ईरान-इजरायल संघर्ष से चढ़ा पूरी दुनिया का पारा, यदि युद्ध छिड़ा तो इसका भारत पर क्या होगा असर?

Iran-Israel war: इजरायल जहां तकनीक के क्षेत्र में आगे है तो ईरान तेल का बड़ा उत्‍पादक देश है. भारत के इन दोनों ही देशों से व्यापारिक संबध हैं.

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नई दिल्ली:

Iran-Israel conflict: ईरान-इजरायल के बीच छिड़े युद्ध से दुनिया भर में तनाव बढ़ रहा है. दिल्ली में इजरायली दूतावास की सुरक्षा बढ़ा दी गई है. दिल्ली पुलिस ने पूरे इलाकों की घेराबंदी की है. रूस-यूक्रेन, इजरायल-हमास और अब इजरायल-ईरान के बीच लड़ाई भले ही हजारों किलोमीटर दूर लड़ी जा रही हो, लेकिन इसका सीधा असर भारत और यहां के लोगों पर भी दिखेगा. इजरायल जहां तकनीक के क्षेत्र में आगे है तो ईरान तेल का बड़ा उत्‍पादक देश है. भारत के इन दोनों ही देशों से व्यापारिक संबध हैं.

पश्चिम एशिया में बढ़ता तनाव भारत के लिए चिंता की बात है. ईरान-इजरायल जंग से भारत के सामने कई सवाल उठ खड़े हुए हैं. इस संघर्ष से क्या तेल के दाम बढ़ेंगे? क्या आर्थिक कारोबार पर असर पड़ेगा? क्या कूटनीतिक मुश्किलें बढ़ेंगी? युद्ध का चाबहार पोर्ट और ट्रेड कॉरिडोर पर क्या असर पड़ेगा? क्या पश्चिम एशिया की आग दूसरे इलाकों तक पहुंचेगी? क्या अमेरिका का दबाव बढ़ेगा?

भारतीय विदेश मंत्रालय ने देश के नागरिकों को ईरान की सभी गैर-जरूरी यात्राओं से बचने की सलाह दी है. विदेश मंत्रालय ने ईरान में रहने वाले भारतीयों से सतर्क रहने और तेहरान में भारतीय दूतावास के संपर्क में रहने को कहा है. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हम पश्चिम एशिया में सुरक्षा के हालात बिगड़ने से बहुत चिंतित हैं और सभी संबंधित पक्षों से संयम बरतने और नागरिकों की सुरक्षा का आह्वान दोहराते हैं. हम आग्रह करते हैं कि सभी मुद्दों का समाधान बातचीत और कूटनीति के माध्यम से किया जाना चाहिए.

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इस बीच भारत की एक बड़ी फुटबॉल टीम मोहन बागान सुपर जायंट ने ईरान न जाने का फैसला लिया है. टीम को वहां एक मैच के लिए ईरान की यात्रा पर जाना था, लेकिन अब नहीं जाएगी.

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भारत के इजरायल और ईरान से अच्छे संबंध

भारत और इजरायल के बीच द्विपक्षीय व्यापार होता है. भारत इजरायल को हीरे, डीजल, विमानन टरबाइन ईंधन, रडार उपकरण, चावल और गेहूं का निर्यात करता है. भारत इजरायल से अंतरिक्ष उपकरण, पोटेशियम क्लोराइड, मेकैनिकल एप्लायंस, प्रिंटेड सर्किट आदि आयात करता है. 

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ईरान और भारत के रिश्ते भी पुराने हैं. भारत के 1958 से ईरान के साथ राजनयिक संबंध हैं. ईरान में करीब चार हजार भारतीय रहते हैं. इनमें ज्यादातर छात्र या कारोबारी हैं. वहां करीब 1700 भारतीय छात्र हैं. ज्यादातर भारतीय तेहरान में हैं. इसके अलावा बिरिजंद, जबोल, मशहद में भी कुछ भारतीय रहते हैं. 

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इजरायल में भी भारत के लोग रह रहे हैं. वहां करीब 85 हजार भारतीय मूल के यहूदी निवास करते हैं. करीब 18 से 20 हजार भारतीय नौकरी करते हैं. वे कंस्ट्रक्शन, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में काम करते हैं. अलग-अलग जगहों पर करीब 1000 छात्र रहते हैं.    

''पश्चिम एशिया में कोई हारता नहीं, कोई जीतता भी नहीं''  

इजरायल-ईरान संघर्ष को लेकर पूर्व विदेश सचिव शशांक ने एनडाटीवी से कहा कि, ''पश्चिम एशिया ऐसा क्षेत्र है जहां कई दशकों से यह तो पता है कि कोई भी पक्ष हारने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन जीत भी नहीं होती है. इससे हर बार जान माल की हानि होती है. नागरिकों को तकलीफ होती है. इस क्षेत्र में तेल का बड़ा भंडार है, वह असुरक्षित हो जाता है. नसरुल्लाह काफी लोकप्रिय रहे हैं. इसलिए ईरान के लिए जरूरी हो गया था कोई न कोई जवाब देना. हालांकि तेजी से किए गए हमले के बाद ईरान को यह मालूम नहीं है कि उस पर क्या हो सकता है. कूटनीतिक स्तर पर ईरान ने थोड़ी ज्यादती दिखा दी है.''

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''ईरान और इजरायल आपस में सीधा युद्ध नहीं चाहते''

रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने कहा कि, ''यह ईरान का दूसरा हमला है. अप्रैल में भी ईरान ने हमले किए थे. इस बार ईरान ने बैलिस्टिक मिसाइलों से हमले किए जिससे इजरायल को कुछ नुकसान हुआ है. हालांकि न तो ईरान और न ही इजरायल चाहता है कि उनके बीच सीधा युद्ध हो. अप्रैल में जब ईरान ने हमला किया था तो उसने अमेरिका को तीन-चार दिन पहले बता दिया था. इस पर अमेरिका ने इजरायल की हवाई सुरक्षा मजबूत कर दी थी. इस बार ईरान ने अमेरिका को सिर्फ दो-तीन घंटे का नोटिस दिया. इससे इजरायल और अमेरिका को बचाव के लिए कम समय मिला. दोनों देश आपस में युद्ध नहीं चाहते. इजरायल का पहले से ही हमास, हिज्बुल्लाह, हूती, फिलिस्तीनी के साथ संघर्ष तल रहा है. ईरान अपेक्षाकृत कमजोर देश है. यही कारण है कि वे दोनों नहीं चाहते कि एक सीधा युद्ध शुरू हो.''       

इजरायल और ईरान आपस में भिड़ेंगे तो इसका असर भारत और यहां की अर्थव्‍यवस्‍था पर भी पड़ सकता है. ईरान-इजरायल जंग से समुद्री मार्ग से व्‍यापार पर असर पड़ सकता है. भारत और यूरोप के बीच बनने वाले इकानॉमिक कॉरिडोर (IMEC) का एजेंडा भी अटक सकता है. भारत की शिपिंग कॉस्‍ट बढ़ सकती है. भारत करीब 85% कच्‍चा तेल आयात करता है, जंग से ईरान से तेल आयात पर असर पड़ सकता है. लंबी जंग चलती है तो सोना-चांदी महंगा होगा और शेयर बाजार में भी गिरावट दिख सकती है.

भारत-इजरायल के बीच व्यापार चार साल में दोगुना हुआ

भारत ने 1992 में इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे. तब से दोनों देशों के बीच व्यापार काफी बढ़ा है. भारत और इजरायल के बीच 1992 में करीब 20 करोड़ डॉलर का व्यापार हुआ था. पिछले चार सालों में इसमें तेज बढ़ोतरी हुई है. सन 2018-19 में  5.56 अरब डॉलर, 2022-23 में 10.7 अरब डॉलर, 2021-22 में 7.87 अरब डॉलर और 2022-23 में 10.77 अरब डॉलर (डिफेंस को छोड़कर) का व्यापार हुआ. पिछले चार साल में दोनों देशों के बीच व्यापार करीब दोगुना हो गया है. 

भारत के ईरान से भी अच्छे व्यापारिक रिश्ते रहे हैं, लेकिन बीते पांच साल में भारत और ईरान के बीच व्यापार घटा है. भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरत का कुछ हिस्सा ईरान से भी खरीदता है. हालांकि, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच उससे भारत की तेल खरीद कम हुई है. वित्तीय वर्ष 2014-15 में जहां भारत ने ईरान से 4 अरब डॉलर से अधिक का कच्चा तेल खरीदा था वहीं 2019-20 में यह गिरकर महज 1.4 अरब डॉलर रह गया था. वित्त वर्ष 2022-23 में ईरान भारत का 59वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था.

भारत-ईरान के बीच कई चीजों का होता है लेन-देन

भारत ईरान को कृषि वस्तुओं के उत्पाद, मीट, स्किम्ड मिल्क, छाछ, घी, प्याज, लहसुन और डिब्बाबंद सब्जियां निर्यात करता है. भारत ईरान से तेल, मिथाइल अल्कोहल, पेट्रोलियम पदार्थ, खजूर और बादाम आयात करता है. 

इजरायल पर ईरान के बड़े हमले के बाद पूरे पश्चिम एशिया क्षेत्र में तनाव बढ़ता जा रहा है. भारत के हितों पर इसके असर को लेकर चिंता भी बढ़ रही है. जहां एक तरफ अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में कच्चा तेल 5 प्रतिशत तक महंगा होने से भारत के ऑयल इम्पोर्ट बिल पर बोझ और बढ़ने  की आशंका है, वहीं भारत के लिए विदेश नीति के मोर्चे पर भी चुनौतियां बढ़ सकती हैं.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उथल-पुथल

इजरायल पर ईरान के हमले का असर पश्चिम एशिया क्षेत्र की जियो पॉलिटिक्स तक ही सीमित नहीं है बल्कि अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उथल-पुथल फिर तेज हो गई है. एक अक्टूबर को इजरायल पर ईरान के हमले से पहले अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में ब्रेंट क्रूड ऑयल फ्यूचर्स की कीमत 70.78 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थी. हमले के बाद सिर्फ 24 के घंटे के अंदर यह कीमत बढ़कर 75 डॉलर के आसपास पहुंच गई.

भारत अपनी जरूरत का 80 से 85% तक कच्चे तेल का आयात करता है. ऐसे में महंगे होते कच्चे तेल की वजह से भारत का इम्पोर्ट बिल काफी ज्यादा बढ़ने की आशंका है.

जाने माने तेल अर्थशास्त्री किरीट पारीख ने एनडीटीवी से कहा, "इजरायल पर ईरान के हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय तेल अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल तेज हो गई है और कच्चा तेल फिर महंगा हो गया है. अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में अगर कच्चा तेल 5 डॉलर प्रति बैरल महंगा होता है तो भारत का ऑयल इम्पोर्ट बिल 8 से 9 बिलियन डॉलर तक बढ़ जाएगा. भारत 80 से 85% तक अपनी जरूरत का कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार से आयात करता है. अगर इजरायल ईरान पर जवाबी हमला करता है तो अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में कच्चे तेल की कीमत और बढ़ने की आशंका है."

जाहिर है, अगर ऐसा हुआ तो भारत का आइल इम्पोर्ट बिल और ज्यादा बढ़ जाएगा. कच्चे तेल के महंगा होने का असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में नेचुरल गैस की कीमत पर भी पढ़ने की आशंका है. भारत अभी करीब 50 फ़ीसदी अपनी जरूरत की नेचुरल गैस विदेश से आयात करता है.

''भारत की विदेश नीति के सामने चुनौतियां बढ़ेंगी''

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ राजन कुमार कहते हैं, ईरान-इजरायल के बीच टकराव की वजह से भारत की विदेश नीति के सामने चुनौतियां और बढ़ सकती हैं.

डॉ राजन कुमार ने एनडीटीवी से कहा, "पश्चिम एशिया पर युद्ध के बादल गहराते जा रहे हैं. इसकी वजह से भारत की विदेश नीति के सामने चुनौतियां बढ़ेंगी. मेरी राय में रूस-यूक्रेन युद्ध के मुकाबले ईरान- इजरायल युद्ध का भारत की विदेश नीति और अर्थव्यवस्था पर पर ज्यादा असर पड़ेगा. अभी तक इजरायल का एक प्रॉक्सी वार हिजबुल्लाह, हमास और दूसरे संगठनों के साथ चल रहा था. अब ईरान के इसमें कूदने की वजह से दो देशों के बीच जंग जैसे हालात बन गए हैं."

भारत के इजरायल और ईरान दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं. ऐसे में आने वाले दिनों में दोनों देशों का भारत का समर्थन हासिल करने  के लिए सरकार पर दबाव बढ़ेगा और भारत के लिए पश्चिम एशिया की जियो पॉलिटिक्स में बैलेंस बनाकर अपनी विदेश नीति की प्राथमिकताओं और भारत के हितों को आगे बढ़ाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

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