- अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत को 'टैरिफ किंग' बताकर हाल ही में 25% टैरिफ का ऐलान किया है.
- WTO, विश्व बैंक के आंकड़े गवाह हैं कि भारत ने कई देशों की तुलना में कम टैरिफ लगा रखे हैं.
- यही नहीं, अमेरिकी उत्पादों के लिए नॉन-टैरिफ बाधाएं भी बहुत से देशों के मुकाबले भारत में कम हैं.
क्या भारत वाकई 'टैरिफ किंग' है, जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आरोप लगाते हैं? क्या भारत संरक्षणवादी नीतियां अपनाता है ताकि अमेरिकी उत्पादों को भारतीय बाजार में आने से रोक सके? इसी तरह के आरोप लगाकर ट्रंप ने भारत के ऊपर एकतरफा टैरिफ स्ट्राइक की है. नॉन-टैरिफ पेनल्टी लगाने की धमकी दी है. लेकिन आखिर सच्चाई क्या है? क्या ट्रंप के इन दावों में कोई दम है भी, या फिर वह आंकड़ों की बाजीगरी करके भारत पर टैरिफ बम फोड़ने का बहाना ढूंढ रहे हैं, आइए समझते हैं.
आरोप की वजह आंकड़ों की बाजीगरी
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 1991 का साल काफी अहम माना जाता है. इसके बाद से ही भारतीय अर्थव्यवस्था को सुधारों के जरिए विदेशी व्यापार और निवेश के लिए खोला गया था. यह दावा कि भारत में बहुत हाई टैरिफ हैं, अक्सर साधारण औसत टैरिफ (simple average tariffs) और ज्यादा आयात वाली वस्तुओं (Import Weighted Tariffs) के आधार पर टैरिफ के विरोधाभासी अंतर की वजह से पैदा होता है.
अन्य देशों से भारत में टैरिफ कम
साधारण औसत में सभी उत्पादों को समान मानकर टैरिफ लगाया जाता है, वहीं ट्रेड वेटेड ऐवरेज में आयात की मात्रा के हिसाब से एक्चुअल ड्यूटी लगाई जाती है. बाजार को लेकर ज्यादा सटीक तस्वीर इसी से सामने आती है.
विश्व बैंक के आंकड़े दिखाते हैं कि भारत लगभग 4.6% का आयात आधारित औसत टैरिफ लगाता है. यह कई मामलों में कई अन्य देशों से कम बैठता है. उदाहरण के लिए ब्राजील में यह टैरिफ 7.26% है तो अर्जेंटीना में 6.45% है. कंबोडिया आयात के आधार पर 7.2% टैरिफ लगाता है, वहीं दक्षिण कोरिया 5.66% का शुल्क वसूलता है.
साधारण औसत टैरिफ की बात करें तो भारत में यह 15.98% है, जबकि अर्जेंटीना-दक्षिण कोरिया 13.4% तो तुर्की 16.2% का शुल्क लगाता है.
1991 के बाद इस तरह घटे टैरिफ
1990 में जब भारत का बाजार विदेशी वस्तुओं के लिए आमतौर पर खुला हुआ नहीं था, तब औसत टैरिफ 80.9% हुआ करता था. 1991 के सुधारों के बाद इसे घटाकर 56% कर दिया गया था. 1999 तक इसे और घटाकर 33% पर लाया गया. और अब ये कम होकर 15.98% तक रह गया है.
जिन पर ज्यादा टैरिफ, उनका व्यापार कम
बात बस इतनी नहीं है, सिंपल एवरेज और आयात की मात्रा के आधार पर टैरिफ कुछ और भी बताता है. भारत ने कृषि उत्पाद और ऑटोमोबाइल्स जैसी कुछ चुनिंदा चीजों पर ही ज्यादा टैरिफ लगा रखा है. आंकड़े बताते हैं कि भारत-अमेरिका के बीच इन वस्तुओं का व्यापार ज्यादा नहीं होता है. कुल व्यापार में इनका हिस्सा बहुत कम है.
ज्यादा आयात वाली वस्तुओं पर टैरिफ कम
अमेरिका से भारत में अधिकतर आयात फार्मास्यूटिकल्स, ऊर्जा उत्पाद, मशीनरी और केमिकल्स आदि का होता है. भारत सरकार ने इन पर अपेक्षाकृत कम टैरिफ लगाया है. अमेरिका से भारत को एक्सपोर्ट होने वाली टॉप-6 वस्तुओं में पेट्रोलियम, लिक्विड नेचुरल गैस (एलएनजी), कोयला, फार्मास्यूटिकल्स, मशीनों के पुर्जे और खाद शामिल हैं. भारत को होने वाले कुल अमेरिकी निर्यात में इनका हिस्सा 45% से अधिक हैं.
भारत का औसत टैरिफ 5% से कम
WTO के आंकड़े बताते हैं कि इन पर भारत का औसतन टैरिफ 5% से कम है. शायद ही कभी ये टैरिफ 10% के पार पहुंचा हो. यहां बता दें कि भारत ऐसे एनर्जी उत्पादों की ज्यादा खरीद इसलिए करता है ताकि अमेरिका की व्यापार घाटे को लेकर चिंताओं को दूर किया जा सके.
अमेरिका का कृषि विभाग खुद कहता है कि भारत ने सेब, अखरोट और बादाम जैसे प्रमुख अमेरिकी कृषि उत्पादों के आयात पर जवाबी टैरिफ 2023 में ही हटा लिए थे. ऐसा WTO विवादों के समाधान के तहत किया गया था.
गैर-टैरिफ बाधाएं भी कम
ट्रंप बार-बार दावा करते रहे हैं कि भारत ज्यादा टैरिफ लगाने के अलावा, अमेरिकी इंपोर्ट को रोकने के लिए प्रोडक्ट स्टैंडर्ड और प्रक्रियागत देरी जैसी बाधाएं भी पैदा करता है. लेकिन सच्चाई ये है कि पिछले एक दशक में भारत ने अपनी व्यापार प्रक्रियाओं को सरल बनाने और व्यवस्थित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. नियमों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया है. प्रक्रियात्मक जटिलताओं को कम करने पर भी काम किया है.
ईयू-जापान के भारी-भरकम टैरिफ
अब अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय (Office of the United States Trade Representative) की 2021 की रिपोर्ट भी देख लीजिए. इसमें कहा गया है कि दुनिया में सबसे सख्त नॉन-टैरिफ बाधाएं अगर किसी ने लगाई हैं तो वह यूरोपीय संघ और जापान जैसे देश हैं. कृषि, केमिकल्स और औद्योगिक वस्तुओं जैसी चीजों पर तो इन्होंने भारी-भरकम टैरिफ थोप रखे हैं.
चीन ने बुन रखा नियमों का जाल
दुनिया की फैक्ट्री कहे जाने वाले चीन की बात करें तो उसने तकनीकी नियमों और लाइसेंसी जरूरतों की आड़ में बेहद जटिल प्रक्रिया बना रखी है. उसकी कोशिश सिर्फ अपनी घरेलू कंपनियों को फायदा पहुंचाने की होती है. चीन ने नॉन-टैरिफ बाधाओं का एक विशाल जाल बुन रखा है, जिसकी वजह से उसके बाजार तक पहुंचना आसान नहीं होता है.