Blogs | डॉ विजय अग्रवाल |रविवार अक्टूबर 2, 2016 11:31 AM IST स्वच्छता की चेतना इन लोगों के दिमाग में इतने गहरे बैठ गई थी कि ग्रामीण हर चीज़ का इस्तेमाल पोंछकर और धोकर ही करते थे. यहां मुझे एक घटना याद आ रही है. वह गर्मी की भरी दुपहरी थी. मैं एक के यहां गया. मेरी खातिरदारी में पहले तो एक चमचमाती हुई प्लेट में लाकर गुड़ और पानी मुझे दिया गया. फिर पपीते की फांक मुझे परोसी गई. चौंकाने वाली बात यह थी कि पपीते की उन छिली हुई फांकों को भी धोकर परोसा गया था.