अगर आप बिना मलाई वाला दूध पी रहे हैं तो सावधान हो जाएं. एक ताजा शोध से पता चला है कि रोजाना मलाईरहित दूध पीने से पार्किंसन बीमारी हो सकती है. शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि अगर आप प्रतिदिन मलाईरहित दूध के तीन बार ले रहे हैं तो भी पार्किंसन बीमारी का खतरा 34 फीसदी अधिक रहता है. पार्किंसन बीमारी में मस्तिष्क के उस हिस्से की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं जो गति को नियंत्रित करता है. कंपन, मांसपेशियों में सख्ती व तालेमल की कमी और गति में धीमापन इसके आम लक्षण हैं.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार कम वसा वाले डेयरी उत्पादों के नियमित सेवन और मस्तिष्क की सेहत या तंत्रिका संबंधी स्थिति के बीच एक अहम जुड़ाव है. शोधकर्ताओं ने 1.30 लाख लोगों के आंकड़ों का विश्लेषण करके यह नतीजा निकाला. ये आंकड़े इन लोगों की 25 साल तक निगरानी करके जुटाए गए. आंकड़ों ने दिखाया कि जो लोग नियमित रूप से दिन में एक बार मलाईरहित या अर्ध-मलाईरहित दूध पीते थे, उनमें पार्किंसन बीमारी होने की संभावना उन लोगों के मुकाबले 39 फीसदी अधिक थी, जो हफ्ते में एक बार से भी कम ऐसा दूध पीते थे. शोधकर्ताओं ने कहा, लेकिन जो लोग नियमित रूप से पूरी मलाईवाला दूध पीते थे उनमें यह जोखिम नजर नहीं आया.
शोधकर्ताओं के मुताबिक पूर्ण मलाईदार डेयरी उत्पादों के सेवन से पार्किंसन बीमारी का खतरा कम किया जा सकता है. यह अध्ययन मेडिकल जर्नल ‘न्यूरोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है. शोधकर्ताओं ने कहा, इस अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि पार्किंसन से बचाव में यूरेट अहम साबित हो सकता है.
शोधकर्ताओं ने कहा, यहां यह नोट करना जरूरी है कि पार्किंसन बीमारी विकसित होने का जोखिम बहुत कम है.
दिन में तीन मर्तबा कम वसा वाले डेयरी उत्पाद खाने वाले 5,830 लोगों में से केवल एक फीसदी में ही इस बीमारी के लक्षण (शोध के दौरान) देखे गए.
वहीं दिन में एक बार कम वसा वाले डेयरी उत्पाद खाने वाले 77,864 लोगों में से केवल 0.6 फीसदी में ही इस बीमारी के लक्षण देखे गए.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार कम वसा वाले डेयरी उत्पादों के नियमित सेवन और मस्तिष्क की सेहत या तंत्रिका संबंधी स्थिति के बीच एक अहम जुड़ाव है. शोधकर्ताओं ने 1.30 लाख लोगों के आंकड़ों का विश्लेषण करके यह नतीजा निकाला. ये आंकड़े इन लोगों की 25 साल तक निगरानी करके जुटाए गए. आंकड़ों ने दिखाया कि जो लोग नियमित रूप से दिन में एक बार मलाईरहित या अर्ध-मलाईरहित दूध पीते थे, उनमें पार्किंसन बीमारी होने की संभावना उन लोगों के मुकाबले 39 फीसदी अधिक थी, जो हफ्ते में एक बार से भी कम ऐसा दूध पीते थे. शोधकर्ताओं ने कहा, लेकिन जो लोग नियमित रूप से पूरी मलाईवाला दूध पीते थे उनमें यह जोखिम नजर नहीं आया.
शोधकर्ताओं के मुताबिक पूर्ण मलाईदार डेयरी उत्पादों के सेवन से पार्किंसन बीमारी का खतरा कम किया जा सकता है. यह अध्ययन मेडिकल जर्नल ‘न्यूरोलॉजी’ में प्रकाशित हुआ है. शोधकर्ताओं ने कहा, इस अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि पार्किंसन से बचाव में यूरेट अहम साबित हो सकता है.
शोधकर्ताओं ने कहा, यहां यह नोट करना जरूरी है कि पार्किंसन बीमारी विकसित होने का जोखिम बहुत कम है.
दिन में तीन मर्तबा कम वसा वाले डेयरी उत्पाद खाने वाले 5,830 लोगों में से केवल एक फीसदी में ही इस बीमारी के लक्षण (शोध के दौरान) देखे गए.
वहीं दिन में एक बार कम वसा वाले डेयरी उत्पाद खाने वाले 77,864 लोगों में से केवल 0.6 फीसदी में ही इस बीमारी के लक्षण देखे गए.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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