- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किडनैप मामले में पुलिस की लापरवाही और महिला को बरामद न करने पर कड़ी नाराजगी जताई.
- पुलिस एफआईआर के बाद भी किडनैप महिला का पता नहीं लगा सकी है.
- कोर्ट ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर चिंता जताते हुए एसपी बिजनौर को महिला को बरामद करने का निर्देश दिया है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिजनौर से जुड़े एक मामले में किडनैप हुई महिला को पुलिस द्वारा बरामद न करने पर सुनवाई करते हुए तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने पुलिस की लापरवाही और कार्यपशैली को लेकर चिंता जताते हुए कहा है कि कोर्ट अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता, जब ऐसा लग रहा है कि एक गरीब आदमी दर-दर भटक रहा है और पुलिस ने उसकी पत्नी को बरामद करने के बजाय फ़ाइनल रिपोर्ट लगा दी है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी के कथित अपहरण के मामले में पुलिस द्वारा अंतिम रिपोर्ट लगाए जाने और महिला को बरामद न करने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए ये टिप्पणी की है. ये टिप्पणी जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की सिंगल बेंच ने ब्रजेश उर्फ ब्रजपाल की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की है.
क्या है पूरा मामला
मामले के अनुसार आवेदक ब्रजेश ने अपने खिलाफ 2012 में बिजनौर के कोतवाली शहर थाने में आईपीसी की धारा 364, 323 और 506 IPC में दर्ज मामले में जमानत पर रिहा होने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फरवरी 2025 में जमानत याचिका दाखिल की थी. प्रॉसिक्यूशन के मुताबिक शिकायतकर्ता ने 8 अगस्त 2012 को एक एफआईआर दर्ज कराई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि आवेदक और सह-आरोपी उसकी पत्नी को बिजनौर के सुभाष चौराहा से बिना किसी रजिस्ट्रेशन नंबर वाली सफेद मारुति कार में जबरदस्ती ले गए.
पुलिस ने जांच के बाद 18 दिसंबर 2013 को इस आधार पर फाइनल रिपोर्ट पेश की कि शिकायतकर्ता की पत्नी के किडनैप होने का कोई गवाह नहीं था. हालांकि यह बहुत हैरानी की बात थी कि पुलिस उस महिला उषा देवी का पता अबतक नहीं लगा पाई है जिसे आवेदक और सह-आरोपी ने किडनैप किया था. इसके बाद पहले शिकायतकर्ता ने एक प्रोटेस्ट पिटीशन फाइल की जिसे कंप्लेंट केस के तौर पर रजिस्टर किया गया और उसके बाद आवेदक ब्रजेश और सह-आरोपी को 22 जुलाई 2016 को ट्रायल कोर्ट द्वारा समन किया गया.
कोर्ट में समन ऑर्डर के खिलाफ रिवीजन फाइल की जिसे रिजेक्ट कर दिया गया. इसके बाद आरोपियों ने कोर्ट में सरेंडर किया और बेल एप्लीकेशन फाइल की जिसे 24 जनवरी 2025 को रिजेक्ट कर दिया गया. आवेदक ने फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत याचिका दाखिल की. आवेदक की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड देखने से ऐसा लगता है कि जांच करते समय पुलिस ने लापरवाही की क्योंकि एक बार किडनैपिंग का केस दर्ज होने के बाद पुलिस को किडनैप हुई महिला को बरामद करना था. ऐसे हालात में कोर्ट अपनी आंखें बंद नहीं कर सकता जब ऐसा लगे कि एक गरीब आदमी दर-दर भटक रहा है और पुलिस ने उसकी पत्नी को बरामद करने के बजाए फाइनल रिपोर्ट लगा दी है.
कोर्ट ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी की और कहा कि सीआरपीसी की 482/528 BNSS के तहत हाईकोर्ट में क्रिमिनल मामलों को देखने वाले हर कोर्ट को विशेषाधिकार स्वाभाविक रूप से मिला हुआ है और यह कोर्ट एसपी बिजनौर को शिकायत करने वाले गजराम सिंह की किडनैप पत्नी ऊषा देवी को बरामद करने का निर्देश देती है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में 8 अगस्त 2012 को बिजनौर के कोतवाली सिटी थाने में एफआईआर भी दर्ज हुई थी और 18 दिसंबर 2013 को पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट भी लगा दी थी.
एसपीओ को खुद होना पड़ेगा पेश
कोर्ट ने सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया यह कि बताई गई महिला को बरामद करने के बाद उसे अगली लिस्टिंग की तारीख पर इस कोर्ट के सामने पेश किया जाएगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किडनैप हुई महिला को पेश नहीं किया जाता है तो एसपीओ बिजनौर खुद अगली डेट पर इस कोर्ट के सामने पेश होंगे.
कोर्ट ने निर्देश दिया कि इस मामले में इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर जिसने इस मामले की जांच की थी और साथ ही इस केस के शिकायतकर्ता यानी गजराम सिंह भी अगली लिस्टिंग की तारीख पर इस कोर्ट के सामने पेश होंगे. रजिस्ट्रार (कम्प्लायंस) को कोर्ट ने निर्देश दिया कि वह इस ऑर्डर को तुरंत एसपी बिजनौर को कम्प्लायंस के लिए भेजेंगे.