जब पार्टी में मिल गई लाइफ़ पार्टनर, तेजी सूरी और हरिवंश राय बच्चन की लव स्टोरी

हरिवंश राय बच्‍चन की ज़िन्दगी में उनकी पहली पत्नी श्‍यामा जी के देहांत के बाद एकाकी शामों ने डेरा जमा लिया था. एकाकी जीवन जी रहे हरिवंश राय बच्‍चन के लिए यह चाय पार्टी बेहद खास रही थी. यहां तेजी से हुई पहली मुलाकात ने उनके जीवन में नई रोशनी की दस्तक की तरह थी.

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ढलते दिन के साथ बरेली में परवान चढ़ रही थी एक चाय पार्टी और इस चाय पार्टी में धीरे-धीरे एक दूसरे में घुल कर चार नजरें एक हो रही थीं... ये पार्टी दी जा रही थी प्रोफेसर ज्योति प्रकाश के घर और इसमें शिरकत करने पहुंचे थे प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन. जिनकी नजरें इस वक्त टिकी हुईं थी पार्टी में मौजूद तेजी सूरी पर. दोनों इससे पहले भी मिल चुके थे और पिछला आकर्षण अब और प्रबल होकर सामने आ रहा था. हरिवंश राय बच्चन से इस दौरान एक कविता पढ़ने का आग्रह किया गया. कहा जाता है कि इस दौरान हरिवंश राय बच्चन की एक कविता सुनकर तेजी की आंखों में आंसू आ गए थे और कविता समाप्त होने के बाद दोनों एक दूसरे से गले लग खूब रोए थे. 

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वो कविता जो उस दिन हरिवंश जी ने सुनाई थी - 

करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? 
क्या करूँ? 

मैं दुखी जब-जब हुआ 
संवेदना तुमने दिखाई, 
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,
रीति दोनो ने निभाई, 

किन्तु इस आभार का 
अब हो उठा है बोझ भारी; 
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? 
क्या करूँ? 
एक भी उच्छ्वास मेरा 
हो सका किस दिन तुम्हारा? 
उस नयन से बह सकी कब 
इस नयन की अश्रु-धारा? 
सत्य को मूंदे रहेगी 
शब्द की कब तक पिटारी? 
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी? 
क्या करूँ?

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हरिवंश राय बच्‍चन की जिंदगी में उनकी पहली पत्नी श्‍यामा जी के देहांत के बाद एकाकी शामों ने डेरा जमा लिया था. एकाकी जीवन जी रहे हरिवंश राय बच्‍चन के लिए ये चाय पार्टी बेहद खास रही थी. यहां तेजी से हुई पहली मुलाकात ने उनके जीवन में नई रौशनी की दस्तक की तरह थी. तेजी सूरी से अपनी इसी पहली मुलाकात को हरिवंश राय बच्‍चन अपनी आत्‍मकथा 'क्या भूलूं क्या याद करूं' में कुछ इस तरह याद करते हैं - 

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"उस दिन 31 दिसंबर की रात थी. सबने ये इच्‍छा जाहिर की कि नया साल मेरे काव्‍य पाठ से शुरू हो. आधी रात बीत चुकी थी, मैंने केवल एक-दो कविताएं सुनाने का वादा किया था. सबने 'क्‍या करुं संवेदना लेकर तुम्‍हारी' वाला गीत सुनना चाहा, जिसे मैं सुबह सुना चुका था. ये कविता मैंने बड़े सिनिकल मूड में लिखी थी. मैंने सुनाना शुरू किया. एक पलंग पर मैं बैठा था, मेरे सामने प्रकाश बैठे थे और मिस तेजी सूरी उनके पीछे खड़ी थीं कि गीत खत्‍म हो और वह अपने कमरे में चली जाएं. गीत सुनाते-सुनाते न जाने मेरे स्‍वर में कहां से वेदना भर आई. जैसे ही मैंने 'उस नयन से बह सकी कब इस नयन की अश्रु-धारा..' पंक्‍ति पढ़ी कि देखता हूं कि मिस सूरी की आंखें डबडबाती हैं और टप-टप उनके आंसू की बूंदें प्रकाश के कंधे पर गिर रही हैं. ये देखकर मेरा कंठ भर आता है. मेरा गला रुंध जाता है. मेरे भी आंसू नहीं रुक रहे हैं. ऐसा लगा मानो, मिस सूरी की आखों से गंगा-जमुना बह चली है और मेरे आंखों से जैसे सरस्‍वती."

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हरिवंश राय बच्चन आगे लिखते हैं, "कुछ पता नहीं, कब प्रकाश का परिवार कमरे से निकल गया और हम दोनों एक-दूसरे से लिपटकर रोते रहे. आंसुओं से कितने कूल-किनारे टूटकर गिर गए, कितने बांध ढह-बह गए, हम दोनों के कितने शाप-ताप धुल गए, कितना हम बरस-बरस कर हलक हुए हैं, कितना भीग-भीग कर भारी.

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और कुछ यूं हुई प्यार की शुरुआत...

बरेली की इस चाय पार्टी के बाद तेजी और हरिवंश की मुलाकातों का सिलसिला शुरु हुआ. दोनों ने एक-दूसरे के साथ समय बिताने लगे और कब एक अनकहा वादा इनके बीच हो गया शायद दोनों को पता नहीं चला. तेजी के दिल में हरिवंश की कविता और उनके व्यक्तित्व के प्रति गहरा प्रेम था. हरिवंश ने भी तेजी की सादगी और गहराई को पसंद किया.

गहरे प्यार के बावजूद चुनौतियां कम न थीं

ठीक एक साल बाद, 1942 में तेजी और हरिवंश ने एक-दूसरे के साथ जीवन बिताने का फैसला लिया. ये एक प्रेम विवाह था और उस समय प्रेम विवाह किसी सामाजिक अपराध से कम न था. इसके बावजूद, दोनों ने अपने प्यार और समर्पण के साथ शादी की. कहते हैं हरिवंश और तेजी की शादी बेहद शान से की गई थी. और शादी पर खुलकर खर्च भी किया गया था. उस समय इस शादी पर 800 रुपए का खर्च हुआ था, जो उस दौर के हिसाब से बड़ी थी.

शादी के बाद, तेजी और हरिवंश का जीवन प्रेम और समझदारी से भरा हुआ था. तेजी ने हरिवंश के साहित्यिक और कवि जीवन में एक मजबूत समर्थन और प्रेरणा का काम किया. हरिवंश ने अपनी कविताओं और लेखन के माध्यम से समाज पर गहरा प्रभाव डाला, और तेजी उनके साथ हर कदम पर खड़ी रहीं.

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