सेक्युलरिज्म का ओरिजिन और मीनिंग पर तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के बयान ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है. कांग्रेस और सीपीआई सहित कई दलों के नेताओं ने इसे एक महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की ओर से की गई 'गैर-जिम्मेदाराना' टिप्पणी बताया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विरुधुनगर लोकसभा क्षेत्र से सांसद मणिकम टैगोर और सीपीआई नेता वृंदा करात ने राज्यपाल के बयान की आलोचना की है.
कांग्रेस नेता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "धर्मनिरपेक्षता पर तमिलनाडु के राज्यपाल का बयान अस्वीकार्य है. ये भारत के संविधान और महात्मा गांधी, बाबासाहेब अंबेडकर, पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल के भारत के विचार के भी खिलाफ है."
उन्होंने कहा, "विदेशों में धर्मनिरपेक्षता का विचार भले ही अलग हो, लेकिन भारत में हम सभी अन्य धर्मों का सम्मान करते हैं, हम सभी अन्य परंपराओं का सम्मान करते हैं. हम सभी अन्य प्रथाओं का सम्मान करते हैं और यही भारत में धर्मनिरपेक्षता का विचार है."
उन्होंने कहा कि भाजपा अन्य धर्मों और परंपराओं का अपमान करना चाहती है. भारत की परंपरा ऐसी नहीं है. भाजपा और अन्य संबद्ध संगठन भारत में धर्मनिरपेक्षता के इस विचार के खिलाफ हैं.
सांसद ने कहा, "हम विविधता का जश्न मनाना चाहते हैं, हम अन्य धार्मिक मान्यताओं का जश्न मनाते हैं, हम अन्य परंपराओं, अन्य भाषाओं और अन्य प्रथाओं का जश्न मनाते हैं और यही भारत की धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा है."
तमिलनाडु के राज्यपाल के इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की नेता बृंदा करात ने कहा कि राज्यपाल रवि की टिप्पणी हैरान करने वाली है, क्योंकि इसका मतलब होगा कि संविधान उनके लिए बहुत अधिक मायने नहीं रखता है.
बृंदा करात ने कहा, "राज्यपाल के बयान से पता चलता है कि उन्हें लगता है कि संविधान भी एक विदेशी अवधारणा है. जो लोग संविधान में विश्वास करते हैं, जो लोग इस पर सवाल उठाते हैं, वे राज्यपाल की कुर्सी पर बैठे हैं."
संविधान में विश्वास नहीं करते बीजेपी के द्वारा नियुक्त किए गए राज्यपाल- बृंदा करात
भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र पर निशाना साधते हुए, सीपीआई नेता ने कहा कि वो उन लोगों को राज्यपाल के रूप में नियुक्त कर रही है, जो देश की सर्वोच्च नियम पुस्तिका संविधान में विश्वास नहीं करते हैं.
दरअसल तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने रविवार को कथित तौर पर कहा था कि भारत में धर्मनिरपेक्षता की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कन्याकुमारी में एक समारोह में कहा था, "इस देश के लोगों के साथ बहुत धोखाधड़ी हुई है और उनमें से एक ये है कि उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की गलत व्याख्या करने की कोशिश की है."
हाल के सालों में केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों में अक्सर राज्यपालों और वहां के प्रमुख नेताओं के बीच तनाव बढ़ता देखा गया है. केरल और पश्चिम बंगाल के राज्यपालों का मुख्यमंत्रियों के साथ मनमुटाव ताजा उदाहरण हैं.