MP: केंद्र से 'फटकार' के बाद भी राज्य सरकार सुस्त, पोषण आहार देने की ओर नहीं उठा रही ठोंस कदम

मोबाइल नहीं मिलने से पोषण ट्रैकर का काम मुश्किल है. दूसरी अहम बात ये है कि राज्य में 97 हजार से ज्यादा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को लगभग 5 महीने से पूरा मानदेय नहीं मिल रहा है.

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एसआरएस के सर्वे के मुताबिक मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर 46 है, जो देश में सबसे ज्यादा है.
भोपाल:

मध्यप्रदेश का महिला बाल विकास विभाग इन दिनों देश भर में सुर्खियों में है, जिसकी तीन वजहें हैं. पहला- ऑडिटर जेनरल की रिपोर्ट के आधार पर एनडीटीवी का खुलासा कि कैसे पोषण आहार योजना में कथित तौर पर भ्रष्टाचार हुआ. दूसरा - बाल गृह में अंडा और चिकन की सप्लाई जो राजपत्र में प्रकाशित भी हो गई, लेकिन मुख्यमंत्री के विभाग के आदेश पर गृहमंत्री ने कह दिया अंडे का फंडा नहीं चलेगा. तीसरा केंद्र सरकार का शोकाज नोटिस, जिसमें केन्द्र ने राज्य को कहा कि मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री की फ्लैगशिप योजना पोषण अभियान में बड़ी लापरवाही हो रही है. 

सरकारी स्कूलों में बच्चों को पोषणयुक्त आहार मिले, इस बाबत देश में एकीकृत बाल विकास योजना लागू हुई. लेकिन मध्यप्रदेश में इस योजना पर खुद महालेखा परीक्षक ने सवाल उठाए. हालांकि, सरकार इसे ड्राफ्ट रिपोर्ट बताकर पूरे मामले को खारिज करने में लगी हुई है.

हालांकि, यही खत बताता है कि 12 अगस्त को महिला बाल विकास के अतिरिक्त मुख्य सचिव को रिपोर्ट भेजी गई. आखिरी पैरे में साफ लिखा गया कि 2 हफ्ते तक जवाब नहीं मिला तो माना जाएगा कोई जवाब नहीं है और इसे कैग 2020-21 की रिपोर्ट में भेज दिया जाएगा. स्थिति ये है कि आज तक सरकार ने जवाब नहीं भेजा है. 

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हालांकि, एनडीटीवी पर खबर चलने के बाद आनन-फानन में आंगनबाड़ियों को तलब किया गया और उनसे पांच साल के रिकॉर्ड मांगे गए. इस संबंध में आंगनवाड़ी सेविका सरिता मालवीय ने कहा कि हम लोगों की मीटिंग थी. टीएचआर की जानकारी देनी थी. 5 साल का रिकॉर्ड मांगा गया है. साल 2018 से 22 तक का.  

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सरकार भले ही बड़े-बड़े दावे कर रही है, लेकिन हकीकत में बच्चों और महिलाओं को पोषणयुक्त राशन नहीं मिल रहा है. आंगनबाड़ी सेविका का कहना है कि टीएचआर की क्वॉलिटी अच्छी नहीं है, इसलिए बच्चे लेना नहीं चाहते. साथ ही महिलाएं भी खाना नहीं चाहतीं. 

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बच्चों और महिलाओं के पोषण से जुड़ी लापरवाही की एक और बानगी केंद्र की ओर से लिखी खत है. केंद्र ने पोषण अभियान में तीन साल से छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं का हर महीने डोर-टू-डोर सर्वे नहीं होने पर गंभीर आपत्ति जताई है. चेतावनी भी दी कि इस रवैये से राज्य को मिलने वाला 21 करोड़ का बजट लैप्स हो जाएगा. इस योजना में पोषण अभियान ट्रैकर के लिए स्मार्टफोन खरीदा जाना था. इधर, सरकार कह रही है, कुछ लैप्स नहीं होगा मोबाइल खरीद लिया गया है. 

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मध्य प्रदेश सरकार के प्रवक्ता डॉ. नरोत्तम मिश्र ने कहा कि कोई बजट लैप्स नहीं हो रहा. 4.5 की कंडिका उसके अनुसार मोबाइल फोन खरीदी बात की गई है. सभी में मोबाइल खरीद लिए हैं, 13 जिले में बचे हैं. हालांकि, आंगनवाड़ी सेविकाओं का कहना है कि उन्हें मोबाइल फोन नहीं मिला है. कई लोग तो  निजी मोबाइल फोन से काम कर रहे हैं. 

मोबाइल नहीं मिलने से पोषण ट्रैकर का काम मुश्किल है. दूसरी अहम बात ये है कि राज्य में 97 हजार से ज्यादा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को लगभग 5 महीने से पूरा मानदेय नहीं मिल रहा है. ऐसे में कई जगहों पर डोर-टू-डोर सर्वे नहीं हो रहा है. इस संबंध में आबिदा सुल्तान ने कहा कि पूरी तनख्वाह पांच महीने से नहीं मिली. आधी तनख्वाह आ रही है. 

ये हालात उस राज्य में है, जहां मुख्यमंत्री के पास महिला बाल विकास विभाग है. उन्होंने खुद इसी साल सदन में बताया था कि प्रदेश में शून्य से पांच साल उम्र के 65 लाख दो हजार 723 बच्चे हैं, इनमें से 10 लाख 32 हजार 166 बच्चे कुपोषित हैं. इसमें भी 6.30 लाख अति कुपोषित हैं. एसआरएस के सर्वे के मुताबिक मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर 46 है, जो देश में सबसे ज्यादा है. वहीं, मातृ मृत्यु दर में राज्य देश में दूसरे नंबर पर है. लेकिन सरकार इमानदारी से इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. 

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