सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को लेकर अब सियासी और सामाजिक विरोध तेज होता दिख रहा है. अरावली पर्वतमाला से 100 मीटर तक की पहाड़ियों को बाहर करने के निर्णय के खिलाफ शुक्रवार (19 दिसंबर) को राजस्था के कई जिलों में प्रदर्शन किया गया. वहीं उदयपुर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जिला कलेक्ट्रेट के बाहर धरना दिया. कांग्रेस नेताओं और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसे पर्यावरण के लिए खतरनाक बताते हुए केंद्र और राज्य सरकार से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में दिए गए अरावली पर्वतमाला से जुड़े फैसले के विरोध में शुक्रवार को कांग्रेस पार्टी की ओर से जिला कलेक्ट्रेट के बाहर धरना प्रदर्शन किया गया. धरने में कांग्रेस के पर्यावरण प्रकोष्ठ से जुड़े पदाधिकारी, पार्टी कार्यकर्ता और पर्यावरण प्रेमी शामिल हुए. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि अरावली पर्वतमाला केवल पहाड़ों की श्रृंखला नहीं, बल्कि पश्चिमी भारत के पर्यावरण संतुलन की रीढ़ भी है.
अरावली पश्चिमी क्षेत्र के लिए प्राकृतिक ढाल
उदयपुर शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष फतह सिंह राठौड़ ने कहा कि अरावली पर्वतमाला हिमालय से भी प्राचीन है और सदियों से यह क्षेत्र के लिए प्राकृतिक ढाल का काम करती आई है. अरावली ने भूजल स्तर को बनाए रखने, हीट वेव और लू से लोगों को बचाने तथा रेगिस्तानी धोरों को आगे बढ़ने से रोकने में अहम भूमिका निभाई है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन सकता है. धरने में मौजूद पर्यावरण कार्यकर्ता प्रतीक नागर ने फैसले पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि इस निर्णय से अरावली की करीब 10 से 12 हजार पहाड़ियों का अस्तित्व संकट में आ सकता है. उन्होंने आरोप लगाया कि इस फैसले के बाद कई इलाकों में जेसीबी और पोकलेन मशीनों की गतिविधियां तेज हो गई हैं, जिससे खनन को बढ़ावा मिलने की आशंका है.
एतिहासिक स्थलों का रक्षा कवच है अरावली
प्रतीक नागर ने चेतावनी दी कि पहाड़ियों के कटने से वायु प्रदूषण बढ़ेगा, भूजल स्तर गिरेगा और मेवाड़ क्षेत्र की प्राकृतिक सुरक्षा कमजोर होगी. उन्होंने यह भी कहा कि अरावली की पहाड़ियां चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़ और रणकपुर जैसे ऐतिहासिक स्थलों के लिए सुरक्षा कवच का काम करती हैं. इनके नष्ट होने से इन धरोहरों पर भी खतरा मंडरा सकता है. कांग्रेस और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने केंद्र और राज्य सरकार से मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की जाए, ताकि अरावली पर्वतमाला और पर्यावरण को होने वाले संभावित नुकसान को रोका जा सके.
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