लगातार तीन बार ‘ला नीना' की दुर्लभ घटना के बाद, आगामी महीनों में भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के गर्म होने की संभावना बढ़ रही है, जिसे ‘एल नीनो' गतिविधि कहा जाता है और इसका संबंध उच्च वैश्विक तापमान से है. इसके कारण भारत में मॉनसून पर असर पड़ सकता है. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार, अल नीनो के अब जुलाई के अंत तक 60 प्रतिशत संभावना और सितंबर के अंत तक 80 प्रतिशत संभावना के साथ उभरने की भविष्यवाणी की गई है.
डब्ल्यूएमओ के क्षेत्रीय जलवायु पूर्वानुमान सेवा प्रभाग के प्रमुख विल्फ्रान मौफौमा ओकिया ने स्विट्जरलैंड के जिनेवा में संवाददाताओं से कहा, ‘‘यह दुनिया भर में मौसम और जलवायु की प्रणाली को बदल देगा.''' इसके साथ ही अब तक के सबसे लंबी ‘ला नीना' गतिविधि भी समाप्त हो जाएगी. वर्ष 1950 के बाद ऐसा तीसरी बार हुआ है, जब ‘ला नीना' गतिविधि लगातार तीसरे वर्ष देखी गई हो.
‘ला नीना' का अर्थ समुद्र की सतह के तापमान के सामान्य से अधिक ठंडा होने का चरण है. अल नीनो के कारण दक्षिण अमेरिका के पास प्रशांत महासागर की सतह के जल का ताप सामान्य से अधिक हो जाता है और इसे मॉनसून की हवाओं के कमजोर पड़ने तथा भारत में कम बारिश के साथ जोड़ कर देखा जाता है.
लगातार तीन बार ‘ला नीना' के प्रभाव के बाद इस साल अल नीनो की स्थिति बनेगी. ला नीना, अल नीनो की विपरीत स्थिति है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने पिछले सप्ताह कहा था कि मॉनसून के दौरान अल नीनो की स्थिति बन सकती है और इसका प्रभाव मॉनसून के दूसरे भाग में महसूस किया जा सकता है. महापात्रा ने कहा था कि 1951-2022 के बीच जितने साल भी अल नीनो सक्रिय रहा है, वे सभी वर्ष मॉनसून के लिहाज़ से खराब नहीं थे. उन्होंने कहा कि इन वर्षों में अल नीनो के प्रभाव वाले 15 साल थे और उनमें से छह में ‘सामान्य' से लेकर ‘सामान्य से अधिक' बारिश हुई.
ये भी पढ़ें-
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)