MP News: बीजेपी नेताओं की मांग, मध्यप्रदेश में भी बने जनसंख्या नियंत्रण कानून

यूपी में जनसंख्या नियंत्रण विधेयक का मसौदा पेश होते ही, पड़ोसी मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के कई मंत्री इसे लागू करने की वकालत करने लगे हैं. विश्वास सारंग, अरविंद भदौरिया, मोहन यादव जैसे मंत्रियों और पूर्व प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने जनसंख्या नियंत्रण को जरूरी कदम बताया है, इसी तरह के विधेयक की मांग की है.

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मध्य प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का दूसरा और जनसंख्या की दृष्टि से पांचवां सबसे बड़ा राज्य है
भोपाल:

MP News: यूपी में जनसंख्या नियंत्रण विधेयक (Population control Law) का मसौदा पेश होते ही, पड़ोसी मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के कई मंत्री इसे लागू करने की वकालत करने लगे हैं. विश्वास सारंग, अरविंद भदौरिया, मोहन यादव जैसे मंत्रियों और पूर्व प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने जनसंख्या नियंत्रण को जरूरी कदम बताया है, इसी तरह के विधेयक की मांग की है. पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने तो इसे लेकर एक धर्म को कठघरे में खड़ा कर दिया है, हालांकि वो ये भूल रहे हैं अगर कानून बने तो सत्तारूढ़ दल हो या विपक्ष उनके कई नेताओं को घर पर बैठना होगा.

सिंगरौली से बीजेपी विधायक राम लल्लू वैश्य के 9 बच्चे हैं लेकिन कहते हैं जनसंख्या नियंत्रण कानून बनना चाहिये, हालांकि निशाना कहीं और है. ''हमारा नारा था हम 2 हमारे 2 क्या ये संभव हुआ, हिन्दुओं को कह देंगे नसबंदी करा दो, दूसरे भाइयों को कहेंगे फ्री हो जाओ. आज पुनर्विचार करने की आवश्यकता है इसका मैं समर्थन करता हूं.''

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सीधी से बीजेपी विधायक केदार शुक्ल के 7 बच्चे हैं. उत्तर प्रदेश के जनसंख्या नियंत्रण विधेयक के मसौदे की घोषणा के कुछ घंटे बाद मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा देश की बड़ी समस्या जनसंख्या है. मेरा स्पष्ट मानना है जनसंख्या को कानून की परिधि में लाना चाहिये.

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पूर्व प्रोटेम स्पीकर और बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा क्यों पीछे रहते, फौरन मुख्यमंत्री को खत लिख डाला. पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया एक कदम और आगे निकल गये. उन्होंने कहा, 'मुस्लिम 2-3 शादियां करते हैं और 10-10 बच्चे पैदा करते हैं, इसलिए जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू होना चाहिए.'

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इस मामले में कांग्रेस के विधायक भी वैसे पीछे नहीं हैं, 95 में 33 विधायकों के 3 या उससे अधिक बच्चे हैं. लेकिन वो बयानों पर हमलावर हैं. भोपाल से कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने कहा, 'कई लोग जनसंख्या बढ़ने के खतरे समझ रहे हैं, अपने आप कंट्रोल करते हैं. लेकिन ये सरकार जिस नीयत से कर रही है, हम उसके खिलाफ हैं. नीयत यूपी चुनाव है.' वहीं पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कहा, 'जब इंदिरा गांधी कहती थी तब ये लोग विरोध करते थे, अब इनके समझ में आ रहा है कि जनसंख्या नियंत्रण करना चाहिये. मैं इसमें कोई बुराई नहीं समझता हूं.'

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उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण और कल्याण) विधेयक 2021 के प्रस्तावित प्रावधानों के अनुसार, दो से अधिक बच्चों वाले व्यक्ति को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने, सरकारी नौकरी पाने, सरकारी सेवा में पहले से ही पदोन्नति और लाभ प्राप्त करने से रोक दिया जाएगा.

यूपी में मामला स्थानीय निकायों को लेकर है, लेकिन मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ दल से जैसे बयान आए हैं तो ऐसा कोई कानून अगर विधायकों के लिये बने तो 227 विधायकों में बीजेपी के 39.2 विधायक, और 38.7 मंत्री अयोग्य हो जाएंगे. कांग्रेस के भी 34.7 विधायकों को अयोग्यता का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उनके तीन या उससे अधिक बच्चे हैं.

मध्यप्रदेश विधानसभा में बीजेपी के 125, कांग्रेस के 95, बीएसपी के 2, समाजवादी पार्टी का 1 और चार निर्दलीय विधायक हैं. विधानसभा की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, बीजेपी के 49 विधायकों के 3 या उससे अधिक बच्चे हैं. 14 के 4 से अधिक बच्चे हैं, 3 मंत्रियों के भी पांच और उससे अधिक बच्चे हैं. कांग्रेस में 16 के तीन बच्चे हैं, 12 विधायकों के चार, 3 विधायकों के पांच और पेटलावद विधायक के नौ बच्चे हैं.

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मध्य प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का दूसरा और जनसंख्या की दृष्टि से पांचवां सबसे बड़ा राज्य है. 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की जनसंख्या 7.27 करोड़ है, जिसकी विकास दर 20% से अधिक है. हालांकि जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए दिग्विजय सिंह सरकार ने भी 2000 में सरकारी सेवाओं और पंचायती राज चुनावों में दो बच्चों का नियम बनाया. पहले हाईकोर्ट में इसे चुनौती मिली, बाद में 2005 में बीजेपी ने इसे वापस से लिया.

केन्द्र ने पिछले साल एक पीआईएल पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि स्वैछिक उपायों से 2.1 प्रतिशत के आसपास शिशु जन्मदर हो चुकी है, निश्चित संख्या के लिए कोई भी जबरदस्ती प्रतिकूल है और इससे जनसांख्यिकीय विकृति होगी, फिर भी सत्तारूढ़ दल के नेताओं के बयान से साफ होता है मुद्दा सामाजिक कम सियासी ज्यादा है.

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