नेपाल में हुए तख्तापलट की जड़ें सोशल मीडिया बैन से कहीं ज़्यादा गहरी हैं, जिसकी शुरुआत एक 11 साल की बच्ची के साथ हुए हादसे से हुई थी। अगस्त महीने में एक प्रांतीय मंत्री की सरकारी गाड़ी ने बच्ची को टक्कर मारी और भागने की कोशिश की, जिससे स्थानीय लोगों का गुस्सा भड़क उठा। मंत्री के ड्राइवर को 24 घंटे में रिहा करने और प्रधानमंत्री केपी ओली द्वारा इसे 'मामूली घटना' करार देने से 'जेन-ज़ी' युवाओं में आक्रोश फैल गया। पहले से ही बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से जूझ रहे युवाओं ने सोशल मीडिया पर #JusticeForTheGirl और #HatyaraSarkar जैसे हैशटैग चलाकर अपना विरोध दर्ज कराया। जब 4 सितंबर को ओली सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया, तो यह चिंगारी भड़क उठी। 8 और 9 सितंबर को बड़े पैमाने पर हुए प्रदर्शनों में युवाओं ने संसद, राष्ट्रपति भवन और प्रधानमंत्री कार्यालय पर धावा बोल दिया, जिससे ओली को इस्तीफा देकर छिपना पड़ा और अब नेपाल की कमान सेना के हाथ में है। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि कैसे एक छोटी सी त्रासदी भी बड़े राजनीतिक बदलावों का कारण बन सकती है।