तलाक-ए-हसन की जल्द सुनवाई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने महिला को रजिस्ट्रार के पास भेजा

याचिकाकर्ता के मुताबिक तलाक-ए-हसन परंपरा इस्लाम के मौलिक सिद्धांत में शामिल नहीं है. याचिकाकर्ता की कोर्ट से गुहार है कि ये प्रथा सती प्रथा की तरह ही सामाजिक बुराई है. कोर्ट इसे खत्म कराने के लिए इसे गैरकानूनी घोषित करे. क्योंकि हजारों मुस्लिम महिलाएं इस कुप्रथा की वजह से पीड़ित होती हैं.

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सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:

तलाक-ए-हसन (Talaq-e-Hasan) के खिलाफ मुस्लिम महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जल्द सुनवाई के लिए रजिस्ट्रार के पास जाने के लिए कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर रजिस्ट्रार बात नहीं सुनते हैं, तो वो फिर से अदालत में आ सकते हैं. याचिकाकर्ता बेनज़ीर की ओर से पिंकी आनंद ने कहा कि उसका साढ़े 8 साल का बेटा है. पहला नोटिस 20 अप्रैल को मिला था. इसीलिए मामले की जल्द सुनवाई की जाए.

वहीं पिछले हफ्ते भी सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इंकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता अगले हफ्ते जल्द सुनवाई के लिए मेंशन करें. मुस्लिम महिला की ओर से पिंकी आनंद ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 19 अप्रैल को उसके पति ने तलाक ए हसन के तहत उसे पहला नोटिस जारी किया. इसके बाद 20 मई को दूसरा नोटिस जारी किया गया. अगर अदालत ने दखल नहीं दिया तो 20 जून तक तलाक की कार्रवाई पूरी हो जाएगी. इसलिए सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई करे.

लेकिन जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था, "19 अप्रैल को पहला नोटिस जारी किया गया था, लेकिन आपने दूसरे नोटिस तक इंतजार किया. हम मामले पर कोर्ट खुलने के बाद सुनवाई करेंगे. महिला की तलाक ए हसन को चुनौती देने वाली याचिका पर जल्द सुनवाई की जरूरत नहीं है." जज ने ये भी पूछा था कि इस मामले में जनहित याचिका क्यों दायर की गई.

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सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन के खिलाफ मुस्लिम महिला की याचिका पर जल्द सुनवाई से किया इनकार

हालांकि याचिकाकर्ता के गुहार लगाने के बाद अदालत ने कहा कि वो अगले हफ्ते मेंशन करें. दरअसल सुप्रीम कोर्ट में तलाक ए हसन को लेकरजनहित याचिका दाखिल की गई है. बेनजीर हिना ने याचिका दाखिल कर तलाक ए हसन को एकतरफा, मनमाना और समानता के अधिकार के खिलाफ बताया है.

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याचिकाकर्ता के मुताबिक ये परंपरा इस्लाम के मौलिक सिद्धांत में शामिल नहीं है. याचिकाकर्ता की कोर्ट से गुहार है कि उसके ससुराल वालों ने निकाह के बाद दहेज के लिए उसे प्रताड़ित किया. दहेज की लगातार बढ़ती मांग पूरी नहीं किए जाने पर उसे तलाक दे दिया. ये प्रथा सती प्रथा की तरह ही सामाजिक बुराई है. कोर्ट इसे खत्म कराने के लिए इसे गैरकानूनी घोषित करे. क्योंकि हजारों मुस्लिम महिलाएं इस कुप्रथा की वजह से पीड़ित होती हैं.

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इस्लाम में तलाक़ के तीन तरीके ज्यादा प्रचलन में थे.
1. तलाक़-ए-अहसन:- इस्लाम की व्याख्या करने वालों के मुताबिक तलाक़-ए-अहसन में शौहर बीवी को तब तलाक दे सकता है, जब उसका मासिक धर्म चक्र नहीं चल रहा हो (तूहरा की समयावधि)
इसके बाद तकरीबन तीन महीने एकांतवास की अवधि यानी इद्दत के बाद चाहे तो वह तलाक वापस ले सकता है. यदि ऐसा नहीं होता तो इद्दत के बाद तलाक़ को स्थायी मान लिया जाता है. लेकिन इसके बाद भी यदि यह जोड़ा चाहे तो भविष्य में निकाह यानी शादी कर सकता है. इसलिए इस तलाक को अहसन यानी सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है.

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2. तलाक़-ए-हसन:- इसकी प्रक्रिया भी तलाक़-ए-अहसन की तरह है. लेकिन इसमें शौहर अपनी बीवी को तीन अलग-अलग बार तलाक़ कहता है. वो भी तब जब बीवी का मासिक धर्म चक्र नहीं चल रहा हो. यहां शौहर को अनुमति होती है कि वह इद्दत की समयावधि खत्म होने के पहले तलाक़ वापस ले सकता है.
यह तलाक़शुदा जोड़ा चाहे तो भविष्य में फिर से निकाह यानी शादी कर सकता है. इस प्रक्रिया में तीसरी बार तलाक़ कहने के तुरंत बाद वह अंतिम मान लिया जाता है. यानी तीसरा तलाक बोलने से पहले तक निकाह पूरी तरह खत्म नहीं होता.

3. तीसरा तलाक बोलने और तलाक पर मुहर लगने के बाद तलाक़शुदा जोड़ा फिर से शादी तब ही कर सकता है जब बीवी इद्दत पूरी होने के बाद किसी दूसरे व्यक्ति से निकाह यानी शादी कर ले. इस प्रक्रिया को हलाला कहा जाता है. अगर पुराना जोड़ा फिर शादी करना चाहे तो बीवी नए शौहर से तलाक लेकर फिर इद्दत में एकांतवास करे. फिर वो पिछले शौहर से निकाह कर सकती है.
 

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