UP Polls: जहूराबाद की राजभर vs राजभर की 'जंग' को BSP की सैयदा शादाब फातिमा ने बनाया और दिलचस्‍प..

इस मुकाबले को दिलचस्प बनाने वाली बात यह है कि गाजीपुर जिले के इस विधानसभा क्षेत्र में तीनों उम्मीदवार अनुभवी हैं, लेकिन इस बार उनकी राजनीतिक संबद्धता में बदलाव हुआ है.

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2017 में भाजपा के सहयोगी रहे ओम प्रकाश राजभर ने अब समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिलाया है,
जहूराबाद (यूपी):

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर को पूर्वी उत्तर प्रदेश की जहूराबाद विधानसभा सीट पर भाजपा और बसपा से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. इस सीट पर एसबीएसपी के प्रमुख राजभर, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के उम्मीदवार कालीचरण राजभर और बहुजन समाज पार्टी (BSP) की सैयदा शादाब फातिमा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है. इस मुकाबले को दिलचस्प बनाने वाली बात यह है कि गाजीपुर जिले के इस विधानसभा क्षेत्र में तीनों उम्मीदवार अनुभवी हैं, लेकिन इस बार उनकी राजनीतिक संबद्धता में बदलाव हुआ है.इस सीट से मौजूदा विधायक एवं एसबीएसपी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर, जो 2017 में भाजपा के सहयोगी थे, ने अब समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ हाथ मिलाया है, फातिमा, जो राज्य में सपा की मंत्री रह चुकी हैं और अब बसपा उम्मीदवार हैं. दो बार बसपा विधायक रह चुके कालीचरण राजभर इस बार भाजपा से चुनाव मैदान में हैं. राजभर बनाम राजभर काफी मुश्किल मुकाबला था, लेकिन फातिमा के चुनाव मैदान में उतरने से इस मुकाबले को और भी दिलचस्प बना दिया है.

फातिमा को एक ऐसी उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने 2012 में जीत दर्ज कर सपा सरकार में मंत्री बनने के बाद बहुत सारे विकास कार्य किए थे. वह शिवपाल यादव के धड़े प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई थी, लेकिन जब उन्होंने अपने भतीजे अखिलेश यादव के साथ समझौता किया, तो वह यहां से टिकट हासिल नहीं कर सकीं क्योंकि एसबीएसपी ने सपा के साथ गठबंधन किया है.उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के बारे में भी सोचा, लेकिन आखिरकार वह बसपा उम्मीदवार बनने में कामयाब रही.

फातिमा ने कहा, ‘‘तस्वीर बहुत स्पष्ट है, ये दोनों (कालीचरण और ओम प्रकाश राजभर) जाति के आधार पर चुनाव लड़ रहे हैं. मुझे सभी समुदायों से समर्थन मिल रहा है. यह दलितों, या अल्पसंख्यकों के बसपा के पारंपरिक वोट आधार तक सीमित नहीं है. मुझे ठाकुर, चौहान, भूमिहार, कुशवाहा समेत अन्य लोगों से भी समर्थन मिल रहा है.''उन्होंने कहा, ‘‘तो, कोई लड़ाई नहीं है. मैं जीत रही हूं और लड़ाई इस बात की है कि कौन दूसरे और तीसरे स्थान पर आएगा.''उन्होंने कहा, ‘‘मैंने 2017 में चुनाव नहीं लड़ा था. मैं चुनाव नहीं हारी हूं, जबकि ये दोनों अतीत में चुनाव हार चुके हैं. इसलिए कुछ नया नहीं होगा लेकिन 2012 का इतिहास दोहराया जाएगा जब ये दोनों मुझसे हार गए थे.''

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उधर , बीजेपी के कालीचरण राजभर ने भी अपनी जीत पर विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि उनके दोनों प्रतिद्वंद्वियों को लोगों ने खारिज कर दिया था. उन्होंने कहा, ‘‘चहुमुखी विकास और इसे एक आदर्श निर्वाचन क्षेत्र बनाना मेरा लक्ष्य है.''कालीचरण राजभर ने अपने प्रचार अभियान के दौरान इस बात पर प्रकाश डाला कि उनके प्रतिद्वंद्वी ओम प्रकाश राजभर ‘‘किसी के प्रति वफादार नहीं हो सकते'' क्योंकि उन्होंने सपा के पक्ष में जाने के लिए भाजपा जैसी पार्टी को ‘‘छोड़ दिया'' था.कालीचरण राजभर ने कहा, ‘‘चुनाव जीतने के बाद वह कई मौकों पर लोगों के दुख-सुख बांटने के लिए निर्वाचन क्षेत्र नहीं आए.'' एसबीएसपी महासचिव एवं ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरुण राजभर ने भी फातिमा की तरह दावा किया कि लड़ाई दूसरे और तीसरे स्थान के लिए है और उनके पिता को उनके दो प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में अधिक वोट मिलेंगे. अरुण राजभर ने कहा, ‘‘वह (फातिमा) 2012 में राज्य में सपा की लहर के दौरान जीती थीं. भाजपा केवल इस बात की चर्चा कर रही है कि वह चुनाव मैदान में हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्हें अपनी जमानत बचाने के लिए लड़ना चाहिए.''
उन्होंने इस सुझाव को भी खारिज कर दिया कि राजभर वोट में विभाजन होगा. उन्होंने दावा किया कि समुदाय के 95 प्रतिशत लोग उनके पिता को वोट देंगे.

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हालांकि, क्षेत्र के लोगों का मानना है कि यह एक करीबी मुकाबला है. एक चाय की दुकान पर पपीता राम नामक व्यक्ति ने कहा कि वह फातिमा के द्वारा किए गए विकास कार्यों के कारण उनका समर्थन कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘‘हर व्यक्ति कहता है कि उनकी पार्टी जीत रही है, लेकिन यह कड़ा मुकाबला है और केवल 10 मार्च ही विजेता का पता चलेगा.'' जलेबी बेचने वाले एक अन्य व्यक्ति ओम प्रकाश ने कहा कि वह भाजपा के कालीचरण राजभर का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि फातिमा ने अपने कार्यकाल के दौरान निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्य किये थे.उन्होंने यह भी कहा कि इस सीट पर जीत का अंतर ‘‘बहुत कम'' होने की संभावना है.अनुमान के मुताबिक, जहूराबाद में दलित मतदाताओं की संख्या लगभग 70,000, राजभर की लगभग 70,000, मुस्लिमों की संख्या 28,000 और यादवों की संख्या लगभग 45,000 है. फिर, चौहान मतदाताओं और राजपूत, ब्राह्मण और वैश्य मतदाताओं की एक बड़ी संख्या है.यहां एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि कई लोगों ने उन उम्मीदवारों के समर्थन में आवाज उठाई जो उनकी जाति से संबंधित नहीं है, जिससे इस बात का अनुमान लगाना मुश्किल है कि इस सीट पर कौन सा उम्मीदवार जीत दर्ज करेगा. इस सीट पर विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण में सात मार्च को मतदान होगा. मतगणना 10 मार्च को होगी.

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