Blogs | सुधीर जैन |सोमवार जनवरी 22, 2018 01:42 PM IST पिछले चार महीनों में इस विवाद के बहाने साहित्य, कला, इतिहास, जाति, धर्म, राजनीति, कानून व्यवस्था और यहां तक कि फिल्म उद्योग व्यापार के पहलू तक सोचे-विचारे गए. खासतौर पर आज की राजनीति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच के जटिल संबंधों पर एक शोध प्रबंध लिखने लायक सामग्री तैयार हो गई है. इस प्रकरण सें एक फायदा यह हुआ दिखता है कि हमेशा उठ खड़े होने वाले विवादों का फौरन निपटारा करने के लिए आगे के लिए नजीरें बन कर तैयार हो गई हैं.