तमिलनाडु सरकार ने 'RSS के पथ संचलन' पर मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को SC में दी चुनौती

तमिलनाडु सरकार RSS के पथ संचलन यानी मार्च के मार्ग के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट ले गई है. मद्रास हाई कोर्ट ने मार्च इजाजत देते हुए कहा था कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विरोध भी आवश्यक हैं.

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नई दिल्‍ली:

तमिलनाडु सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(RSS) के पथ संचलन यानी मार्च के मार्ग पर जारी मद्रास हाईकोर्ट  के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. हाईकोर्ट में जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस मोहम्मद शफीक की एक पीठ ने शुक्रवार को आदेश जारी कर आरएसएस को पुनर्निर्धारित तिथियों पर तमिलनाडु में अपना रूट मार्च निकालने की अनुमति देते हुए कहा था कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विरोध भी आवश्यक हैं. 

मद्रास हाईकोर्ट ने 22 सितंबर 2022 को एकल जज पीठ ने आदेश जारी करते हुए आरएसएस के राज्यव्यापी पथ संचलन पर कई शर्तें लगाई थीं. एकल जज पीठ ने कहा कि खुली सड़क पर जुलूस निकालने की बजाय किसी सीमित या चारदीवारी वाली जगह पर जुलूस निकाल लें. एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए, आरएसएस ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की कि वे संघ को पूरे राज्य में विभिन्न मार्गों से अपनी वर्दी पहनकर जुलूस निकालने की अनुमति दें. लेकिन 4 नवंबर को उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस आदेश को दरकिनार कर दिया. 

पीठ ने तमिलनाडु पुलिस को जुलूस निकालने और एक सार्वजनिक बैठक आयोजित करने की अनुमति मांगने वाले आरएसएस के प्रतिनिधित्व पर विचार करने और उसी के लिए अनुमति देने का निर्देश दिया. संगठन ने इससे पहले आजादी की 75वीं वर्षगांठ, भारत रत्न बीआर अंबेडकर की जन्मशती और विजयादशमी पर्व के उपलक्ष्य में रूट मार्च की अनुमति मांगी थी. पीठ ने अपीलकर्ताओं को रूट मार्च/शांतिपूर्ण जुलूस आयोजित करने के उद्देश्य से अपनी पसंद की तीन अलग-अलग तारीखों के साथ राज्य के अधिकारियों से संपर्क करने का निर्देश दिया. 

पीठ ने राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे तीन चुनी गई तारीखों में से किसी एक पर उन्हें पथ संचलन यानी जुलूस प्रदर्शन की अनुमति दें. साथ ही अपने आदेश में साफ लिखा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से दिए गए तथ्यात्मक मैट्रिक्स में और कानूनी प्रस्ताव के तहत हमारा विचार है कि राज्य सरकार के अधिकारियों को नागरिकों के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को बनाए रखने के लिए इस तरह से कार्य करना चाहिए. 

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कोर्ट ने कहा कि लोक कल्याणकारी राज्य में नागरिकों के अधिकार के प्रति राज्य का दृष्टिकोण कभी भी प्रतिकूल नहीं होना चाहिए. इस विचार के मुताबिक ही शांतिपूर्ण रैलियों, विरोध, जुलूसों या सभाओं की अनुमति देने पर विचार किया जाना चाहिए, ताकि स्वस्थ लोकतंत्र के स्वरूप को बनाए और बचाए रखा जा सके. हमारे देश में संविधान सर्वोच्च है. यहां नागरिकों के मौलिक अधिकार को ऊंचे आसन पर रखा गया है. पीठ के आदेश के मुताबिक, 4 नवंबर 2022 को अवमानना ​​याचिकाओं में पारित आदेश को अलग रखा गया है और रिट याचिकाओं में पारित 22 सितंबर, 2022 के आदेश को बहाल किया गया है. 

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यही लागू होगा, जिस तारीख को अपीलकर्ता रूट मार्च करना चाहते थे, वह बीत चुका है, इसलिए यह उचित है कि इस संबंध में एक निर्देश जारी किया जाए. साथ ही, आरएसएस को सख्त अनुशासन सुनिश्चित करने को कहा गया है. संघ को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया कि मार्च के दौरान उनकी ओर से कोई उकसावे या भड़कावे की घटना न हो. पीठ ने कहा कि राज्य को अपनी तरफ से सुरक्षा के पर्याप्त उपाय करने चाहिए और जुलूस तथा सभा के शांतिपूर्वक आयोजन को सुनिश्चित करने के लिए यातायात व्यवस्था करनी चाहिए. एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए, आरएसएस ने अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की कि वे अपने सदस्यों को पूरे राज्य में विभिन्न मार्गों से अपनी वर्दी यानी गहरे जैतून हरे रंग की पतलून, सफेद शर्ट, काली टोपी, बेल्ट और काले जूते पहनकर जुलूस निकालने की अनुमति दें.

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