क़ानून और इंसाफ़ का ये हाल देखकर अफ़सोस भी होता है और हैरानी भी. राजनीति अपनी विकृतियां और समाज की विफलताएं छुपाने के लिए तरह-तरह के जतन करती है- इनमें से एक कानून कड़े करना भी है. गुरुवार को पॉक्सो- यानी प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन अगेंस्ट सेक्शुअल ऐब्यूजेज़ ऐक्ट को संशोधित कर उसमें नई सज़ाएं, नए जुर्माने जोड़ दिए गए. बेशक, बच्चों के साथ बढ़ते यौन अपराधों को देखते हुए इस कदम की सराहना करने की इच्छा होती है. लोकसभा में सभी दलों ने मिल कर ये बिल पास किया. लेकिन ये सवाल फिर भी बचा रहता है कि जब हम पुराने क़ानूनों के तहत ही ऐसे यौन अपराधियों को सजा नहीं दिला पा रहे, तो नए क़ानूनों का क्या होगा.