दिल्ली से बिहार तक खींची जीत की लकीर,भाजपा के लिए दक्षिण के द्वार भी खोल गया साल

इसी प्रचंड जीत की नींव भाजपा साल 2025 की शुरुआत के साथ दिल्ली में रख चुकी थी. 2025 से पहले के 27 वर्षों तक दिल्ली उत्तर भारत का ऐसा एकमात्र नाम था, जहां भाजपा कभी सरकार नहीं बना पाई.

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नई दिल्ली:

साल 2025, भारतीय राजनीति के इतिहास में भाजपा नीत एनडीए के लिए महत्वपूर्ण सफलताओं का वर्ष साबित हुआ है. दिल्ली की सत्ता से लेकर बिहार की प्रचंड जीत तक, हर दिशा में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने ऐसा परचम लहराया कि विरोधियों की रणनीतियां ध्वस्त हो गईं. अब साल का आखिरी महीना भाजपा के लिए दक्षिण के द्वार खोल चुका है. इसका सबसे पुख्ता उदाहरण केरल में आए स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजे हैं. 

तिरुवनंतपुरम नगर निगम में ऐतिहासिक जीत दर्ज करके भाजपा ने वामपंथी दलों के गढ़ में सेंध लगाने का काम किया, जो केरल की राजनीति में एक 'वॉटरशेड मोमेंट' बना. भाजपा को 2025 के बिल्कुल आखिर में मिली यह जीत बेहद महत्वपूर्ण है. खासकर उस समय, जब केरल और तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारत के राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा सीधे तौर पर दक्षिण भारत के राज्यों में कभी जीत नहीं पाई थी.

इससे ठीक महीनेभर पहले, बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा नीत एनडीए गठबंधन ने परचम लहराया. बिहार में अक्टूबर-नवंबर में हुए चुनाव के दौरान हर वर्ग, हर क्षेत्र और हर मुद्दे पर एनडीए का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दिया. यही कारण है कि यह साल भाजपा के लिए राजनीतिक वर्चस्व, जनसमर्थन और ऐतिहासिक सफलता का प्रतीक बन गया.

भाजपा और भाजपा नीत एनडीए, दोनों ने 2010 के बाद बिहार में इस तरह का प्रदर्शन दोहराया है. 15 साल पहले, जदयू ने 115 और भाजपा ने 91 विधानसभा सीटों पर कब्जा जमाया था. 2025 में भाजपा को 89 और जदयू को 85 विधानसभा सीटों पर जीत मिली. अन्य घटक दलों को जोड़कर एनडीए ने बिहार में दूसरी बार 200 का आंकड़ा पार किया था. इस आंधी में पिछले चुनाव के मुकाबले राजद हाफ हो गई, जबकि कांग्रेस के सिर्फ उंगलियों पर गिने जाने के बराबर विधायक चुने गए.

इसी प्रचंड जीत की नींव भाजपा साल 2025 की शुरुआत के साथ दिल्ली में रख चुकी थी. 2025 से पहले के 27 वर्षों तक दिल्ली उत्तर भारत का ऐसा एकमात्र नाम था, जहां भाजपा कभी सरकार नहीं बना पाई. साल 1993 में भाजपा को दिल्ली विधानसभा चुनाव में आखिरी जीत मिली थी. उसके बाद पार्टी दिल्ली के अंदर लगातार संकट में फंसती चली गई.

बीच-बीच में भाजपा ने कई बार अपने बुरे दौर से उभरकर ऊपर उठने की कोशिशें कीं. शुरुआत की 'मोदी लहर' में भी भाजपा दिल्ली नहीं जीत सकी थी. आखिर, साल 2025 में ही भाजपा अपना कमाल दिखा पाई, जब उसे 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में 48 सीटों के साथ बहुमत मिला. इस साल में भाजपा और एनडीए के लिए उपराष्ट्रपति चुनाव अहम रहा. जगदीप धनखड़ अचानक पद से इस्तीफा दे चुके थे, जिसके बाद अगस्त महीने में उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव कराए गए. एनडीए के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन रहे, जबकि विपक्षी दलों ने बी. सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारा था. सीपी राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति चुनाव में अपने प्रतिद्वंद्वी बी. सुदर्शन रेड्डी को शिकस्त दी.

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