मध्य प्रदेश उपचुनाव में 3-1 का स्कोर शिवराज सिंह चौहान के लिए क्यों है अहम, समझें

वैसे, कांग्रेस ने तीन दशक से अधिक समय के बाद विंध्य क्षेत्र की रैगांव विधानसभा सीट बीजेपी से छीन ली. कल्पना वर्मा ने रैगांव-एससी विधानसभा सीट पर बीजेपी की प्रतिमा बागरी को 12,000 वोटों के अंतर से हराया.

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मध्य प्रदेश उपचुनावों में बीजेपी का स्कोर 3-1 का रहा
भोपाल:

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में 3-1 से उपचुनाव में जीत के राज्य सरकार की स्थिरता के लिए भले ही कोई मायने ना हों, लेकिन लगातार कुर्सी बदलने की अटकलों के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) के लिए ये स्कोर बेहद अहम है. साथ ही युवा राज्य बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा की संगठनात्मक क्षमता और चुनाव जीतने की रणनीति को भी इन नतीजों ने परखा है, जिनके बारे में उपचुनाव के प्रचार के दौरान नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने टिप्पणी की थी उनका अध्यक्ष कौन है, वीडी शर्मा... जब उन्होंने निक्कर पहनना भी नहीं सीखा था, तब मैं सांसद था. हालांकि कांग्रेस ने तीन दशक से अधिक समय के बाद विंध्य क्षेत्र की रैगांव विधानसभा सीट बीजेपी से छीन ली. कल्पना वर्मा ने रैगांव-एससी विधानसभा सीट पर बीजेपी की प्रतिमा बागरी को 12,000 वोटों के अंतर से हराया. बीजेपी का गढ़ मानी जाने वाली इस सीट को कांग्रेस ने 31 साल बाद जीता. वैसे, बीजेपी ने जोबट-एसटी और पृथ्वीपुर-जिस पर सालों से कांग्रेस का वर्चस्व था, उसे जीतकर स्कोर बराबर कर लिया. 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि आदिवासियों को बताया गया है कि भाजपा उनके खिलाफ है. हमने योजनाएं बनाईं और उनके सामने पेश कीं. मुझे खुशी है कि हमारे पास चुनाव परिणामों में उनकी स्वीकृति के सबूत हैं. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री और मप्र कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ ने कहा कि हम जनादेश का सम्मान करते हैं, उसे स्वीकार करते हैं. इन परिणामों की हम समीक्षा, मंथन और चिंतन करेंगे. इन चुनावों में हमारा मुकाबला भाजपा के साथ-साथ उसके धनबल, प्रशासन के दुरुपयोग, सरकारी मशीनरी, गुंडागर्दी से भी था. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक पर्यवेक्षक गिरिजा शंकर को लगता है कि शिवराज सिंह चौहान की कड़ी मेहनत और करिश्मे के कारण ऐसा हुआ है.

यदि कोई मुख्यमंत्री की रैलियों की संख्या का विश्लेषण करता है तो इसका महत्व भी है, चौहान ने 29 सितंबर से 27 अक्टूबर के बीच 39 रैलियों को संबोधित किया, इसके अलावा खंडवा लोकसभा क्षेत्र के आठ विधानसभा क्षेत्रों में 17 रैलियों को संबोधित किया. कमलनाथ ने 12 अक्टूबर से 27 अक्टूबर के बीच 13 रैलियों को संबोधित किया. चौहान के लगभग दो सप्ताह बाद कमलनाथ ने प्रचार अभियान की शुरुआत की. कमलनाथ केवल कुछ रैलियों को संबोधित करने तक ही सीमित थे, लेकिन चौहान ने उपचुनाव वाले विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों में पांच स्थानों पर बीजेपी कार्यकर्ताओं के घरों में रात्रि विश्राम के साथ रैलियों में भाग लिया.

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गिरिजा शंकर ने कहा, "जोबट-एसटी सीट पर उनके रात्रि विश्राम के बाद सुबह की चौपाल ने न केवल आदिवासियों के बीच भाजपा की संभावनाओं को बढ़ाया, बल्कि नाराज़ कार्यकर्ताओं का गुस्सा भी शांत हो गया. पर्व-त्योहार के मौके पर भी वो 6 दिन और 6 रात तक उनके साथ उनके घर में रुके किसी होटल या विश्राम गृह में नहीं. रैगांव में कांग्रेस की जीत के संदर्भ में उन्हें लगता है कि कांग्रेस हमेशा बीजेपी की गलतियों की स्वाभाविक लाभार्थी बन जाती है. वो मानते हैं कि "उम्मीदवार का चयन चुनाव प्रबंधन का एक हिस्सा है.

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जुगल किशोर बागरी भाजपा विधायक थे, लेकिन भाजपा ने उनके बेटे को टिकट नहीं दिया. भाजपा के इस फैसले से बागरी परिवार के तीन सदस्य मैदान में कूद पड़े, जिससे भाजपा को काफी नुकसान हुआ, हालांकि बीजेपी ने बागरी परिवार के कुछ सदस्यों को नामांकन फॉर्म वापस लेने के लिए मना लिया, लेकिन नुकसान हो चुका था. रैगांव सीट जीतना कांग्रेस के लिए मायने रखता है, हालांकि ये भी तथ्य है कि बहुजन समाज पार्टी ने इस क्षेत्र से उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारा जिनके वोटरों की इलाके में तादाद अच्छी खासी है. नाराज़गी कांग्रेस में भी कम नहीं है, जोबट-एसटी में कांग्रेस उम्मीदवार महेश पटेल ने हार के लिए कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा, 'कांग्रेस के कुछ नेताओं ने पार्टी की हार में योगदान दिया है, मैं इसके बारे में राज्य पार्टी प्रमुख कमलनाथ को रिपोर्ट सौंपूंगा. परिणामों के बाद मप्र में संभावित परिवर्तन के बारे में अफवाहें थीं, लेकिन अब चौहान और राज्य भाजपा प्रमुख वीडी शर्मा ने भाजपा के पक्ष में आदिवासी वोटों को मोड़कर माहौल को अपने पक्ष में झुका दिया.

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सत्तारूढ़ दल ने हालांकि जीत के लिए दलबदलुओं का सहारा लिया, जैसे जोबट से सुलोचना रावत को मैदान में उतारा गया, जिन्होंने उपचुनावों से ठीक पहले पाला बदल लिया था. सुलोचना रावत कांग्रेस से पूर्व विधायक थीं, 2018 में जब कांग्रेस ने  कलावती भूरिया को जोबट से टिकट दिया, तब सुलोचना रावत के बेटे विशाल रावत निर्दलीय चुनाव लड़ा और करीब 30,000 वोट हासिल किए थे. पृथ्वीपुर का प्रतिनिधित्व पूर्व कांग्रेस मंत्री ब्रजेंद्र सिंह राठौर करते थे, लेकिन सहानुभूति लहर के बावजूद उनके बेटे नितेंद्र जीत हासिल नहीं कर पाए उन्हें सपा से भाजपा में आए शिशुपाल यादव ने हराया और कांग्रेस का गढ़ छीन लिया. दरअसल इन दोनों सीटों पर बीजेपी की रणनीति और चुनावी प्रबंधन कारगर रहा.

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खंडवा लोकसभा सीटपर भी बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान के बेटे को टिकट नहीं देकर बीजेपी ने ज्ञानेश्वर पाटिल पर दांव खेला, जिन्होंने जीत तो दर्ज की, लेकिन जीत का अंतर हालांकि 2.7 लाख वोटों से घटकर लगभग 80,000 हो गया. वैसे इस सीट पर पिछले चुनाव की तुलना में 13% कम मतदान हुआ था, इस सीट से पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पूर्व पीसीसी अध्यक्ष अरूण यादव सबसे प्रबल दावेदार थे, लेकिन उन्होंने निजी कारणों की वजह से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया.

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