यह कहानी है 'पुरानी दिल्ली के गांधी', यानी 62-वर्षीय मोहम्मद अहमद सैफ़ी की, जिनके सफाई को लेकर जज़्बे और जोश ने उन्हें अपने पड़ोस को साफ-सुथरा बनाने का बीड़ा उठाने पर मजबूर कर दिया, क्योंकि मौजूदा सिस्टम अपना काम नहीं कर पाया. नगर निगम की हड़ताल से शुरू हुआ निस्वार्थ भावना से काम किए जाने का यह उदाहरण हड़ताल खत्म होने के बहुत बाद तक जारी रहा. पिछले छह साल से सैफ़ी साहब हर वक्त हाथ में झाड़ू लिए नज़र आते हैं, ताकि सफाई अभियान कहीं रुक न जाए.