सालार मसूद गाजी मेला विवाद पर जामिया के प्रोफेसर ने क्या कहा.
औरंगज़ेब को लेकर जारी विवाद के बीच उत्तर प्रदेश में गाजी मसूद विवाद (Salar Masood Ghazi Mela Controversy) बढ़ गया है. ये विवाद सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी उर्फ़ गाजी मियां (Who is Salar Ghazi) के मेले को लेकर शुरू हुआ है. इसको नेज़े का मेला भी कहा जाता है. बहराइच और संभल में गाजी के नाम पर मेला लगता है. हिंदू संगठन सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी को मुगल आक्रांता कहकर मेले का विरोध कर रहे हैं. वहीं मुस्लिमों की रहनुमाई करने वाले उसे सूफ़ी संत करार दे रहे हैं. आखिर मसूद गाजी को लेकर ये मेला शुरू कैसे हुआ जानिए.
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मसूद गाजी के बारे में पॉपुलर कल्ट क्या है?
जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आरपी बहुगुणा ने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि वह महमूद गजनबी का भांजा था. गजनबी ने 11वीं शताब्दी में जब भारत पर आक्रमण किया तब मसूद भी उसके साथ आया था. मसूद गाजी के नाम पर बहुत ही पॉपुलर कल्ट है कि 1034 में बहराइच के राजा के साथ युद्ध में वह मारा गया था. जिस दिन मसूद मारा गया उसी दिन उनकी शादी होने वाली थी.ये बातें धीरे-धरे यूपी के कुछ शहरों में फैलने लगीं.
पहली बार कब मिला मसूद गाजी का प्रमाण?
इतिहासकारों के लिए परेशानी भरी बात ये है कि फारसी में महमूद गजनबी से संबंधित जितने भी प्रामाणिक सोर्स हैं, उनमें कहीं भी सलार मसूद गाजी का नाम नहीं हैं. कहीं भी ये प्रमाण नहीं मिलता कि इस नाम का कोई शख्स महमूद गजनबी के साथ भारत आया था और भारत के किसी हिस्से में उसने आक्रमण किया था.
मसूद गाजी की मजार से जुड़ा 300 साल वाला किस्सा
इतिहास में सालार मसूद गाजी का जिक्र नहीं मिलने को लेकर प्रोफेसर आरपी बहुगुणा ने कहा कि महमूद गजनबी के आक्रमण 10वीं शताब्दी के बिल्कुल अंत में शुरू हुए. 1027 में उसका आखिरी आक्रमण हुआ और 1030 में उसकी मृत्यु हो गई. 14वीं शताब्दी में मोहम्मद तुगलक के समय में पहली बार ये पता चला कि बहराइच में सालार मसूद गाजी की मजार है. बहराइच में 300 सालों के बाद पहली बार उसकी मजार होने का प्रमाण मिला.
बहराइच में कैसे पॉपुलर हुई मसूद गाजी की मजार?
फिरोज तुगलक के बहराइच जाने से मसूद की दरगाह और मजार और भी ज्यादा पॉपुलर हो गई. ऐसा कहा जाता है कि फिरोज तुगलक के समय में हिंदू और मुस्लिम साधु-संत मिलकर बांस के एक डंडे पर रंग बिरंगे कपड़ों के टुकड़े लगाकर वहां नांचते थे. कहा जाता है कि सूफी संत के तौर पर मसूद आम जनता के सरोकारों से जुड़ा हुआ था. कहा ये भी जाता है कि सिकंदर लोदी ने ये सब रोकने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि ये इस्लामी है, इसीलिए ये नहीं होना चाहिए. लेकिन वह कामयाब नहीं हो सके.