सुप्रीम कोर्ट में आज 2020 दिल्ली दंगों के आरोपी शरजील इमाम, उमर खालिद, मीरान हैदर, गुल्फिशा फातिमा, मुहम्मद सलीम खान, शादाब अहमद और शिफा उर रहमान की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई हुई. जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन.वी. अंजारिया की बेंच के सामने दिल्ली पुलिस ने शरजील इमाम के विवादित भाषणों के वीडियो क्लिप चलाए, जिनमें असम को हिंदुस्तान से अलग करने, बाबरी मस्जिद, तीन तलाक और CAA के खिलाफ भड़काऊ बयान थे.
कोर्ट में क्या हुआ?
जमानत के विरोध में दिल्ली पुलिस की ओर से ASG एस.वी. राजू ने साफ कहा, 'निचली अदालत को ट्रायल तेज करने का निर्देश दिया जा सकता है, लेकिन देरी जमानत का आधार नहीं. चाहे कोई 5.5 साल से जेल में हो, ये बेल देने का ग्राउंड नहीं होना चाहिए.' इस मामले पर पुलिस का कहना है कि दंगे अचानक नहीं हुई सुनियोजित तरीके से ट्रंप के भारत दौरे के दौरान किए गए थे. ट्रंप के दौरे को इसलिए चुना गया कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान CAA की ओर जाए और मुस्लिम लोगों को सहानुभूति मिले. इससे पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा था कि ये 'सॉवरेन्टी पर हमला' था.
'ये बुद्धिजीवी आतंकियों से ज्यादा घातक'
ASG राजू ने SC में कहा, 'मैंने जो वीडियो, ट्रेलर दिखाया, उससे क्या साबित होता है? यह कोई मामूली नॉर्मल धरना या प्रोटेस्ट नहीं है. असम को भारत से अलग कर दिया जाएगा. वह आर्टिकल 370 के बारे में बात करते हैं, मुसलमानों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं. तीन तलाक के बारे में बात की. वह कोर्ट का भी अपमान करते हैं. वह बाबरी मस्जिद के बारे में भी बात करते हैं. अंतिम लक्ष्य सरकार बदलना है.
'लाल किला हमले में हमने देखा...'
अदालत में आज सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने लाल किले में हुए धमाके का हवाला दिया. पुलिस ने कहा, 'ये बुद्धिजीवी जमीन पर मौजूद आतंकवादियों से ज़्यादा खतरनाक हैं.' कोर्ट में ASG एसवी राजू ने आरोपियों को ज़मानत देने के खिलाफ अपनी दलीलें दीं.
उन्होंने कहा, 'मुझे यह बताना होगा कि ये बुद्धिजीवी जमीन पर मौजूद आतंकवादियों से ज़्यादा खतरनाक हैं. यह लाल किले में जो हुआ उससे पता चलता है. जब बुद्धिजीवी गाइड करते हैं और आतंकवादी बन जाते हैं और वे जमीन पर काम करने वालों से ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं. ये सरकारी मदद, सरकारी फंडिंग और सब्सिडी के कारण डॉक्टर और एक्टिविस्ट बन जाते हैं. इस तरह के एक्टिविस्ट खतरनाक होते है. जब जमानत की अर्जी दी जाती है तो यह कहानी बनाई जाती है कि वह एक बुद्धिजीवी है. CAA का विरोध एक गुमराह करने वाला और लीपापोती करने वाला था. असली मकसद तो सरकार बदलना, आर्थिक तंगी थी.
शरजील इमाम के वकील ने रखा ये तर्क?
शरजील इमाम के वकील सिद्धार्थ दवे ने जमानत के पक्ष में तर्क दिया, 'भाषण तीन घंटे लंबा था. पुलिस सिर्फ माइक्रो-क्लिप्स दिखा रही है. ये संदर्भ से बाहर हैं. शरजील इमाम जनवरी 2020 से जेल में हैं.
ये याचिकाएं UAPA के तहत दाखिल हैं, जहां आरोपियों को 'मास्टरमाइंड' बताया गया. बता दें कि दिल्ली दंगे में 53 मौतें हुई थीं और 700+ लोग घायल हुए थे.














