तीन दिनों तक जलने के बाद दिल्ली के कई इलाकों में अब जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर वापस आ रही है. सीएए के समर्थन और विरोध में हुई हिंसा ने सांप्रदायिक रंग ले लिया. अब तक इसमें 40 से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. 200 से भी ज्यादा लोग जख्मी हैं. पुलिस ने अभी तक 48 एफआईआर दर्ज की हैं. 500 से भी ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया है. दिल्ली पुलिस ने इसकी जांच के लिए दो एसआईटी बना दी हैं. पुलिस की भूमिका पर कई गंभीर सवाल उठे हैं. सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट ने हिंसा रोकने में दिल्ली पुलिस की नाकामी पर प्रश्नचिन्ह लगाया है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि भड़काऊ भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए दिल्ली पुलिस को निर्देश का इंतजार क्यों करना होता है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस सुधार के लिए प्रकाश सिंह मामले में दिए गए उसके आदेश का पालन क्यों नहीं हो रहा. वहीं दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस मुरलीधर और तलवंत सिंह की पीठ ने कोर्टरूम में बीजेपी नेताओं के भड़काऊ भाषणों के वीडियो चलवाए और दिल्ली पुलिस के रवैये पर नाराजगी जताई. पुलिस की भूमिका पर कई पीड़ितों ने भी सवाल उठाए हैं जिनका आरोप है कि पुलिस ने पक्षपाती रवैया अपनाया और समय रहते मदद नहीं की. सवाल उठते हैं कि दिल्ली पुलिस ने समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं की? क्या हमारी पुलिस व्यवस्था के हाथ बंधे हुए हैं?