Blogs | क्रांति संभव |गुरुवार अगस्त 11, 2016 01:17 PM IST लद्दाख़ जाकर पहाड़ों-पर्वतों की ऊंचाई, खाइयों को देखकर न सिर्फ़ इंसान का विनम्र होना स्वाभाविक है, भले ही उसका अहंकार किसी और के सामने यह न मानने दे, लेकिन मन ही मन इस विशाल धरती की छाती पर खड़े इन विशाल पर्वतों के सामने ख़ुद को एक न एक पल के लिए एक कण जैसा ज़रूर महसूस करता है, अपनी हैसियत समझता है.