Blogs | रवीश कुमार |मंगलवार अगस्त 30, 2016 09:35 AM IST हम 'अतिथि देवो भव:' में यक़ीन करने वाले लोग हैं, लेकिन भारत में हम लोग जिन देवी-देवताओं के अतिथि हैं, उनका भी तो ख़्याल रखना है. हम इन बाहरी देव-देवियों को कुछ भी पहनने की छूट नहीं दे सकते. इसलिए जो बाहरी देव हैं, उनसे उम्मीद की जाती है कि ख़ुद को अतिथि से ज़्यादा न समझें. हम अतिथि का सत्कार ही नहीं करते, उन्हें सलवार भी दे सकते हैं. मल्लब, पहनने की सलाह देते हैं.