सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद HC जज मामले में आज फिर करेगा सुनवाई, आपराधिक केस नहीं देने का दिया था आदेश

सप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि वह यह समझने में असमर्थ हैं कि उच्च न्यायालय स्तर पर भारतीय न्यायपालिका में क्या गड़बड़ है. कई बार यह सोचकर हैरानी होती है कि क्या ऐसे आदेश किसी बाहरी विचार से पारित किए जाते हैं या यह कानून की सरासर अज्ञानता है.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
इलाहाबाद हाई कोर्ट जज मामले में सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई.
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद HC के एक जज को वरिष्ठ जज के साथ बैठाने और आपराधिक मामले न देने का आदेश दिया था.
  • 4 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हाईकोर्ट के जज के आदेश को रद्द करते हुए कठोर टिप्पणी की थी.
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उक्त जज ने न्याय का मखौल उड़ाया और उनकी योग्यता पर भी सवाल उठाए थे.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को उस मामले की दोबारा सुनवाई करेगा, जिसमें उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज को एक वरिष्ठ जज के साथ बैठने और रिटायरमेंट तक उन्हें आपराधिक मामले (Allahabad High Court) न देने का आदेश दिया था. 4 अगस्त को पारित कठोर आदेश द्वारा निपटाए गए इस मामले को अब जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच शुक्रवार को फिर सुनवाई करेगी.

ये भी पढ़ें- एक धमाका, 40 सेकेंड और तबाही का मंजर... फुरकान ने बताया धराली के वायरल वीडियो का सच

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की यह कहकर आलोचना की गई थी कि यह न्यायिक शक्तियों का अतिक्रमण है. इसे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की रोस्टर शक्तियों में हस्तक्षेप बताया गया था. दरअसल 4 अगस्त को जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस प्रशांत कुमार द्वारा पारित आदेश पर आपत्ति जताई थी, जिसमें एक आपराधिक शिकायत को यह कहते हुए रद्द करने से इनकार कर दिया गया था कि धन की वसूली के लिए दीवानी मुकदमा उपाय प्रभावी नहीं था.

HC के जज को सीनियर जज संग बैठने का दिया था निर्देश

उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए पीठ ने टिप्पणी की कि आदेश पारित करने वाले उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को एक वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ खंडपीठ में बैठाया जाना चाहिए. इसके अलावा अदालत ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट के जज को कोई भी आपराधिक मामला आवंटित नहीं किया जाना चाहिए. सप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायाधीश ने न्याय का मखौल उड़ाया है.

जज पर न्याय का माखौल उड़ाने का आरोप

सप्रीम कोर्ट के मुताबिक, संबंधित न्यायाधीश ने न केवल खुद को एक दयनीय स्थिति में पहुंचाया है, बल्कि न्याय का भी मखौल उड़ाया है. बेंच ने कहा कि वह यह समझने में असमर्थ हैं कि उच्च न्यायालय स्तर पर भारतीय न्यायपालिका में क्या गड़बड़ है. कई बार यह सोचकर हैरानी होती है कि क्या ऐसे आदेश किसी बाहरी विचार से पारित किए जाते हैं या यह कानून की सरासर अज्ञानता है. जो भी हो, ऐसे बेतुके और गलत आदेश पारित करना अक्षम्य है .

अदालत ने कहा कि मामले को ध्यान में रखते हुए, संबंधित न्यायाधीश को उनके पद छोड़ने तक कोई आपराधिक निर्णय नहीं दिया जाना चाहिए. अगर उनको एकल न्यायाधीश के रूप में बैठना ही है, तो उन्हें कोई आपराधिक निर्णय नहीं दिया जाएगा. रजिस्ट्री आदेश की एक प्रति इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश को भेजेगी.

Advertisement

Featured Video Of The Day
100 Years of RSS: मोहन भागवत ने संघ के शताब्दी समारोह में क्या कहा? | Mohan Bhagwat Speech