'कृषि की हालत खराब'

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  • Blogs | राकेश कुमार मालवीय |मंगलवार अक्टूबर 24, 2017 02:14 PM IST
    सवाल यह है कि जब मध्‍यमवर्गीय नौकरीपेशा वर्ग पर बैंक इतनी आसानी से भरोसा कर सकती है, जि‍स पर भी मंदी की मार से नौकरी जाने का खतरा लगातार मंडराता ही रहता है, तब वह कि‍सानों पर ऐसा भरोसा क्‍यों नहीं कर पाती ? क्‍या बैंकों का नजरि‍या भी यह नहीं बताता कि भारत के अंदर कि‍सानों की हालत इतनी ज्‍यादा खराब है, जि‍स पर बैंक भरोसा ही नहीं करते और उनको उस ‘फोर पीज’ से भी नीचे की कैटेग‍री में डाल दि‍या गया है, जि‍न्‍हें बैंक लोन देने से कतराते हैं. आपको शायद याद हो, क्‍योंकि यह ज्‍यादा पुरानी बात नहीं जब खेती को जीवन जीने के संसाधनों में ‘सबसे उत्तम’ माना-कहा जाता था.
  • Blogs | Edited by: Rakesh Kumar Malviya |बुधवार दिसम्बर 23, 2015 02:15 PM IST
    इस सवाल पर हम बाद में सोचेंगे, लेकिन इस वक्त अदद तो यही है कि आखिर केवल 50 लाख कर्मचारियों को खुश करने की कवायद क्यों, जबकि देश के सात करोड़ किसानों की हालत खस्ता है
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