मंदिरों और मज़ारों में प्रवेश और पूजा का अधिकार अभी तक पूरी तरह से सभी को हासिल नहीं हो सका है. हमारे समाज में आज तक छुआछूत अलग अलग रूपों में मौजूद हैं. कई बार हाउसिंग सोसायटी में अघोषित तरीके से मज़हब और जाति के आधार पर पाबंदियों के किस्से सुनने को मिलते रहते हैं. बीसवीं सदी से मंदिरों में प्रवेश के अधिकार की लड़ाई हो रही है, इक्कीसवीं सदी के 16वें साल में भी चल रही है. भूमाता ब्रिगेड और भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने इस संघर्ष को फिर से ज़िंदा कर दिया है.