दिल्ली में पिछले एक हफ्ते से जारी वायु प्रदूषण (Delhi Pollution) का संकट गहराने के बाद सरकार को दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) क्षेत्र में सेहत के लिहाज से आपात स्थिति लागू करनी पड़ी है. ऐसे में दिल्ली सरकार ने गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण से राहत के लिए चार नवंबर से राजधानी दिल्ली में ऑड-ईवन नंबर नियम (Odd-EvenScheme) लागू कर दिया है. एम्स (AIIMS) के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया का मानना है कि दूषित हवा से सेहत पर पड़ रहे कुप्रभाव का ऑड-ईवन स्थायी समाधान नहीं है. डॉक्टर गुलेरिया से पांच सवाल और उनके जवाब:
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सवाल: दिल्ली में वायु प्रदूषण खतरे के निशान को पार कर गया है, इसका सेहत पर कितना और कैसा असर हो सकता है?
जवाब: यह स्थिति सेहत के लिए खतरे की घंटी है. अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि एक्यूआई पर खतरनाक स्तर वाली दूषित हवा का संपर्क न सिर्फ सांस संबंधी रोगों का खतरा बढ़ाता है बल्कि हृदय रोगों की भी वजह बनता है. इसलिए इस स्तर पर वायु प्रदूषण दिल से लेकर दिमाग और हड्डियों से लेकर त्वचा तक, संपूर्ण शरीर पर बुरा प्रभाव छोड़ता है. गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं, दिल और अस्थमा के रोगियों और बुजुर्गों के लिये यह स्थिति बेहद जोखिम भरी है.
सवाल: दीवाली के बाद गैस चेंबर बन चुकी दिल्ली के लोगों को प्रदूषण जनित सेहत के खतरों से बचाने के लिये ऑड-ईवन नंबर नियम लागू करने जैसे उपाय कितने कारगर हो सकते हैं?
जवाब: जहरीली हवा के सेहत पर दीर्घकालिक प्रभाव के लिहाज से देखें तो ऑड-ईवन नंबर नियम, स्थायी समाधान नहीं हो सकता है. क्योंकि ये उपाय उस समय अपनाए जा रहे हैं जबकि हालात पहले से ही आपात स्थिति में पहुंच गए हैं. इसका सेहत पर जो प्रभाव पड़ चुका है उसका असर लंबे समय बाद दिखेगा. मसलन, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और एम्स के एक साझा अध्ययन के मुताबिक ऐसे दूषित वातावरण में रहने वाले बच्चों के फेंफड़े सिकुड़ जाते हैं और अधिक उम्र में पहुंचने पर इनके लिये सांस संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता है. इसी प्रकार ब्रिटेन की एक संस्था के साथ हमारा अध्ययन चल रहा है जिसमें गर्भवती महिलाओं, बच्चों और दिल एवं अस्थमा के मरीजों पर पार्टिकुलेट तत्वों के असर का पता किया जा रहा है. कुल मिलाकर मैं यही कहूंगा कि सरकारों को आरोप प्रत्यारोप के बजाय समस्या के स्थायी समाधान की तरफ बढ़ना चाहिए जिससे हर साल की इस दिक्कत से बचा जा सके.
सवाल: हवा में घुले दूषित पार्टिकुलेट तत्व हृदय रोग का खतरा कैसे पैदा कर सकते हैं?
जवाब: पीएम 2.5 और इससे छोटे पार्टिकुलेट तत्व सांस के जरिये शरीर में प्रवेश करके सबसे पहले रक्त में मिल जाते हैं. खून के जरिए ये दूषित तत्व हृदय और श्वसन तंत्र पर नकारात्मक असर छोड़ते हैं. लंबे समय तक पार्टिकुलेट तत्वों के संपर्क में रहने के कारण त्वचा संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता है. इतना ही नहीं इनसे फेंफड़ों के कैंसर की आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता. इस आशंका के बारे में अभी अध्ययन जारी है, लकिन जिस प्रकार के हालात बन गए हैं, उनमें यह कहना गलत नहीं होगा कि वायु प्रदूषण दिल और सांस की बीमारियों का परोक्ष कारक हो सकता है.
सवाल: क्या पीएम तत्वों का खतरा सामान्य सेहत वाले लोगों को भी प्रभावित करता है?
जवाब: हर साल दीवाली के बाद एक्यूआई के गंभीर श्रेणी में पहु्ंचने के एक सप्ताह के भीतर एम्स के श्वसन रोग विभाग की ओपीडी में रोगियों की संख्या 15 से 20 फीसदी तक बढ़ जाती है. इनमें अधिकतर मरीज खांसी, सांस लेने में दिक्कत और घुटन महसूस करने जैसी व्याधियों से पीड़ित होते हैं. इतना ही नहीं एम्स में पढ़ने के लिये बाहर से आने वाले छात्रों में भी इन दिनों यह समस्या बढ़ जाती है. इससे साफ है कि वायु प्रदूषण, सिर्फ रोगियों के लिये ही नहीं बल्कि सामान्य सेहत वालों के लिये भी गंभीर बीमारियों के खतरे की वजह बनता है.
सवाल: इस आपात स्थिति का सामना करने के तात्कालिक उपाय क्या हो सकते हैं?
जवाब: अव्वल तो दिल्ली एनसीआर क्षेत्र के लोग, अब एक्यूआई देखकर घर से निकलने का कार्यक्रम बनाएं. एक्यूआई खतरे के निशान के ऊपर होने पर, घर से निकलने से बचें. धूप निकलने पर ही घर से बाहर जाएं. बच्चे, बुजुर्ग, मरीज और गर्भवती महिलाएं इन हिदायतों का सख्ती से पालन करें. कम से कम आपात स्थिति के दौर में सुबह की सैर से बचना मुनासिब होगा. खिलाड़ियों को भी मैदान से इन दिनों दूरी बनाना बेहतर होगा. ऐसे में जॉगिंग और दौड़-धूप, अस्थमा, दिल और दिमाग के दौरे का कारण बन सकती है.
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