पिछले कुछ वर्षों में हमने मनरेगा पर बात करना बंद कर दिया है. इसलिए हम ठीक ठीक नहीं जानते कि जो मजदूर गांव में पहले से थे क्या उन्हें मनरेगा से काम मिल रहा है. क्या मनरेगा के बजट में इतनी क्षमता है कि जो पहले से गांव में थे, उन सबको 100 दिन का रोजगार दे सके. अब जब कई राज्यों में लाखों की संख्या में मजदूर आए हैं, क्या मनरेगा उनको काम दे सकता है. लॉकडाउन में ठप पड़ी अर्थव्यवस्था का हाल ये है कि बीबीए और एमए बीए़ड करने वाले युवा भी मनरेगा के तहत मज़दूरी कर रहे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ये वो युवा हैं जो लॉकडाउन से पहले वाशिंग पाउडर और बिस्कुट कंपनी में 8 से 12 हजार की नौकरी करते थे लेकिन अब 200 रुपए दिहाड़ी पर मिट्टी पाटने का काम कर रहे हैं.