असहमति को विरोध में बदलना लोकतंत्र के लिए अभिशाप से कम नहीं : उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़

दिल्ली के विज्ञान भवन में जामिया मिलिया इस्लामिया के शताब्दी वर्ष के दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति ने कहा- संसद को न चलने देने का कोई बहाना नहीं हो सकता

Advertisement
Read Time: 19 mins
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि लोकतंत्र पूरी तरह से संवाद, चर्चा, विचार-विमर्श और बहस के बारे में है.
नई दिल्ली:

दिल्ली के विज्ञान भवन में जामिया मिलिया इस्लामिया के शताब्दी वर्ष के दीक्षांत समारोह में उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने लोकतंत्र के मंदिरों में व्यवधान को हथियार बनाए जाने पर दुख व्यक्त किया. उपराष्ट्रपति ने कहा व्यवधान और अशांति लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतिकूल हैं. उन्होंने कहा कि, संसद को न चलने देने का कोई बहाना नहीं हो सकता. प्रश्नकाल के न होने को कभी भी तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता. उपराष्ट्रपति ने कहा कि, कुछ विदेशी विश्वविद्यालयों द्वारा भारत विरोधी चलाने वाले नरेटिव का छात्र और संकाय सदस्य हिस्सा न बनें. कानून के शासन को चुनौती देने के लिए सड़क पर प्रदर्शन सुशासन और लोकतंत्र की पहचान नहीं है.

रविवार को जामिया मिलिया इस्लामिया के शताब्दी वर्ष के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र पूरी तरह से संवाद, चर्चा, विचार-विमर्श और बहस के बारे में है. उन्होने व्यवधान और गड़बड़ी को लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत बताया. 

उन्होंने इस तथ्य पर भी अपना दर्द और चिंता व्यक्त की कि "लोकतंत्र के मंदिरों में अशांति को हथियार बनाया गया है, जो बड़े पैमाने पर लोगों को न्याय सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे चालू रहना चाहिए." लोकतांत्रिक मूल्यों के सार को संरक्षित और कायम रखने के लिए सभी से कार्य करने का आह्वान करते हुए धनखड़ ने रेखांकित किया कि संसद को हर पल क्रियाशील न बनाने का कोई बहाना नहीं हो सकता है. 

Advertisement

उन्होंने कहा कि, “जब किसी विशेष दिन संसद में व्यवधान होता है, तो प्रश्नकाल नहीं हो सकता है. प्रश्नकाल शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता उत्पन्न करने का एक तंत्र है. सरकार हर सवाल का जवाब देने के लिए बाध्य है. इससे सरकार को काफी फायदा होता है. जब आप लोकतांत्रिक मूल्यों और सुशासन के संदर्भ में सोचते हैं तो प्रश्नकाल न होने को कभी भी तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता है."

Advertisement

उपराष्ट्रपति ने कहा कि, सहमति और असहमति लोकतांत्रिक प्रक्रिया का स्वाभाविक हिस्सा है, लेकिन असहमति को विरोध में बदलना लोकतंत्र के लिए अभिशाप से कम नहीं है. उन्होंने कहा कि 'विरोध' प्रतिशोध में नहीं बदलना चाहिए. धनखड़ ने संवाद और विचार को ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता बताया.

Advertisement
Featured Video Of The Day
Pune में तेज रफ्तार कार ने दो पुलिसवालों को कुचला, एक की मौत
Topics mentioned in this article