अपने सहयोगी से रेप के मामले में फंसे तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल (Tarun Tejpal) की याचिका पर सुनवाई करने से सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जज जस्टिस यू यू ललित (Justice U U Lalit) ने भी खुद को अलग कर लिया है. अब कोई और बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी. जस्टिस ललित पहले बतौर वकील तेजपाल के लिए पेश हुए थे, इसलिए उन्होंने खुद को इस केस से अलग कर लिया है.
यह दूसरी बार है, जब सुप्रीम कोर्ट में जज ने इस मामले में सुनवाई से खुद को अलग किया हो. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एल नागेश्वर राव ने भी सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. उन्होंने कहा था कि वो 2015 में इस मामले में गोवा सरकार की ओर से पेश हुए थे.
अब मामले की अगली सुनवाई अगले हफ्ते दूसरी बेंच करेगी. याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट में मामले की अपील की इन-कैमरा सुनवाई की मांग की गई थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. उसकी अपील पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है. याचिका में कहा गया है कि मामले की सुनवाई ‘बंद कमरे में हो.
तरुण तेजपाल केस में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव सुनवाई से हुए अलग, बताई ये वजह
पत्रकार तरुण तेजपाल ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर 2013 के रेप मामले में उन्हें बरी करने के खिलाफ गोवा सरकार द्वारा दायर अपील पर ‘इन कैमरा' में सुनवाई का अनुरोध किया था, जिसे हाईकोर्ट ने 24 नवंबर 2021 को खारिज कर दिया था. तेजपाल की दलील थी कि बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील पर पीड़िता की तरह आरोपी की भी पहचान को संरक्षित करना जरूरी है.
साथ ही उन्होंने अपील के सुनवाई योग्य होने को लेकर शुरुआती आपत्ति दर्ज कराते हुए उसे खारिज करने की गुहार लगाई थी. हालांकि, गोवा सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तेजपाल की ‘बंद कमरे में' सुनवाई की अपील का विरोध करते हुए कहा कि देश को जानने का हक है कि लड़की (पीड़िता) के साथ क्या व्यवहार किया गया था?
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21 मई 2021 को गोवा की सत्र अदालत ने तहलका मैगजीन के प्रधान संपादक तरुण तेजपात को रेप के मामले में बरी कर दिया था. उन पर आरोप था कि उन्होंने नवंबर 2013 में गोवा में आयोजित कार्यक्रम के दौरान पंच सितारा होटल के लिफ्ट में अपनी सहकर्मी पर यौन हमला किया. इस फैसले के खिलाफ गोवा सरकार ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी.
तेजपाल के वकील अमित देसाई ने बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा पीठ में न्यायमूर्ति एम एस सोनक और न्यायमूर्ति एम एस जावलकर की खंडपीठ से मामले की सुनवाई ‘बंद कमरे' में करने की अपील की थी जैसा कि इस मामले में निचली अदालत में सुनवाई हुई थी. देसाई ने कहा था कि मामले और आरोपों की संवेदनशीलता को देखते हुए सुनवाई ‘बंद कमरे' में होनी चाहिए. उन्होंने इसके लिए पीठ के समक्ष औपचारिक आवेदन कर विचार करने का अनुरोध किया था.