लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इसी साल 1 फरवरी को पेश किए गए अंतरिम बजट में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने आयकर, यानी इन्कम टैक्स की नई या पुरानी टैक्स व्यवस्था (New or Old Tax Regime) की स्लैबों या दरों में कोई बदलाव नहीं किया था, जिसका अर्थ यह हुआ कि वित्तवर्ष 2024-25 (FY2024-25), या आकलन वर्ष (AY2025-26) में भी टैक्स स्लैब या दरों में कोई अंतर नहीं आएगा. अब बात करते हैं, 1 अप्रैल, 2023 को शुरू होकर 31 मार्च, 2024 को समाप्त हुए वित्तवर्ष 2023-24 (FY2023-24), या आकलन वर्ष 2024-25 (AY2024-25) की, जिसके लिए इन्कम टैक्स रिटर्न (ITR) फ़ाइल करने का वक्त काफ़ी करीब आ गया है, सो, किसी भी करदाता, यानी टैक्सपेयर को बहुत सोच-समझकर और हिसाब-किताब लगाकर तय करना चाहिए किस रिजीम में उनकी टैक्स देनदारी कम होगी, यानी उन्हें किस रिजीम को ऑप्ट करने में ज़्यादा फ़ायदा है.
2023 में घोषित किए थे बदलाव...
केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने टैक्स ढांचे में बदलाव फरवरी, 2023 में घोषित किए थे, और नई टैक्स व्यवस्था को डीफ़ॉल्ट रिजीम बना दिया था. इससे पहले तक वर्ष 2020 में पेश की गई नई टैक्स व्यवस्था वैकल्पिक थी. सो, अब पुरानी टैक्स व्यवस्था के तहत ITR फ़ाइल करने के इच्छुकों को पुरानी टैक्स व्यवस्था को खुद चुनना होगा. नई टैक्स व्यवस्था में इन्कम टैक्स एक्ट की धारा 87ए के तहत मिलने वाली छूट में भी बदलाव कर सीमा को ₹7,00,000 कर दिया गया था, और इसके चलते नई टैक्स व्यवस्था के अंतर्गत ITR फ़ाइल करने वालों को तब तक कोई इन्कम टैक्स नहीं देना होगा, जब तक उनकी करयोग्य आय ₹7,00,000 से अधिक नहीं होगी. नई टैक्स व्यवस्था के तहत नौकरीपेशा तथा पेंशनभोगियों के लिए मानक कटौती (Standard Deduction) को भी शुरू कर दिया गया था, और इसके अलावा, अब नई टैक्स व्यवस्था में धारा 80सीसीडी (2) के अंतर्गत NPS में नियोक्ता द्वारा दिए गए योगदान पर भी छूट हासिल की जा सकती है. और हां, उच्च आयवर्ग के करदाताओं पर लगाए जाने वाले अधिभार, यानी सरचार्ज की अधिकतम दर को भी 37 फ़ीसदी से घटाकर 25 फ़ीसदी कर दिया गया था.
स्लैब या दरें नहीं बदलीं पुरानी टैक्स व्यवस्था में...
पुरानी टैक्स व्यवस्था में किसी भी तरह का कोई बदलाव नहीं किया गया था, सो, इन्कम टैक्स एक्ट की धारा 87ए के तहत मिलने वाली छूट अब भी उन्हीं करदाताओं को मिल सकेगी, जिनकी करयोग्य आय ₹5,00,000 से कम रह जाएगी.
पुरानी टैक्स व्यवस्था में टैक्स की स्लैब और दरें...
सो, अब देखते हैं, किस टैक्स व्यवस्था में क्या-क्या स्लैब लागू हैं, और उन पर किस-किस दर से टैक्स, सेस और सरचार्ज देना होगा. पहले, पुरानी टैक्स व्यवस्था को देखते हैं. पुरानी टैक्स व्यवस्था में आयु के आधार पर करमुक्त आय की सीमा अलग-अलग होती है, सो, अब भी उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है. 60 वर्ष से कम आयु के करदाताओं के लिए बेसिक करमुक्त आय की सीमा ₹2,50,000 है. इसके बाद ₹2,50,001 से ₹5,00,000 तक की करयोग्य आय पर 5 फ़ीसदी टैक्स वसूला जाता है, ₹5,00,001 से ₹10,00,000 तक की आय पर 20 फ़ीसदी टैक्स लिया जाता है, और ₹10,00,000 से अधिक आय पर उन्हें 30 फ़ीसदी टैक्स देना होता है.
वरिष्ठ नागरिकों के लिए टैक्स की स्लैब और दरें...
60 वर्ष से अधिक तथा 80 वर्ष से कम आयु के वरिष्ठ नागरिकों (Senior Citizens) के लिए बेसिक करमुक्त आय की सीमा ₹3,00,000 है. इसके बाद उन्हें भी ₹3,00,001 से ₹5,00,000 तक की करयोग्य आय पर 5 फ़ीसदी टैक्स देना होगा, ₹5,00,001 से ₹10,00,000 तक की आय पर 20 फ़ीसदी टैक्स लिया जाएगा, और ₹10,00,000 से अधिक आय पर उन्हें 30 फ़ीसदी टैक्स देना होगा.
अतिवरिष्ठ नागरिकों के लिए टैक्स की स्लैब और दरें...
80 वर्ष से अधिक आयु के अतिवरिष्ठ नागरिकों (Super Senior Citizens) के लिए बेसिक करमुक्त आय की सीमा ₹5,00,000 है, और उसके बाद ₹5,00,001 से ₹10,00,000 तक की आय पर उन्हें 20 फ़ीसदी टैक्स चुकाना होगा, और ₹10,00,000 से अधिक आय पर उन्हें 30 फ़ीसदी टैक्स देना होगा.
क्या है स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर...?
अब जानते हैं स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर (Health and Education Cess) के बारे में. यह उपकर सभी करदाताओं से लिया जाता है, और इसे देय आयकर राशि पर लागू किया जाता है. फिलहाल सरकार प्रत्येक करदाता से 4 फ़ीसदी उपकर वसूल करती है, जो उनके देय आयकर पर लगाया जाता है.
सरचार्ज में क्या है अंतर...?
नई और पुरानी टैक्स व्यवस्था में एक अंतर सरचार्ज में भी किया गया है. वर्ष 2023 के बजट में की गई घोषणा के मुताबिक, नई टैक्स व्यवस्था में सरचार्ज की अधिकतम दर को 37 फ़ीसदी से घटाकर 25 फ़ीसदी कर दिया गया था, लेकिन पुरानी टैक्स व्यवस्था में पुरानी दरें ही लागू होंगी.
नफ़ा-नुकसान जांचकर ही फ़ाइल करें ITR
सो, मौजूदा समय में लागू पुरानी और नई टैक्स व्यवस्था के तहत स्लैबों और टैक्स दरों की तुलना अपनी आय के अनुसार हिसाब लगाकर ही करें, और फिर उस रिजीम को चुनें, जिसमें आपकी टैक्स देनदारी कम हो.