदायिक असमानताओं, औपनिवेशिक कलंक और राजनीतिक अलगाव के आधार पर एक हिंसक संघर्ष में बदलता गया.
बलूचिस्तान की पीड़ा को समझने के लिए हमें बलूचिस्तान की आवाम को समझना होगा. इसके लिए इंडियन कॉउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स की साइट पर छपी रिसर्च फैलो डॉ. ध्रुबज्योति भट्टाचार्जी के पेपर को देखा.
इसके अनुसार बलूचिस्तान मुख्य रूप से एक जनजातीय समाज है जो भौगोलिक रूप से पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है (कुल भूभाग का 46%) लेकिन जनसंख्या के हिसाब से सबसे छोटा (कुल जनसंख्या का लगभग 6%). बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे पिछड़ा प्रांत है. यहां पाकिस्तान के किसी भी प्रांत के मुकाबले सामाजिक-आर्थिक विकास के सबसे खराब संकेतक हैं. बलूचिस्तान खूद तो हाइड्रोकार्बन और खनिजों से समृद्ध है, फिर भी इसके 1.5 करोड़ निवासियों में से 70% गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं. ऐसा लगता है कि यहां आकर पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकारी संस्थाएं खुद वेंटिलेटर पर चली जाती हैं. पाकिस्तान के बनने के बाद से ही बलूचिस्तान का इतिहास उग्रवाद और विद्रोह के साथ-साथ दोनों को कुचलने के सरकारी कोशिशों से भरा पड़ा है.
बलूचिस्तान ट्रेन हाइजैक के बाद चलता रेस्क्यू ऑपरेशन
Photo Credit: एएफपी
बलूचिस्तान के लोग मानते हैं कि अंग्रेजों कि तरह ही इस्लामाबाद में बैठी सरकारों और आर्मी ने प्राकृतिक संसाधनों और इसकी भू-रणनीतिक स्थिति के लिए इस प्रांत का शोषण किया है.
बलूचिस्तान में मिडिल वर्ग का उदय और असमानता की भावना
डॉ. ध्रुबज्योति भट्टाचार्जी का मानना है कि बलूचों में जो राष्ट्रवाद की भावना ने जन्म लिया है वह प्रांत में पाकिस्तान की केंद्रीय सरकार की वैधता को खतरे में डालती है. राष्ट्रवाद और विद्रोह की यह भावना बलूचियों में मिडिल क्लास और बुद्धिजीवियों के उदय के साथ उभरी है. दरअसल अस्सी और नब्बे के दशक के दौरान, राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता और रुक-रुक कर होने वाली हिंसा के कारण, यहां के युवा या तो बलूचिस्तान से बाहर चले गए या विदेश चले गए. उनमें से अधिकांश आज के शिक्षित मिडिल क्लास के रूप में वापस लौटे हैं, जिनके पास आधुनिक विचार हैं, उनमें मजबूत जातीय-राष्ट्रवाद की भावना विकसित हुई है और वे अपने क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. दिक्कत यह है कि पाकिस्तान के अंदर उन्हें प्रशासन या सेना में उच्च पदों से बाहर रखा गया है, क्योंकि इस पर ज्यादातर पाकिस्तानी पंजाब और सिंध प्रांतों के लोगों का कब्जा है.
उदाहरण के लिए ग्वादर मेगा-पोर्ट परियोजनाओं के निर्माण जैसे प्रांत में 62 बिलियन डॉलर के चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत अन्य उद्यम पर यहां की जनता की राय जानना, उसे अमल में लाना. इस प्रोजेक्ट के बारे में बलूचियों का मानना है कि इससे सिर्फ उनके संसाधनों का शोषण हो रहा है. इसी तरह यहां कि सुई गैस भंडार का दोहन और को डिक खदान का विकास. बलूचों ने कहा कि इससे पाकिस्तानी पंजाब प्रांत के लोगों को लाभ हुआ है, हमें नहीं. इन सभी प्रोजेक्ट से सरकार को जो राजस्व मिला, वो इस तरह से नहीं बांटा गया है जिससे प्रांत के लोगों को लाभ हो सके. यह असंतोष और अलगाव का एक प्रमुख फैक्टर रहा है.
हिंसक विद्रोही संगठनों का बनना
इस्लामाबाद स्थित सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज के अनुसार, पिछले साल बलूचिस्तान में हिंसा में वृद्धि देखी गई है. 2023 की तुलना में 2024 के अंदर हमलों में 90% की वृद्धि हुई है. उग्रवाद के प्रति पाकिस्तान की आर्मी की कठोर प्रतिक्रिया की मानवाधिकार समूहों ने आलोचना की है. बलूचिस्तान में विद्रोह की आवाज उठाने वाले नेता या आम लोग तक बड़े पैमाने पर ‘गायब' हो जा रहे हैं और बाद में उनकी बॉडी मिल रही. पाकिस्तानी आर्मी पर अपना कोर्ट चलाने और खुद फैसला सुनाकर हत्याओं का आरोप लगता रहा है.
बलूचिस्तान ट्रेन हाइजैक के बाद चलता रेस्क्यू ऑपरेशन
Photo Credit: एएफपी
1947 में पाकिस्तान के बनने के बाद से बलूचिस्तान में कम से कम पांच अलगाववादी विद्रोह हुए हैं. सबसे नया वाले की 2000 के दशक की शुरुआत हुई. प्रांत के संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने पर ध्यान केंद्रित किया गया, लेकिन जल्द ही पूर्ण स्वतंत्रता की मांग बढ़ गई. ऐसे में ही बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA)का जन्म हुआ. BLA अफगानिस्तान और ईरान की सीमा से लगे क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय कई विद्रोही समूहों में सबसे मजबूत है. BLA ने एक ही मकसद बना रखा है, बलूचिस्तान की आजादी.
इन सबके बीच पाकिस्तान की आम जनता हिंसा में पिस रही है. ट्रेन हाइजैक में आम जनता और आर्मी के जवानों की हत्या हो या विदेशी नागरिकों पर हमला, इसका न केवल बलूच प्रांत बल्कि पूरे पाकिस्तान पर गहरा सामाजिक और आर्थिक प्रभाव पड़ रहा. मानवाधिकार समूहों का मानना है कि जब तक बलूच जातीय पहचानों के बीच अलगाव की शिकायतों और उनकी वजहों पर ध्यान नहीं दिया जाता, बलूच विद्रोह बढ़ता रहेगा. पाकिस्तानी सरकार और आर्मी बंदूक के दम पर समाधान नहीं निकाल सकती. स्थायी शांति के लिए सभी स्टेकहोर्डर्स को साथ लेकर चलना होगा, उनकी परेशानी सुननी होगी, उसे दूर करना होगा.
यह भी पढ़ें: ट्रेन हाइजैक: आतंकवाद पर 'जर्ब-ए-अज्ब ' का दिखावा आज पाकिस्तान को ही दे रहा दर्द