झारखंड की रहने वाली खिलाड़ी के पास हॉकी स्टिक तक नहीं थी. बांस से हॉकी स्टिक बनाकर खेलती थी. गांव में हॉकी का मैदान नहीं है. गांव की गलियों में हॉकी खेलना शुरू किया, लेकिन अब ओलिंपिक तक पहुंच गई है. आज भी यह गांव में खेती में मदद करती है. इस महिला खिलाड़ी के संघर्ष की कहानी, लेकर आए हैं सुशील महापात्र.