चटपटी चाट का नाम सुनते ही सबके मुंह में पानी आ जाता है. जैसे ही हम चाट के बारे में सोचते हैं वैसे ही हमें सड़क के किनारे सजे चाट के ठेले, टिक्की की खूशबू, गोलगप्पे का ख्याल आ जाता है. जो लोग चाट के दीवाने हैं आज हम उन्हें बिहार के औरंगाबाद के सूर्य नगरी देव में मिलने वाली 'चपचपवा चाट' के बारे में बताने जा रहे हैं.
बिहार के देव में चल रही चौरसिया जी की 'चपचपवा चाट' की दुकान काफी प्रसिद्ध है. बता दें, बिहार में अभी चुनाव का माहौल चल रहा है. ऐसे में दूर-दराज से लोग इस चाट का मजा लेने आ रहे हैं.
बिहार के देव में जब भी आएंगे, यहां खाने- पीने के स्वाद को लेकर आम लोगों के बीच में खास चर्चा होती है. वहीं इस चर्चा में सबसे ज्यादा जिक्र 'चपचपवा चाट' का होता है.
क्या है चाट की खासियत
देव में चाट की दुकान बेहद ही साधारण है, इस दुकान पर काम करने वाले कुमकुम चौरसिया ने बताया, पिछले 10 साल इस दुकान को चला रहा हूं. पहले इस दुकान पर मेरे पिताजी बैठते थे. उन्होंने बताया इस चाट का नाम 'चपचपवा' मेरे पिताजी ने रखा था, तभी से ये नाम चला आ रहा है.
वहीं जब NDTV के रिपोर्टर रवीश रंजन शुक्ला ने यहां का दौरा किया, उन्होंने बताया, 'बिहार में औरंगाबाद के चपचपवा चाट खाते ही आप पसीने से चपचपा जाएंगे, इसीलिए इसे चपचपवा कहा गया है.'
बिहार में औरंगाबाद के चपचपवा चाट। चाट खाते ही आप पसीने से चपचपा जाएंगे। इसीलिए इसे चपचपवा कहा गया। औरंगाबाद के देव कस्बे की चाट। यहां का सूर्य मंदिर भारतीय स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण। pic.twitter.com/JAecyMiTHk
— Ravish Ranjan Shukla (@ravishranjanshu) October 16, 2020
चौरसिया जी ने बताया, उड़द, चना दाल और बेसन से ये चाट बनती है. इसी के साथ समोसे और आलू टिक्की को मिक्स कर ये चाट तैयार जाती है. ये चाट हमारे यहां काफी प्रसिद्ध है.
चौरसिया ने आगे कहा, 'कोरोनावायरस के कारण, भीड़ कम हो गई है, लेकिन कोरोना से पहले अच्छी भीड़ हुआ करती थी. उम्मीद है जल्द ही सब ठीक होगा. '
उन्होंने कहा, लंबे समय से दुकान बंद थी, पिछले एक महीने पहले ही दुकान खोली है, लेकिन अभी बिक्री कम हो रही है. वहीं जितने भी लोग यहां खाने आते हैं वह बड़े शौक से आते हैं.
जब उनसे पूछा गया कि क्या चपचपवा चाट का विस्तार करना चाहते हैं ताकि ये और शहरों में भी प्रसिद्ध हो सके. इसपर उन्होंने कहा, 'चाट को तैयार करने में काफी मेहनत लगती है. एक आदमी के भरोसे नहीं हो पाएगा. इसलिए हम खुद से मेहनत करते हैं और खुद से बनाते हैं.'
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