सोशल मीडिया पोस्‍ट लाइक करना आईटी एक्‍ट में अपराध नहीं: इलाहाबाद हाई कोर्ट 

जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की सिंगल बेंच ने आगरा निवासी इमरान खान की एप्लीकेशन 482 के तहत दाखिल याचिका को मंजूर करते हुए उसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया है. 

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प्रयागराज :

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट को लाइक और शेयर करना दोनों अलग-अलग मामले हैं. केवल किसी पोस्ट को लाइक करना उसे प्रकाशित या प्रसारित करना नहीं माना जा सकता और यह इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 67 के तहत दंडनीय अपराध नहीं होगा. साथ ही जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की सिंगल बेंच ने आगरा निवासी इमरान खान की एप्लीकेशन 482 के तहत दाखिल याचिका को मंजूर करते हुए उसके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया है. 

मामले के अनुसार, याचिकाकर्ता इमरान के खिलाफ 2019 में आगरा के मंटोला थाने में आईपीसी की धारा 147, 148, 149, सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 67 और आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 7 में मामला दर्ज हुआ था. याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के तहत सीजेएम कोर्ट में केस चल रहा था. इस मामले में सीजेएम कोर्ट में चल रही कार्यवाही को रद्द करने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.  

याचिकाकर्ता के खिलाफ क्‍या था आरोप?

याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप था कि उसने सोशल मीडिया पर कुछ भड़काऊ संदेश पोस्ट किए जिसके परिणामस्वरूप मुस्लिम समुदाय के लगभग 600-700 लोग बिना अनुमति के जुलूस निकालने के लिए एकत्र हुए और जिससे शांति भंग होने का गंभीर खतरा पैदा हो गया था. आवेदक के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि आवेदक के खिलाफ कोई सामग्री नहीं है और यहां तक ​​कि साइबर अपराध सेल, अपराध शाखा और आगरा की रिपोर्ट से भी पता चलता है कि आवेदक के फेसबुक अकाउंट पर भी कोई सामग्री नहीं पाई गई थी. 

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सरकारी वकील ने कोर्ट में केस डायरी के अंश पर जोर देते हुए कहा कि साइबर सेल रिपोर्ट में सामग्री का उल्लेख किया गया है. केस डायरी के उस हिस्से में यह उल्लेख किया गया है कि आवेदक के फेसबुक अकाउंट में कोई सामग्री नहीं है क्योंकि उसने उसे हटा दिया है, लेकिन सामग्री व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है. दोनों पक्षों की तरफ से कई दलीलें पेश की गई और सरकार ने याचिकाकर्ता की याचिका का विरोध किया. 

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याचिकाकर्ता ने पोस्‍ट को लाइक किया था

हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए अपने आदेश में कहा कि किसी पोस्ट या संदेश को तब प्रकाशित कहा जा सकता है, जब उसे पोस्ट किया जाता है और किसी पोस्ट या संदेश को तब प्रसारित कहा जा सकता है, जब उसे साझा या री-ट्वीट किया गया हो. कोर्ट ने कहा कि चौधरी फरहान उस्मान नामक व्यक्ति की पोस्ट बिना अनुमति प्रदर्शन के लिए एकत्रित होने के लिए थी. याचिकाकर्ता ने केवल पोस्‍ट को लाइक किया था लेकिन यह उस पोस्ट को प्रकाशित या प्रसारित करने के बराबर नहीं है. 

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उस्मान की पोस्ट राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपने के लिए कलेक्ट्रेट के पास एकत्रित होने के लिए प्रेरित करने वाली थी. पुलिस के अनुसार, इससे शांति भंग होने का गंभीर खतरा पैदा हो गया. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रावधानों के अलावा पुलिस ने इमरान खान पर आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत भी मामला दर्ज किया था. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि आरोपी के फेसबुक अकाउंट पर ऐसी कोई सामग्री नहीं मिली. 

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हाई कोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही को किया रद्द

पुलिस का कहना था कि इसे हटा दिया गया है, लेकिन व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसी तरह की सामग्री पाई गई. कोर्ट ने कहा कि इस पर धारा 67 आईटी अधिनियम या कोई अन्य आपराधिक मामला नहीं बनता.  भड़काऊ सामग्री के संबंध में आईटी अधिनियम की धारा 67 लागू नहीं की जा सकती. कोर्ट ने कहा कि आईटी अधिनियम की धारा 67 अश्लील सामग्री के लिए है न कि भड़काऊ सामग्री के लिए. 

हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद कहा कि इस मामले में आपराधिक कार्यवाही को रद्द किया जाता है. साथ ही स्पष्ट किया कि यदि कोई कानूनी बाधा नहीं है तो निचली अदालत अन्य सह-अभियुक्त व्यक्तियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र है. 

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